Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Tragedy Inspirational

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Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Tragedy Inspirational

काश ! काश ! 0.08...

काश ! काश ! 0.08...

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उधर नवीन को, नेहा का बच्चों सहित, उसके भाई गौरव के घर रहने जाने का बहुत दुःख हुआ था। रविवार के सामान्य दिनों में उसे सैर-सपाटा बहुत पसंद होता था। नेहा एवं बच्चे यदि साथ आना नहीं चाहते थे तब भी वह अकेले ही शहर में मटर गश्ती के लिए निकल जाया करता था। आज अकेला होने पर भी वह बाहर घूमने नहीं निकल पाया था। नेहा पर उसकी पोल खुल जाने से उसे, शर्मिंदगी एवं ग्लानि होती लग रही थी। 

उस दिन वह कभी सोफे पर अध पसरा पड़ा रहा था या कभी सोने की कोशिश करता रहा था। नेहा का बनाकर रख दिया गया खाना खाया था। इन सबके बीच उस पर निराशा एवं अवसाद छाया रहा था। टीवी देखने का मन भी नहीं हुआ था। यह नवीन के मन में, नेहा के उसके विरुद्ध विद्रोह की आरंभिक प्रतिक्रिया थी। 

संध्या साढ़े छह बजते तक उसका ग्लानि बोध कम हो गया था। अब वह मन ही मन, अपने पक्ष के तर्क करने लगा था। वह सोचने लगा कि यार! यह क्या है, दुनिया के मर्द क्या क्या गुल नहीं खिला रहे हैं? उसने तो सिर्फ रिया का हाथ ही तो पकड़ा था। अब उसे नेहा का यूँ भड़क के जाना, अपने पर अन्याय लगने लगा था। वह सोचने लगा था कि क्या यह कम सजा दी थी नेहा ने कि किसी भड़के घोड़े की तरह पंद्रह दिनों में, उसे पुट्ठे पर हाथ तक नहीं धरने दिया था। वह जा रही थी तब रो गिड़गिड़ा कर उसने माफी भी तो माँगी थी। 

ऐसे जाकर नेहा दो माह तक भाई के घर रहेगी तो आस पड़ोस परिचित रिश्तेदार, उसके परिवार के बारे में क्या क्या न सोचेंगे, क्या क्या अटकलें न लगाएंगे? वे सब, अपनी मनमानी बातें सोच और बना कर के उस पर और स्वयं नेहा पर अनेक तरह की बातें करते हुए हँसेंगे, आलोचना करेंगे। नवीन सोचने लगा कि हाँ, मैंने भूल की थी मगर नेहा ने जो किया है वह तो ब्लंडर है। ऐसा करके नेहा ने परिवार की इज्जत पर ही ठेस पहुँचा देने का खतरा उत्पन्न कर दिया है। 

ऐसे विचार करने के बाद नवीन पर अब, पुरुष अहं हावी हो गया था। वह सोच रहा था कि नेहा और बच्चे, उसके आश्रित हैं। देखता हूँ आखिर ऐसे कब तक वह अकड़ी बैठी रहेगी। जल्द ही किसी दिन उसे अपने भाई-भाभी के व्यवहार से अपनी हैसियत पता चल जाएगी। बच्चों की हठ अकेले झेलते हुए किसी दिन उसकी ऐंठ निकल ही जाएगी। अंततः उसे स्वयं लौट के आना होगा। क्या सोचती है वह, बच्चों के प्रेम में, मैं उसके सामने झुक जाऊंगा? मैं उसके और बच्चों के बिना मर जाऊँगा! साष्टांग धरती पर लोट लगाकर उसे मनाने लगूँगा! अगर नेहा ऐसा सोचती है तो यह उसका भ्रम सिद्ध होगा। 

