विनोद महर्षि'अप्रिय'

Tragedy

5.0  

विनोद महर्षि'अप्रिय'

Tragedy

पत्र, जो लिखा मगर भेजा नहीं

पत्र, जो लिखा मगर भेजा नहीं

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हेल्लो प्रिया,

कैसी हो।

मै तुम्हे बहुत याद करता हूं। जब हम कॉलेज में साथ थे तब हम कितने खुश रहते थे और अब बस तन्हा रहता हूं। पता नहीं तुम कैसे खुद को सम्भाल पाती हो! मै तो रोज उन दिनों को याद करके आंखो से दरिया बहाता हूं।


तुम हमेशा कहती थी कि हम कब तक साथ रहेंगे। हमें कुछ सोचना चाहिए।


उस वक्त शायद मै तुम्हारी बात समझ नहीं सका, लेकिन आज मै तुमसे दूर हूं तो समझ में आता है कि तुम्हारा इशारा क्या था। आज मै हिम्मत जुटा पाया हूं तुमसे कुछ कहने की। शायद तुम्हारी आंखो में देखकर मै यह नहीं कह पाता, इसलिए मै तुम्हे यह पत्र लिख रहा हूं।


मेरी नादानियों को माफ करना और दूर रहकर तुम्हें जो तकलीफ दी उसको भी भूल जाओ। अब मै जीवनभर तुम्हारे साथ रहकर तुम्हें हरपल बस खुशियां ही देना चाहता हूं।


मेरे जीवन में आ जाओ और हम मिलकर इस सागर की लहरों का आनंद लेते हुए इसमें मोती चुनेंगे। आज मुझे एहसास है कि मै तुम्हे बेइंतहा प्यार करता हूं।


पत्र पूरा नहीं पढ़ पाया। क्योंकि बहुत हिम्मत करके पत्र लिखा था लेकिन इस पत्र को प्रिया तक भेज नहीं पाया। आज दो साल बाद मेरे घर पर प्रिया की शादी का कार्ड आया तो मेरी पुरानी संदूक में से यह पत्र निकालकर मै पढ़ने लगा और सोच रहा हूं कि समय पर यदि मै हिम्मत करता और उसके जज्बात की कद्र करता तो आज मै यूं तन्हा ना होता।


लेकिन अब क्या फायदा? प्रिया किसी और के साथ बंधन में बंधने जा रही है और मै बस उसकी यादों के साथ बैठा हूं।


आंखों से बूंदे निकलकर पत्र पर गिरी और प्रिया का नाम उस पानी से धुंधला हो गया!!!


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