कच्ची उम्र का प्यार (भाग-12)
कच्ची उम्र का प्यार (भाग-12)
मैं हॉल से बाहर निकला ही था कि घर के अंदर दरवाजे के पास आरती का भाई जोंटी दो अन्य लड़को के साथ खड़ा था। मेरी तो जैसे सिट्टी पिट्टी गुम हो गई, होश ही उड़ गये....पल भर पहले जो खुशी का माहौल था वो अब तनाव मे तब्दील हो चुका था। जोंटी गुस्से मे लाल था। उसने अन्य लड़को को वही रुकने का इशारा करते हुए हमसे बिना कुछ बोले घर के और अंदर की तरफ जा रहा था। उस समय मुझमे उसे रोकने की हिम्मत ना थी...और रोक भी कैसे पाता?.. आखिर वो आरती का भाई था..और एक भाई के लिये ये स्थिति कितना मुश्किल होगा मैं समझ सकता था..जाहिर सी बात है इस मौके पर एक भाई का गुस्सा होना भी लाजिमी था।
हाल मे कैंडिल और गुलाब के साथ रोमान्टिक माहौल मे अपनी बहन को देख कर जोंटी का गुस्सा सातवें आसमाँ पर था। गुस्से से उसका चेहरा लाल था.....आरती अपने सामने जोंटी को पाकर बेहद असहज हो गई थी...उसे भी कुछ समझ नही आ रहा था।
उस तनाव के माहौल को आज भी याद कर रोंगटे खड़े हो जाते है...अब हाल मे एकदम सन्नाटा था। ना आरती के पास कोई शब्द था, ना मेरे पास..और जोंटी इतना गुस्सा या परेशान और स्तब्ध था कि वो भी कुछ बोल नही पा रहा था...आरती के हाथो को पकड़ कर वह उसे घर के बाहर ले जाने लगा..मैं कुछ कर नही सकता था..मैं जोंटी के सामने बेहद शर्मिंदा था..जाते समय उसने एक ही वाक्य बोला हमसे
"तुमको तो बतायेंगे हम"
अपने भाई के मुँह से मेरे लिए "आप" की जगह "तुम" शब्द का सम्बोधन सुन कर आरती और भी मायूस हो गई। हमें भी बुरा लगा लेकिन जब इस तरह की बात हो तो जोंटी का गुस्सा होना लाजमी था।
जोंटी आरती को लेकर चला गया। साथ ही साथ हमारे सपनो को भी तोड़ गया। उस दिन ना नींद आया ना चैन...और नींद आये भी तो कैसे ?..आरती के बारे मे सोच सोच के परेशान थे...बार बार मोबाइल का इनबॉक्स चेक कर रहे थे की कम से कम एक मेसेज आ जाये आरती का... लेकिन उस दिन ना तो आरती का कोई मेसेज आया ना ही काल...काल करने से भी डर लग रहा था की कही उसका मोबाइल जोंटी के पास न हो और इसकी पूरी संभावना भी लग रही थी...इसीलिए इंतज़ार के अलावा मेरे पास और कोई ऑप्शन नही था।
वह रात बड़ी ही भयावह रात थी। पूरी रात हम सो नही पाये..बस करवट बदलतें रह गये।तरह तरह के बुरे ख्याल मन मे आ रहे थे..कही जोंटी,आरती का कॉलेज न छुड़वा दे ...कही फोन न जब्त कर ले...उसपे हाथ तो नही उठाया होगा?..मुझे कोचिंग पे कही बेइज़्ज़त ना कर दे...इस तरह के बुरे ख्याल मेरे मन को और पीड़ा पहुँचा रहे थे...अब तो बस एक ही रास्ता था...ईश्वर पे भरोसा करना..क्योंकि वही ये सब चीज़े सही कर सकते थे..जैसे तैसे वो रात कटी....सुबह हमसे रहा नही गया और मैंने कांपते हाथो से आरती को काल लगाया..
......लेकिन ये क्या...नम्बर स्विच ऑफ था। मेरी बेचैनी और भी बढ़ गई लेकिन और कुछ कर भी नही सकता था..मजबूरी इंसान के लिए सबसे बड़ा अभिशाप होता है हमे उस दिन पता चला। अब आरती का ना काल आता था ना मेसेज....उसका नंबर भी नही लगता था....उसके बारे मे कोई सूचना भी प्राप्त नही होती थी...
अब हर दिन बड़ा गम जैसा लगने लगा...वो दिन कितना मुश्किल था शब्दो मे नही बता सकते
"उन दिनों के हाले-ए-गम
अपना क्या बताऊ आपको
दिल से बाते करना दस्तूर था हमारा
लोग मरते है एक बार मे जिंदगी में
हर रोज़ मरना फ़ितूर था हमारा"
(शेष कहानी अगले भाग में....)