PANKAJ GUPTA

Drama Romance Tragedy

3.8  

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Drama Romance Tragedy

कच्ची उम्र का प्यार (भाग-14)

कच्ची उम्र का प्यार (भाग-14)

6 mins
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उस ट्रेन की घटना के ठीक तीन महीने बाद मेरा यू०पी०एस०सी० का एग्जाम था। मैंने पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित किया और जी जान से अपने तैयारी के अंतिम दौर का रीविज़न करने लगा। फिर परीक्षा का दिन भी आ गया। 

वाराणसी में ही परीक्षा केंद्र था मेरा। 

परीक्षा केंद्र की हालत सही नही थी। केंद्र के बाहर ना बैठने की जगह.ना कोई वाशरूम। यू०पी०एस०सी० प्री के पहले पेपर की परीक्षा सुबह 9 से 12 तक होनी थी। दूसरा पेपर उसी दिन 2 से 5 बजे तक थी।

मैं ठीक आधे घण्टे पहले केंद्र पर पहुच गया और ठीक 8:35 बजे अपने सीट पर भी बैठ गया।

भीषण गर्मी थी और मेरा कमरा ऊपरी मंजिल पर था। उस कमरे में मात्र एक पंखा लगा हुआ था...मेरी सीट अंत वाले बेंच पर थी और पंखा बीच में..और उसकी स्पीड ऐसी थी मानो उसमें जान ही नही है। चूंकि मैं पसीने से लतपथ था इसीलिए मैंने सोचा जब तक पेपर नही बट रहा है मैं बीच के बेंच पर बैठ जाता हूँ। पसीने से थोड़ी तो राहत मिलेगी। मैं बीच वाले बेंच पर बैठ गया।पसीने सूखने के बाद मैं आराम की मुद्रा में बेंच पर नीचे की तरफ सर रखकर आराम फरमा रहा था तभी किसी की आवाज आई

"एक्सक्यूज़ मी... ये मेरी सीट है।"

उस आवाज़ से हमें कुछ अनुभूति हुई कि ये जाना पहचान सा है...मैंने सर उठाकर देखा तो मेरी आश्चर्य की सीमा ना रही और मुँह से निकल पड़ा।

"......आरती ?"

आरती- "आप ?"

फिर हमदोनो आश्चर्य से निःशब्द हो गये

मैरून कलर का समीज, दुप्पटा, आँखों में वही चमक, चेहरे पर वही तेज..वही गुलाबी रुखसार, वही होंठ...वो असीम प्यार, वो चाहत, जन्मदिन, सुकून से गले लगाना, वो रोमांटिक किस, वो रोमांटिक पल, वो घण्टों फोन की बाते... मात्र कुछ सेकंडों में ही आरती और मेरा पूरा भूतकाल मेरे चेहरे के सामने गोते लगा गया।

तभी बेल बज गई और पेपर बटने शुरू हो गये। सबको आवंटित किये हुए सीट पर बैठने को कहा गया।

मैंने आरती से बोला 

"परीक्षा के बाद बात करते है..पहले अच्छे से एग्जाम दो...ऑल द बेस्ट"

आरती- "आप भी पूरा फोकस करना एग्जाम पे...एग्जाम बाद बात करती हु आपसे...बेस्ट ऑफ लक"

पहले 10-15 मिनट तो आरती के बारें में ही सोचने में निकल गये लेकिन यूपीएससी का पेपर था तो फोकस करना बेहद जरूरी थी। आरती को देखने के बाद एक गजब का ऊर्जा का संचार हुआ था और हमने उस ऊर्जा का उपयोग भी किया और मेरा परीक्षा अच्छा गया।

एग्जाम के बाद हमने वही बैठने की कोशिश की लेकिन परीक्षक महोदय ने हम दोनो को क्लास रूम के बाहर जाने की हिदायत दी। 

क्लास रूम से निकलकर हमलोग सीढियों पर आ गये। मैं हिम्मत नही जुटा पा रहा था की किस तरह बात शुरू करू। 

लेकिंन आरती के अंदर हिम्मत थी

आरती-"कैसे है आप"

मैं- अच्छा हु। तुम कैसी हो

आरती-"मैं भी अच्छी हूं। कहा रहते है आप? और क्या करते है ?"


मैं- मैं जलनिगम में अवर अभियंता हूं। यही श्री राम नगर कॉलोनी, वाराणसी में रहता हूं ।

आरती-" क्या ?...सच ?"

मैं-हा। झूठ क्यों बोलेंगे

आरती- हम भी तो वही रहते है। किराये के मकान में अपने हस्बैंड के साथ

मैं- really ?

आरती- हा

मैं- अच्छा तुम उनके साथ आई हो? क्या नाम है उनका ?

आरती- विजय। मिलना चाहोगे आप ?

मैं- (कुछ सोचकर) हा जरूर

आरती-ठीक है आइये मिलाते है

गेट के बाहर निकलकर आरती ने ज्यो ही विजय से हमको मिलवाया

आरती- सुनिये ये है पंकज सर...मेरे कॉलेज के....

मेरी आँखें फटी की फटी रह गई। 

ये तो वही विजय है जो मेरे division में बाबू है..

