PANKAJ GUPTA

Romance Tragedy Fantasy

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Romance Tragedy Fantasy

कच्ची उम्र का प्यार (भाग-11)

कच्ची उम्र का प्यार (भाग-11)

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मेरे खुशी की सीमा नही थी। इस तरह से ये मेरा पहला जन्मदिन था। आरती ने मेरे जन्मदिन को सुपर स्पेशल बना दिया था।

बार बार उस लम्हे को सोचकर मेरे अधरो पर मुस्कान आ जाती थी....वह विशेष दिन, वो पहला किस, वो लबों की गर्माहट, वो पहला अहसास, मेरे यादों के झरोखों मे खूबसूरती से कैद है।

उम्र का फेर था या सच मे कच्ची उम्र का प्यार ऐसा होता है...पता नही....चाहे कितनी भी बाते हो, कम लगता था.....मिलने का बार बार मन करता था।

कुछ दिनों के लिए मामा के परिवार को कही जाना था और मैं घर पर अकेले रहने वाला था

इसीलिए हम दोनो ने एक बार घर पर मिलने का फैसला लिया। घर पर मिलने की तिथि और समय सबकुछ निश्चित हो गया और आरती से घर पर मिलने का वह शुभ मुहूर्त भी आ गया

आरती का पहली दफा घर पर बुलाने की घबराहट व उसके आने की बेसब्री से इंतजार ने मेरे धड़कनों की रफ्तार बढ़ा रखी थी। मैंने आरती को कॉल किया...

मैं- डियर और कितना इंतजार कराओगी, कब तक पहुंच रही हो ?

आरती- बस बस में आ गई हूं, कुछ 3 से 4 मिनट में घर तक पहुंच जाऊंगी।

मैं- अच्छा सुनो तुम बेल मत बजाना दरवाजा खुला है। सीधा घर में आ जाना और दरवाजा लॉक करके हाल में आना।

आरती- क्यों आप कहां जा रहे हैं?

मैं- मिस दिवाली आपके सवालों का सिलसिला कोचिंग में भी हो सकता है। फिलहाल में जितना कह रहा हूं इतना सुन लो ना डियर प्लीज!!

आरती- ठीक है बाबा आपका हुक्म सर आंखों पर बस अब मैं पहुंच गई हूं।

मैं फोन रखते ही हॉल में गया कुछ खास नहीं बस हाल में रखे टेबल को टेबल क्लॉथ,गुलाब के फूल व कुछ मोमबत्तीयों के सहारे मैंने डेकोरेट किया।

तभी मुझे आरती की आने की आहट मिली। मैंने हाल में लगे शीशे में खुद पर एक सरसरी नजर डालते हुए, फटाक से हॉल के लाइट्स ऑफ कर दिये।

तभी आरती हॉल को अपने कोमल कदमों से नवाजते हुए, अंदर प्रवेश करती है। मैंने घूटने(knee) पर बैठकर हाथों में गुलाब का फूल लिए आरती से जाने क्या क्या कहने को सोचा था। पर आरती की खूबसूरती व उसके हर अंदाज का कुछ जवाब नहीं था, हर दफा लगता था जैसे पहली मुलाकात हो और उस पर पड़ती यह मेरी पहली नजर हो।

आरती ने ग्रे कलर की डाउन शोल्डर नैरो टॉप विद अंब्रेला स्कर्ट पहन रखा था।

उसके उसके कंधों पर डाउन शोल्डर टॉप की हाईलाइट होती ब्लैक स्लीप, ग्रे स्कर्ट पर बिखरी हुई काली छींटी व उजले लंबे पैरों पर काली जूती उसके लंबे व सिल्की बाल मुझे उस पल आरती पर फना कर देने को बेहद थे।

मैं मंत्रमुग्ध होकर बस आरती को देखे जा रहा था। मेरा मन तो पहले ही चंचल हुआ जा रहा था, ऊपर से आरती के मेरी आंखों में आंखें डाल गौर से मुझे देखने की उस शरारती अंदाज मुझे खुद पर काबू खो देने के लिए मजबूर कर रहा था। आरती का यह खूबसूरत अंदाज ऊपर से उसका मुझे इस कदर देखना कुछ इस तरह मुझे बेकाबू किए जा रहा था,जैसे ...