नवीन ने तब तय कर लिया कि वह ना तो कोई कॉल करेगा और ना ही गौरव के दरवाजे पर जाएगा। अब जब भी नेहा की अकड़ ढीली पड़ जाए, तब वह स्वयं ही वापस आए। अब तक तो मैं एक उसी का होकर रहते आया था। अब तो मैं वह करूंगा जो और मर्द किया करते हैं। अब वास्तव में मैं, उतना करूंगा जिसका इतना दंड होता है। मैं अपने पर अधिरोपित (Imposed) दंड के बराबर का अपराध अब करके दिखाऊंगा।  

ऐसा सोचते हुए नवीन मार्किट गया था। फिर शराब लाकर घर में पीने बैठा था। वैसे नवीन ऑकेशनली ड्रिंक करता था। उसने नेहा और बच्चों का विचार करके कभी घर में ड्रिंक नहीं की थी। आज अपनी ग्लानि, अपने अपराध बोध को भुलाने और अपने अवसाद दूर करने के लिए उसने यह अनुशासन भुला दिया था। सोने के पहले रखा हुआ भोजन, माइक्रोवेव में गर्म करके खा लिया था। 

अगली सुबह, उसे नेहा के बिना भारी लगी थी। पी गई शराब के प्रभाव में उसकी नींद देर तक लगी रही थी, उसे कोई जगाने वाला नहीं था। जब जागा तो बनी बनाई मिलती चाय भी नहीं थी। खुद चाय बनाई थी। नहा धोकर तैयार हुआ तो ऑफिस के लिए निकलने में देर हो गई थी। ऑफिस जाते हुए दोपहर भोजन का टिफिन दे देने वाली, नेहा नहीं थी। 

नवीन ऑफिस के रास्ते में, सोचने को विवश हुआ था कि नेहा अवश्य कुछ तरह से उस पर आश्रित है मगर अनेक बातों के लिए नवीन भी उस पर आश्रित था। ऑफिस पहुँचा तो चपरासी ने बताया कि बॉस अब तक तीन बार उसे याद कर चुके हैं। नवीन ने घड़ी पर दृष्टि दौड़ाई तो वह आधा घंटा लेट हुआ था। सामान्यतः ऐसा विलंब उसे होता नहीं है। वह बॉस के कमरे में गया था। उसे देखते ही बॉस ने कहा - नवीन, तुम कभी देर से नहीं आते हो आज क्या बात है? हेड ऑफिस से एक जानकारी की जल्दबाजी मची हुई है। फोन पर मैं दो बार डाँट खा चुका हूँ। 

नवीन ने ‘सॉरी सर’ कहा था फिर बॉस को संबंधित जानकारी, अपडेट करके देने में व्यस्त हुआ था। भोजन अवकाश हुआ तो प्रतिदिन की तरह आज उसका टिफिन नहीं था। पास के ढ़ाबे में भोजन के विचार से वह निकल रहा था, तब उसके मित्र ने उसे यूँ जाते देखा तो वह उसके साथ हो लिया था। उसका साथ आना, नवीन मन ही मन पसंद नहीं कर रहा था। यह वही मित्र था, जिसने उसे रिया से हरकत के लिए उकसाया था। तब ही नवीन ने रिया से प्यार प्रकट किया था। जिसका परिणाम प्रतिकूल मिला था, इससे ही आज नेहा और उसमें कलह का यह दृश्य उपस्थित हुआ था।  

तब भी न चाहते हुए उसने मित्र का साथ किया था। न चाहते हुए ही, उसने पारिवारिक कलह और नेहा के रूठकर मायके जाने की बात उससे बता दी थी। उसका यह मित्र तो हर समस्या का निदान का विशेषज्ञ बना घूमा करता था। उसने नेहा की अकड़ दूर करने के उपाय नवीन को बताए थे। 

विनाश काले विपरीत बुद्धि कहावत नवीन पर चरितार्थ हुई थी। उसे, मित्र की तरकीबें जँच रहीं थीं। नवीन ने उसी शाम से, इन तरकीबों पर अमल शुरू कर देने का निश्चय कर लिया था। 

नवीन अब वह सब करने जा रहा था जिसके करने के बाद उसे पश्चाताप होना था कि - काश ! उसने ऐसा सब नहीं किया होता … 


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