विनोद महर्षि'अप्रिय'

Horror

2.1  

विनोद महर्षि'अप्रिय'

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कब्रिस्तान की सैर

कब्रिस्तान की सैर

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एक रोज़ में जिंदगी से कुछ तंग था। समाज के माहौल से परेशान सा होकर शाम के खाने के बाद घूमने निकल पड़ा। कुछ सोचते सोचते, शहर की गलियों से होकर निकल रहा था। रात के कोई 10 बजे होंगे। चलते चलते एक घर से बर्तनों के फैंकने जैसी आवाज़ आई तो रुक गया ।सोचा कि रुक कर कुछ देखूं। लेकिन किसी के घर में झाँकना गलत है सोच कर रुक गया। कान लगाकर सुनने लगा। एक शराबी अपनी पत्नी से लड़ाई कर रहा था।

कलमुँही ऐसी रोटी बनाती है। यह देख आधी पक्की हुई रोटी है।

तो क्या करूँ तुम्ही बताओ? आजम दादा से 5 रुपये के कोयले लाई थी, अब इतनी सी अंगीठी में क्या क्या पकाऊँ। और हम तो रोज़ ही कच्ची ही खाते है। दूध मुंहे बच्चे ऐसी रोटी खाते है वो नहीं दिखता तुमको। हर रोज 100 रुपये का बेवड़ा पीकर आ जाते हो। वो पैसे घर में दिया करो। क्रोध में पत्नी कह रही थी।

चुप, कुलटा..जबान लड़ाती है। मैं कम कमाता हूँ तो तू जबान लड़ाएगी क्या मुझसे।

इसके बाद एक और जोर से बर्तन फैंकने की आवाज़ आई, और साथ ही औरत के रोने की भी। बच्चों के चीखने की आवाज़ भी आने लगी। शायद वो शराब के नशे में पत्नी को पीट रहा था। मुझसे ज्यादा नहीं सुना गया। और मैं आगे बढ़ गया। अभी थोड़ा सा चला था कि एक सज्जन की आवाज़ सुनाई दी। शायद फ़ोन पर बात कर रहा था।

देखिये मैं कुछ नहीं सुनना चाहता। आपको चुनाव के समय बैग भरकर नोट दिए थे। अब आपको जितनी जरूरत है और ले लीजिए। लेकिन मेरे बेटे का नाम अखबार में आया ना तो सोच लेना मैं आपकी पार्टी के सभी कच्चे चिट्ठे खोल दूँगा।

तो क्या हो गया जवान खून था गरमा गया। दे दो दो चार लाख और करो मुंह बन्द।

हां तो जांच अधिकारी के घर भी मिठाई भेज दो। क्या है उसमें।


अब तो मष्तिष्क घूम गया। यह तो सारे सिस्टम में ही भ्र्ष्टाचार भरा हुआ है। सोचते सोचते आगे चलने लगा। थोड़ा सा आगे बढ़ा था कि एक नौजवान अपने घर के आगे खड़ा था। अंदर से एक औरत उसे बार बार बुला रही थी, समझा रही थी और वो अभद्र भाषा में बके जा रहा था। वो औरत शायद उसकी माँ थी। और वो युवक नशे में धुत्त था।

इस वय में इस तरह नशे का आदि होना और ऐसी अभद्र भाषा का इस्तेमाल देखकर वो बात याद आई जो अक्सर हम कहते है कि यह युवा देश का भविष्य है। जबकि हकीक़त तो यह है कि भविष्य तो शराब की बोतल में डूबा हुआ है। मन में बहुत ग्लानि हुई। मेरे स्वयं के विचार अब शून्य हो गए और जो आंखों से देख रहा था, सुन रहा था उसके बारे में सोचने लगा।


अगले ही पल में मैं एक समाज सेवक ही तरह सोचने लगा। यह वाकये जो अक्सर हम समाज में देखते है सुनते है। वास्तव में असली जहर यह है लेकिन इनकी भी जड़े कहीं न कहीं सिस्टम तक जाती है। चाहे शराब हो, रिश्वत हो, या फिर बेरोजगारी। सब इसी सिस्टम की शाखा है।

चलते चलते और सोचते सोचते मुझे पता नहीं चला कि कब मैं शहर के बाहर कब्रिस्तान तक पहुंच गया। बाहर कुत्ते भोंकने लगे। जैसे कि कह रहे हो कि तुम यहां क्या करने आये हो। यहां तो सिर्फ संसार से विमुख इंसान किसी झूठी हमदर्दी के कंधे पर आता है। तुम अपने पैरों पर चलकर किस लिये आये हो। कहीं जायदाद के लिए अपने पिताजी की कब्र पर पत्थर लगाने तो नहीं आये हो ना?