होली के दिन अपनी माशूका के रुखसर पर गुलाबी गुलाल लगाकर तो खुद मन चंचल अवस्था में रुमानी हुआ पड़ा है, ऊपर से माशूका अगर खुद बैठा कर अपनी आगोश में अपने हाथों से भांग का प्याला पिला रही हो तो जायज है, जेहन का जर्रा जर्रा बेकाबू हो जाता है।

आरती- wow..... इतना खूबसूरत डेकोरेशन..और साथ मे इतना स्मार्ट पर्सन...क्या इरादा है जनाब??...आप कुछ बोलेंगे? कहा खोये है आप?...मैं अच्छी नही लग रही?

मैं- चुप रहो। तुम अच्छी नही..बहुत अच्छी लग रही हो।

कैसे लब्जों मे बयां करू मैं खूबसूरती तुम्हारी..बस इतना समझ लीजिये मोहतरमा...

"सुंदरता का झरना भी तुम हो,

खूबसूरती का दरिया भी तुम हो

तुम्हे देख ये चाँद भी शर्माता होगा

तुम जैसा दूजा कोई अब

ये खुदा भी न बना पाता होगा"

आरती(मनमोहक मुस्कान के साथ)- अच्छा अच्छा और कुछ नही कहते। तारीफ करने मे जनाब का कोई सानी नही...बस तारीफ ही करेंगे या कुछ खिलाएंगे भी..बहुत भूख लगी है हमें।

मैं- ओहहो मेरी जान को भूख लगी है...मैं बनाता हु कुछ तुम्हारे लिये।

आरती- अच्छा क्या बनाएंगे आप मेरे लिए??

मैं- तुम जो कहो

आरती- अच्छा जी। तो दो पैग जाम बना दीजिये

मैं- फूल टू फूल रोमांटिक मूड मे हो आज तुम

आरती- आपकी नशीली आँखें देख कर कोई भी रोमांटिक और मदहोश हो जायेगा

मैं- आज तक तो कोई हुआ नही रोमांटिक और मदहोश तुम्हारे सिवाय

आरती- कोई ध्यान से आपकी आँखों को देखा नही होगा। देखा होता तो पक्का हो जाता

मैं- अच्छा अच्छा और कुछ नही कहते। तुम बैठो मैं कुछ बना के लाता हु तुम्हारे लिए

आरती- जैसी आपकी मर्जी।

मैं किचेन मे गया और मैगी व काफी बनाने लगा। दो मिनट बाद आरती हौले हौले कदमो से किचेन मे प्रवेश की

आरती- हमे पता था आप मैग्गी ही बनाओगे

मैं- कैसे पता तुम्हे??

आरती- थोड़े आलसी जो है आप। ज्यादा मेहनत वाला काम थोड़ी न करेंगे आप मेरे लिये

मैं- अच्छा जी। मतलब ये सारा यादगार पल खाना बनाने मे व्यर्थ कर दू

आरती- आप न झल्ले है। मजाक भी नही समझते

मैग्गी और काफी बनाने के बाद हमने एक दूसरे को मैगी खिलाया और उस यादगार लम्हे मे एक और यादगार लम्हा जोड़ दिया। खाने के बाद का लम्हा कुछ ज्यादा ही यादगार बन गया...

हुआ यूं कि.....

