PANKAJ GUPTA

Action Inspirational Others

3.7  

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पंखुड़ी

पंखुड़ी

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एक प्यारी सी अनहद खूबसूरत बाला। सिर्फ़ तन ही नहीं मन, हिया, और सोच भी, चमेली की फूलों के पंखुड़ियों सदृश कोमल है। अपने उम्र की 21वीं दहलीज़ पर आते आते इतने संघर्ष और रंग बिरंगे चेहरे देख चुकी पंखुड़ी के हृदय में इतने सारे तजुरबे है मानो वो 21 की नहीं, 61की है। इन सबके बावजूद मन और तन में भोलापन, सच्चाई और आँखों में चमक उसे औरों से अलग बनाती है। 

आज पंखुड़ी के लिए विशेष दिन है।

जैसा कि हर किसी के जीवन में एक समय आता है जब उसे अपना शहर छोड़ना पड़ता है।

पंखुड़ी के साथ भी ऐसा ही है, आज उसे अपना शहर छोड़ किसी बड़े शहर का रुख़ करना है। तो लाज़मी है, हृदय में एक लहर का उठना, तमाम तरह के प्रश्न, शंका, और आशंकाओं से मन का व्यथित होना, जो कि सबके साथ होता है, मेरे साथ भी हुआ है। पंखुड़ी का मन भी खुशी और ग़म के जद्दोजहद में फंसा हुआ है। घर और घर की दीवारें, खिड़कियां, चौखटें, किवाड़े, बिस्तरें, मेज़, कुर्सियां, किताबें, रसोई, अलमारी,अलमारी में पड़े कपड़े, बालकनी में पड़े हरे-भरे पौधों के गमलों से लेकर शहर के हर सड़क, हर गली, हर मोड़, हर चौराहे, जहां से वो अक्सर गुज़रती हैं, वो सब उस से कह रहे हैं कि अभी न जाओ छोड़कर....

घर से निकल कर जब गाड़ी में बैठती हैं और गाड़ी जब अपनी तेज़ रफ़्तार से शहर के सड़कों के बीचों बीच से गुज़र रही होती है तो सड़क के किनारे पर स्थित दुकानें जहां वो अपनी ज़रूरत की चीज़ों की खरीददारी करती है...सब के सब उससे जुदा हो रहे हैं ...

मन बेचैन हो उठा है लेकिन फ़िर अंतरात्मा से आवाज़ आ रही है कि फ़िर तो लौटना है, बस कुछ दिनों, महीनों या फिर कुछ वर्षों की ही तो बात है....

छोड़ना, छूट जाना, भूल जाना ..इन शब्दों की ध्वनि मात्र सुनकर ही पीड़ा की अनुभूति होती है लेकिन हर छोड़ना, छूटना का अर्थ पीड़ादायी ही नहीं होता... इसकी निर्भरता स्थिति-परिस्थिति पर है।

ख़ैर, जीवन है तो यह सब चलता ही रहेगा, इसी छोड़ने और पाने में जीवन की सार्थकता भी है, वरना जो शिथिल हो गया, जिसके अंदर आशा दम तोड़ने लगी हो, जिसमें कुछ अलग करने की जिज्ञासा समाप्त हो चुकी हो, जिस में प्रवाह नहीं, जो जीवन में जोखिम उठाने की साहस नहीं जुटा पाए वो जीवन, भला वो जीवन, जीवन है? 

छोड़ना, छूटना, भूलना, गिरना और फिर उठना, अपने और अपनों के सपनों के पथ पर चलना ही जीवन है। उम्मीद है पंखुड़ी अपनों के सपनों के पथ पर चले या ना चले, अपने सपनों के पथ पर जरूर चलेगी।



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