मैं सलीके से पास पहुंचा तो उन्होंने भोंकना बन्द कर दिया। मैंने जैसे ही कब्रिस्तान में कदम रखा, एक भूचाल सा आ गया। अचानक हलचल सी मच गई। एक तेज़ हवा का झोंका आया और अपने साथ धूल उड़ा कर चला गया। फिर एक मंद भरी हँसी सुनाई दी। एक बारगी मैं डर गया। कब्रिस्तान के बारे में बहुत सी बातें सुन रखी थी। लेकिन आज अनजाने में ही अंदर आ गया था।

मैं बहुत डर गया, वापिस भागकर आया तो देखा कि गेट पर 3/4 कुत्ते विकराल रूप में भोंक रहे थे। मुझे बाहर निकलने का रास्ता नहीं दिया उन्होंने। जैसे कि कह रहे हो कि यहां तक आये हो तो अंदर सब कुछ देखो महसूस करो। वरना बाहर नहीं जाने देंगे।

मैंने कोशिश की बाहर निकलने की लेकिन एक कुत्ते ने मेरी तरफ गुर्राकर झपटा मारा। मारे भय के मैं कब्रिस्तान के अंदर भागा और एकदम बीच में आ गया। अंदर का दृश्य तो और भी विकराल था।

चारों तरफ बस कब्र ही कब्र थी। कुछ टूटी फूटी तो कुछ एकदम चकाचक, कुछ पर नाम अंकित थे तो कुछ बिना ढकी हुई थी। मैं डरने की बजाय उत्सुक हो गया। आगे देखने लगा। जैसे सोचा और सुना था वैसा तो नहीं होता कब्रिस्तान। बाहर बाजार की गली से ज्यादा सुकून इस कब्रिस्तान में लगा मुझे। वैसे यह मेरा वहम भी हो सकता है।

अचानक एक लंबा चौड़ा व्यक्ति मेरे पास खड़ा था,

क्या देख रहे हो? उसने कहा, मैं एकदम से डर गया।

अरे भाई यहां क्यों आये हो। क्या देख रहे हो। उसने फिर कहा।

जी कुछ नहीं आ.. आ.. आप कौन?

डरो मत, मुझे बताओ किसकी कब्र ढूंढ रहे हो में तुम्हारी मदद कर देता हूं।

तुम सबकी कब्रे जानते हो?

हां, पिछले 30 साल से हूँ इस कब्रिस्तान में। सब जानता हूं।

ठीक है, चलो फिर, देखते है की तुम कितना जानते हो।

सबसे पहले मैने एक चकाचक नई बनी कब्र के बारे में पूछा।

यह किसकी है?

यह एक नेता की है। सुना है इसके ऊपर छपर भी लगेगा, ताकि नेताजी का धूप - बरसात से बचाव हो।

ह्म्म्म...

आगे बढ़े तो एक बिल्कुल जर्जर कब्र दिखी। मैने पूछा भाई यह किसकी है? लगता है दफनाने के बाद किसी ने इसको सम्भाला भी नही।

हां यह एक समाज सेवक की है। बाजार में सम्प्रदायिक दंगे में मारा गया बेचारा और चंदे के पैसे से दफनाया गया। अब संभालने वाला कौन है!!

आगे एक कब्र पर फूल रखा था। मैंने कहा लगता है यह किसी आशिक की कब्र है।

नहीं, यह एक शहीद की कब्र है, अभी 2 दिन पहले ही शहीद हुआ था।

इसका मतलब शहीदों का तो सम्मान होता है।

नहीं ! बस 2/4 दिन कुछ नेता आते हैं , फूल चढ़ाते है। फिर कोई सुध नहीं लेता।

हम्म्म्म... सही है शहीदों के परिवार की ही सुध नहीं लेता कोई तो कब्र की भला कौन लेगा। मैंने कहा।

आगे बढ़ते गए ऐसे ही एक एक कब्र के बारे में वो मुझे बताता गया। मेरी उत्सुकता बढ़ती गई और मुझे जवाब भी मिलता गया। मन के एक एक प्रश्न हर एक कब्र पर हल हो रहे थे।

आगे चला तो एक अनोखी कब्र देखी जो चार भाग में बंटी हुई थी चारों भागों में अलग अलग तरह के पत्थर लगे थे।