मैंने आरती के लिए एक पेंडेंट लिया था मैंने उस पेंडेंट को हाथ में लिए हौले हौले अपने कदमों को आरती की ओर बढ़ाते हुए उसके करीब पहुंचा फिर पीछे से धीरे से उसकी जुल्फों को हटाते हुए मैंने वह पेंडेंट आरती को पहना कर उसे चूम लिया। फिर हौले हौले आरती को अपनी तरफ रुख देते हुए मैंने अपनी पावन नजरों से आरती के ग्रीवा को निहारा। वह पेंडेंट आरती के हिरनी से लंबे गले में बहुत ही खूबसूरत लग रही थी। और पेंडेंट की लॉकेट उसके उजले जीम्र पर चांद के टुकड़े सा चमक रहा था।

फिर आरती को मैंने शीशे के सामने खड़ा करते हुए पूछा मुझे तो बहुत खूबसूरत लग रहा है। पर सच कहो क्या तुम्हें अच्छा लगा...?

आरती- अच्छा नहीं बहुत बहुत अच्छा लगा। जितना खूबसूरत पेंडेंट है, ठीक उतने ही खूबसूरती से आपने उसे सजाया भी मुझ पर। शुक्रिया आपके तोहफे व आपके अंदाज के लिए तो बिल्कुल कम है। फिर भी मैं अपनी खुशी जाहिर करने के लिए सौगात में आपको भी एक अंदाज दे सकती हूं ?

मैं - सौगात में अंदाज देने वाली बात मेरे समझ में नहीं आई...

आरती- आपके लिए मैंने चॉकलेट लाया है, तो शेयर करके खाया जाए?

मैं- बिल्कुल भला तुम अपनी खूबसूरत हाथों से मुझे कुछ खिलाओ और मैं मना करूं...

आरती- चलिए फिर आंखें बंद कीजिए।

मैं- अब भला चॉकलेट खिलाने के लिए आंखें क्यों बंद करुं?

आरती- मैंने कहा ना ज्यादा कुछ नहीं पर मैं सौगात में एक अंदाज दे सकती हुं। आप आंखें बंद करो,

मैंने अपनी आंखें बंद की।

कुछ 2 मिनट बाद बंद पलकों में मेरे होठों पर थोड़ी सीहरन से मेरी आंखें खुली...

आरती चॉकलेट अपने हाथों में नहीं अपने होठों से लिए मेरी बिल्कुल करीब खड़ी थी। मैंने भी वक्त जाया ना करते हुए उस खूबसूरत पल को रूह की गहराई तक नवाजा।

मैं और आरती ने एक दूसरे को होठों के सहारे चॉकलेट खिला रहे थे।

धीरे धीरे चॉकलेट की वो लंबी बाइट खत्म हुई और.... हमारे लबों के दरमियां दूरियां भी खत्म हुई... और फिर एक दफा हम दोनों के लबों ने एक दूजे के लबों को खूब लव किया।

आरती के लबों की गर्माहट ने मेरे रोम रोम को रोमांचित कर दिया और मेरा पूरा शरीर vibrate हो गया।

vibrate तो आरती भी हो रही थी। मेरी तरह उसका भी जर्रा जर्रा रोमांचित हो चला था। उस समय खुद पर काबू पाना बहुत मुश्किल था।उस मोमबत्ती की रोशनी में पलके झुकाये आरती अप्सराओं की भी राजकुमारी लग रही थी।

हम दोनो शर्मीले थे..इतना passionate kiss के बाद एक दूसरे से आँखें नही मिला पा रहे थे..लेकिन फिर 1-2 मिनट बाद हमने एक दूजे को गले से लगा कर खूब आहें भरी।

एक दूजे को गले लगाकर जो सुकून मिला उसे शब्दो मे बयां नही किया जा सकता। हम दोनो उस पल के एक एक पल को खूब एन्जॉय कर रहे थे।

हम दोनो एक दूजे की बाहों में सुकून का पल जी ही रहे थे तभी मुझे घर में किसी के आने की आहट सी मिली। मैंने कुछ घबराकर आरती से पूछा...

तुमने दरवाजा तो बंद किया था ना ?

आरती- ओहो शायद मैं दरवाजा बंद करना भूल गई हुं।

मैं- तुम यहीं रुको मैं दरवाजा बंद करके आता हूं।

मैं अभी हॉल से बाहर निकला ही था, कि....................

(शेष कहानी अगले भाग मे.....)             


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