PANKAJ GUPTA

Romance

4.5  

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कच्ची उम्र का प्यार (भाग-15)

कच्ची उम्र का प्यार (भाग-15)

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पता नहीं किस्मत में क्या लिखा था। आरती किसी और की हो चुकी थी लेकिन इस तरह आरती का मेरी जिंदगी में बार बार आना...पता नही खुदा मेरे साथ कौन सा खेल रहे थे।

आरती के लिए मेरे दिल मे अब भी वही जगह थी जो कॉलेज के समय हुआ करती थी...इस बात का एहसास मुझे उस दिन हो रहा था।

आरती परेशान है ये बाते कहीं न कहीं हमे बहुत परेशान कर रही थी और अब जिंदगी का एक मकसद बन चुका था कि आरती की परेशानी को जानकर उसे दूर करना है।

अब मैं विजय के आमंत्रण का इंतजार करने लगा और यह इंतजार आरती के जन्मदिन के एक दिन पहले खत्म हुआ जब विजय ने आफिस में हमे घर आने के लिए निमंत्रित किया।

विजय- सर फ्री हो तो कल घर पे आइयेगा। और आपके रात का भोजन मेरे यहाँ ही होगा

मैं- जरूर। हम आयेंगे

विजय ने नही बताया कि कल आरती का जन्मदिन है लेकिन आरती का जन्मदिन भला मैं कैसे भूल सकता था।

अब कल के लिए मेरे सामने गिफ्ट चुनने की चुनौती थी क्योंकि आरती अब शादी-शुदा थी। और उसके लिए आँख मूंद कर कोई भी गिफ्ट ले जाना मूर्खता थी। काफी माथापच्ची के बाद मैंने गिफ्ट शॉप से राधा-कृष्णा की एक छोटी व सुंदर मैटेलिक आईडल खरीदा।

अगले दिन शाम करीब 7 बजे मैं विजय के घर पहुँचा। बेल बजाया और दरवाजा खुलते ही धानी रंग की साड़ी पहले आरती के दर्शन हुए। हमेशा की तरह वो बहुत खूबसूरत लग रही थी।

गिफ्ट देते हुए मैने उसे जन्मदिन की बधाई दी।

फिर पूछा विजय कहा है?

आरती- वो मार्केट गये है। आते ही होंगे।

मैं- आज तुम्हारा जन्मदिन है और तुम अकेली हो घर में।

आरती- मैं जन्मदिन मना कहा रही थी। वो तो इसबार मनाने की सोची ताकि आपको आमंत्रित कर सकू।

मैंने गौर किया आरती कुछ घबराई हुई है। मैंने उसे बैठने के लिए कहा लेकिन वो खड़ी रही। मैंने महसूस किया वो कुछ कहना चाहती है लेकिन कह नही पा रही।

उसकी घबराहट को देखकर मैं कुछ पल के भूल गया कि वो शादी शुदा है और सोफे से उठकर उसकी हाथो को पकड़ कर पास बैठाने ही वाला था कि मेरी नजर उसकी चूड़ियों पर गई। फिर मुझे ध्यान आया आरती शादी शुदा है और मैंने खुद को कंट्रोल किया। लेकिन मुझे खड़ा होकर देख आरती खुद को रोक ना पाई और मेरे गले लग गई। मैं असमंजस में पड़ गया

मेरा दिल मुझसे दो तरह की बाते कह रहा था।और दोनो बाते एक दूसरे के विपरीत थी। पहले ये लगा ये तो गलत है..हम ऐसा कर आरती की जिंदगी को खराब नही कर सकते..फिर दुसरे पल लगा कि आरती किसी संकट में है उसे मेरी सख्त जरूरत है..और शायद अभी भी वो मुझसे प्यार कर करती है। दो पल की जहोंजहद के बाद मैंने आरती के साथ जाने का निर्णय लिया लेकिन तब तक आरती हमसे अलग हो गई।

उसकी आँखों मे आँसु थे। आँसु को छुपाकर रुंध गले से सॉरी बोलते हुए पीछे मुड़कर वो अंदर कमरे की तरफ जाने लगी। मैं स्तब्ध वही खड़ा था। अब तो मैं पूरी तरह आश्वस्त था कि आरती को मेरी बेहद जरूरत है। मैंने हिम्मत की और अंदर की तरफ गया। अंदर में दो कमरे थे। एक कमरे का दरवाजा खुला हुआ था लेकिन उस कमरे में आरती नही थी। दूसरे कमरे का दरवाजा अंदर से बन्द था..हमने दरवाजा नॉक किया लेकिन आरती ने दरवाजा नही खोला..हमने आरती को आवाज दी लेकिन वो खोल नही रही थी काफी प्रयास के बाद उसने दरवाजा खोला ।

दरवाजा खुलने के बाद हम दोनों एक दूसरे से लिपट गये। अर्सो बाद एक दूजे का आलिंगन से एक दूसरे के जज्बातों को, धड़कनों को साफ साफ महसूस कर सकते थे। लेकिन आरती से प्यार कुछ इस क़दर था कि उसके साथ कुछ भी गलत हो ये हम बिल्कुल नही चाहते थे। कुछ सोचकर मैंने अभी फीलिंग्स पर कंट्रोल किया और आरती से अलग हो गए। अलग होने के बाद आरती की नजरें फर्श की तरफ थी और आँखें नम थी।

आरती - प्लीज़ आप वही जाके बैठ जाओ सोफे पे

मुझे लगा मैंने गलत किया..कोई तो बात है जिससे आरती बेहद परेशान है।

मैंने आरती के माथे पर चुंबन करते हुए पूछा

"क्या बात है मुझे सब बताओ"

कुछ देर हम दोनों वही खड़े रहे। पूरा सन्नाटा था। फिर कुछ देर बाद

आरती- मैं बताना नही चाहती किसी को भी। मैं हार मान चुकी थी लेकिन पुनः आपको देख कर लगा कि आप अपने हो आपको बताना चाहिए।

मैं- हा मैं तुम्हारा ही हूं। तुम पूरी बात बताओ।

आरती ने कांपते हाथो से मेरी तरफ कागज का एक टुकड़ा बढ़ाते हुए रुंध गले से कहा

" मैंने कुछ लिखा है इस पर। आप इसे अपने घर पर पढ़ लीजिएगा। सब पता चल जाएगा आपको। अभी आप हाल में सोफे पे बैठिए। वो आते ही होंगे। मैं तब तक काफी बना के लाती हूँ।"

मैं सोफे के पास चला आया।

मैं जल्द से जल्द उस लेटर को पढ़ना चाहता था लेकिन विजय के आने का समय था और लेटर को वहां पढ़ना उचित नही था। अब मैं जल्द से जल्द घर जाना चाहता था ताकि मैं जल्द से जल्द पत्र को पढ़ सकू।

कुछ मिनटों बाद विजय आया। आरती का जन्मदिन सेलिब्रेट किया गया। केक काटे गए लेकिन वो खुशी नही थी। हालांकि जन्मदिन मनाने के बाद आरती के स्वादिष्ट छोले भटूरे व खीर खाकर खुशी नसीब हुई लेकिन कहीं न कहीं सारा मन उस लेटर को जल्दी से पढ़ने पे फोकस था। उसके बाद मैं जाने लगा। जाते वक्त भी आरती की नजरें हमें ऐसे देख रही थी मानो वो हमसे बहुत कुछ चाहती है।


(.......शेष कहानी अगले भाग में)


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