वाह,, इसका भाग्य कितना अच्छा है। कितनी अच्छी सजाई गई है। मैंने कहा।

नही... इसकी कहानी भी अलग है। यह एक अमीर वृद्ध की कब्र है, जिसके चार बेटे है। अंतिम सांस तो बेचारे ने वृद्धाश्रम में ली। लेकिन मौत के दूसरे दिन ही चारों बेटे आ धमके। और हर चीज़ का बंटवारा भी कर लिया। लोगों को दिखाने के लिए मुर्दे की कब्र को भी चार भागों में बांट दिया।

मैने एक ठंडी सांस ली, सच है यह तो ऐसा ही होता है। आजकल। अब मैं आगे बढ़ा तो एक छोटी कब्र दिखी। जिस पर बहुत से पुष्प थे और कैंडल भी।

मुझे अजीब सा लगा।

मैंने पूछा यार इस कब्र की क्या कहानी है?

वो भावुक होकर बोला "बाबूजी, इस दुनिया से यकीन ही उठ गया है। इस कब्रिस्तान में आकर सुकून मिला है मुझे तो वरना दुनिया में जब तक था तब तक आँसू ही बहते थे।"

मैंने पूछा, "भाई ऐसी क्या बात है? बताओ इस छोटी कब्र का राज।"

"बाबूजी कुछ दिन पहले एक 8 साल की बच्ची का कुछ दरिंदो ने मिलकर बलात्कार किया और उसे मार डाला। समाज के सभ्य इंसानों ने जुलुस निकाला। रोज कोई ना कोई यहां आता कैंडल जलाता और पुष्प अर्पित करता। बड़े बड़े अखबारों में मुख्य पृष्ठ पर भी खूब छपा। बड़ी हस्तियां कुछ दिन ब्लॉग ट्विटर और फेसबुक पर हमदर्दी से लिखने लगे। बाजारों में कैंडल मार्च भी हुए। नई कमेटी बनाने की भी बातें चली। बस 10 दिन यह झमेला चला उसके बाद कोई इधर नहीं दिखा।"

सच में मैं भी भावुक हो गया। यार हम इतने गिर गए है समाज के चश्में से हमें दिखाई नहीं देता है। जो आज इस कब्रिस्तान में आकर दिखा। हम यही सब तो करते है। लेकिन वास्तविक्ता से कोसों दूर हमने कभी सच्चाई के लिए नहीं बल्कि स्वार्थ के लिए ही कुछ किया है।

आज जाना कि असली मंदिर तो यह कब्रिस्तान है। जहां इंसान कुछ मांगता नहीं है बस यहां आकर पश्चाताप ज़रूर करता है। भले ही चंद पलों के लिए ही सही लेकिन सोचता तो है। बाहर की चकाचोंध दुनिया में तो बस अपने दिखावे के लिए अपनी साख के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते है। कहीं रिश्तों का खून होता है तो कहीं लाशों की सीढ़ियां बनाते है। कहीं इंसानियत को शर्मशार करते हैं तो कहीं किसी की लाचारी का फायदा उठाते है। यही एक जगह ऐसी है जहां अपने किये कर्म की असलियत नजर आने लगती है।

सच में घर से निकल कर आज जो कुछ देखा सुना वो अद्भुत था। अकल्पनीय था। समाज के अंदर से तो वो आईना साफ नहीं दिखाता है, लेकिन यह आईना सब कुछ स्पष्ट दिखा गया। बाहर का हिंदुस्तान तो कब्रिस्तान बन चुका है और आज कब्रिस्तान में असली हिंदुस्तान के दर्शन कर लिए।

चलते चलते वापिस गेट पर पहुंच गए। मैं उस भले आदमी का शुक्रिया करने लगा और पूछा कि आप यहां कैसे रहते हो। क्या आपको डर नहीं लगता।

नहीं बाबूजी , पहले लगता था। जब जिंदा था। अब तो रात भर इस कब्रिस्तान की सैर करता हूँ और खुश रहता हूँ ।

मेरी आँखें फटी की फटी रह गई। मुझे चक्कर आ गया। इतनी देर मैं एक भूत के साथ था।

उसने सम्भालते हुए कहा "बाबूजी, आजकल इंसानों के जितने डरावने भूत नहीं है।"

मैं वहीं गिर गया।

अचानक बीवी की तेज़ आवाज से आँख खुली तो पता चला कि घर पर सो रहा हूँ। बाहर तेज़ धूप निकली हुई है और पक्षियों के चहकने की आवाज़ आ रही है।

ओह!! मैं तो सपना देख रहा था। लेकिन इस भयानक सपने ने मुझे बहुत ही अच्छे दर्शन कराए। समाज का वो रूप दिखाया। जो शायद हम देख कर भी अनदेखा कर देते है।



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