विजय ने हमें नमस्ते तो किया लेकिन वो भी असमंसज में था....

विजय और हमें ऐसे देखकर आरती भी अचंभित थी। मैंने इस असमंज को दूर करने के लिए बोला आओ सब कही बैठ के बात करते है। परीक्षा केंद्र के आसपास बैठने की कोई व्यवस्था भी नही थी। 

तभी विजय बोला सर हम अपनी कार से है चलिये पास में एक रेस्तरां है अभी 1:30 समय है सेकंड पेपर में

फिर हमलोग कार में बैठकर रेस्त्रां गये।

रेस्त्रां में हमलोगो ने एक दूसरे के शंकाओ का समाधान किया।

आरती और भी खुश लग रही थी ये जानकर की विजय मेरे साथ काम करते है। हमने और आरती ने विजय को अपने प्यार से रूबरू नही कराया और रूबरू कराना भी उचित नही था...छुपाना ही सही था...क्योंकि उस प्यार का अब कोई मतलब नही था...आरती अपनी जिंदगी में खुश थी। हमें ये तो पता था की विजय मेरे ही कॉलोनी में रहता है और ये जानकर खुशी भी हुई की आरती मेरे ही कॉलोनी में रहती है लेकिन ये जानकर हमें अच्छा नही लगा कि विजय उसका पति है क्योंकि मैं विजय के कार्य व्यवहार से परिचित था और विजय को मैं एक-दो दफ़ा किसी अन्य महिला के साथ शॉपिंग माल में भी देख चुका था। शॉपिंग माल में दिखी महिला को ही मैं विजय की पत्नी समझता था। और आज पता चला की आरती उसकी पत्नी है।

ये प्रश्न मेरे दिमाग में कौंध रहा था की कही विजय आरती को धोखा तो नही दे रहा है लेकिन ये सब पूछने का सही समय नही था अतः मैं चुप रहा। विजय का कार्य व्यवहार भी बहुतो को नही पसन्द था। संक्षेप में कहु तो वह आरती के लिए परफ़ेक्ट नही था।

रेस्त्रां के बाद हमलोग वापस सेकंड पेपर देने आ गये। सेकंड पेपर देने जाते समय सीढियों पर आरती ने पूछा या यूँ कहे अपना कंसर्न जताया

"मेरी वजह से आपको उन दिनों बहुत परेशांन होना पड़ा था उसके लिए सॉरी। मैं आपसे बात करना चाहती हूं... लेकिन समझ नही आ रहा कैसे.....कहा...और कब"

मैंने सोचा नम्बर एक्सचेंज कर लेते है लेकिन फिर यह सोचकर चुप रहा कि मेरी वजह से आरती की खुशी ना मिट जाय।

परीक्षा के बाद हमदोनो एक दूसरे के मनोभावो को, चेहरो को आसानी से फील कर सकते थे।

दोनो कुछ कहना चाहते थे.. कई वर्षो की आपबीती को एक दूसरे से शेयर करना चाहते थे... एक दूसरे के सुख दुख से वाकिफ होना चाहते थे... एक दूसरे के पल पल से वाकिफ होना चाहते थे। लेकिन ना जगह था.. ना सही समय

काश आरती अकेले आई होती तो जरूर एक इतने वर्षो की कहानी को उसी दिन जान गये होते लेकिन काश..काश ही होता है।

अंत में जाते समय अपने हस्बैंड के सामने आरती ने बड़े ही हिम्मत से लेकिन कुछ घबराहट भरी आवाज में कहा

"सर अच्छा लगा आपसे मिल के।आप हमारे ही कॉलोनी में रहते है लेकिन कभी घर नही आये ...कभी समय निकाल कर आइये डिनर पर हमारे यहा... अच्छा लगेगा हमदोनो को"

इतना सुनकर विजय के चेहरे पर हम शिकन को साफ पढ़ सकते थे। लेकिन आरती के निमंत्रण को अस्वीकार करने की हिम्मत मुझमें ना थी। सच बताऊ तो वो निमंत्रण नही था..वह एक संकेत था की आरती ठीक नही है...उसे मेरी जरूरत है।

 मैं भी चाहता था आरती के जिंदगी की कहानी को जान सकूँ... उसका साथ दे सकू...और मैंने निमंत्रण को स्वीकार कर आने की हामी भर दी

मैं- जरूर कभी आएंगे तुम्हारे घर

आरती- आई एम सोरी। हमें ध्यान ही नही था..आपको भी तो उसी कॉलोनी जाना है...आप भी चलिये हमलोगों के साथ।

हम तीनो कार में बैठ गये।

रास्ते में हम तीनो चुप थे। कुछ समय बाद हमारा घर आ गया... और एक क्यूट सी मुस्कान लेकिन हमसे कुछ उम्मीद के साथ आरती ने हमसे विदा लिया।

उस दिन आरती से इतने वर्षो बाद मिलकर खुशी तो हुईं लेकिन ऐसा महसूस हुआ कि आरती आंतरिक रूप से बेहद परेशान है और वह हमसे कुछ कहना चाहती है। 

.......शेष कहानी अगले भाग में


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