Seema Singh

Tragedy Inspirational

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Seema Singh

Tragedy Inspirational

काश! हमारी कोई औलाद ना होती..

काश! हमारी कोई औलाद ना होती..

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मां-बाप की पूरी उम्र गुजर जाती है। अपने बच्चों को अच्छे संस्कार औरअच्छा जीवन देने में। अपनी हर छोटी-छोटी खुशियों का त्याग करके वह अपने बच्चों के हर सपने और खुशी को पूरा करने की कोशिश करते हैं। पर पता नहीं क्यों समय का फेर कहे या उम्र का तकाजा कि वही मां-बाप अपने बच्चों के लिए बोझ हो जाते हैं।


जतिन और ललिता को शादी के 5 सालो के बाद संतान सुख की प्राप्ति हुई। जतिन और ललिता बहुत ही खुश थे अपने घर में नन्हे बच्चे की किलकारी सुनकर। जतिन ललिता ने अपने बच्चे का नाम चिराग रखा पर उन्हें यह ना मालूम था कि आगे चलकर यह अपने नाम के विपरीत इंसान होगा ।जतिन और ललिता ने अपने बच्चे को हर संभव अच्छी परवरिश अच्छे संस्कार और उसके हर सपने को पूरा करने की कोशिश की।


अपने इकलौते संतान के प्यार में जतिन और ललिता इतने अंधे हो चुके थे कि उन्हें उसके अवगुण दिखाई देते ही नहीं थे ।वह उसकी हर गलती को नजरअंदाज करते उसकी हर मांगों को चाहे वो जायज हो या नाजायज पर उसकी सभी मांगों को वह पूरा करते हैं। जब तक चिराग बच्चा था तब तक उसकी मांगों को पूरा करना कोई बड़ी बात नहीं थी। पर उम्र के साथ-साथ चिराग की मांगे और उसका जिद्दी पन भी बढ़ता चला गया ।जब उसकी कोई मांगे पूरी नहीं होती।तो वो अपने मां बाप को ही कहता आपका फर्ज बनता है मेरी हर मांगों को पूरा करना। जतिन और ललिता को भी धीरे धीरे यह एहसास होने लगा कि उनके प्यार और लापरवाही का यह नतीजा है कि आज उनका अपना बेटा अब अपनी मनमानी पर उतर आया है।


जतिन और ललिता को लगा कि चिराग की शादी कर देने से उसके व्यवहार में थोड़ा परिवर्तन आएगा थोड़ा जिम्मेदार हो जाएगा पर ऐसा कुछ नहीं हुआ। उन्होंने अपने बेटे की शादी बड़ी ही धूमधाम से अनु के साथ की। पर कहते हैं ना आदत और नेचर जल्दी नहीं बदलते उनमें थोड़ा वक्त लगता है या यूं कहिए कि पूरी जिंदगी गुजर जाती है ।


जिस इंसान को अपनी मनमानी ,अपना स्वार्थ ,अपनी आजादी और अपने आप से प्यार हो उसे किसी और का प्यार क्या नजर आएगा? चिराग तो अपनी बीवी अनु के प्यार को भी नहीं समझ सका। चिराग के व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं आया माता-पिता तो यही आस लगाए हुए थे ।शादी के बाद अनु के प्यार और अपने जिम्मेदारियों के प्रति जिम्मेदार हो जाएगा और वो सुधर जाएगा पर ऐसा कुछ नहीं हुआ बल्कि उसकी आदतें और व्यवहार दिन-ब-दिन और भी बद से बदतर होते चले जा रहे थे ।


हद तो तब हुई जब उसने अपनी पत्नी अनु को मारने की कोशिश की क्योंकि अनु ने उसे गलत काम करने से रोका था । चिराग ने धोखे से अपने माता-पिता के हस्ताक्षर वसीयत के पेपर पर लिए थे ।वह वसीयत जो चिराग के माता पिता ने अनु के नाम सारी संपत्ति कर दी थी ।जब यह बात चिराग को पता चली तो वह संपत्ति के लालच में अपनी पत्नी की हत्या करने तक के लिए बाध्य हो गया।

अनु की जान तो बच जाती है। पर जतिन और ललिता उस पल को कोसते हैं जब चिराग उन्हें संतान के रूप में मिला। जतिन "ललिता हमने यह क्या किया अपने बेटे के प्यार में इतने अंधे हो गए थे कि उसने कब सही और गलत में फर्क करना भूल गया हमें पता ही नहीं चला। सारी गलती हमारी है ।हमने अपने बच्चे के गलत व्यवहार का कभी विरोध किया ही नहीं और उससे भी बड़ी गलती यह है कि अपने स्वार्थ के लिए हमने एक और जिंदगी खराब कर दी। इसमें अनु की क्या गलती थी हमने उसकी भी जिंदगी खराब कर दी"..!


तभी ललिता "जतिन को कहती है इससे अच्छा तो हम बे औलाद थे ऐसी औलाद का का क्या जिसने हमें ना मां-बाप का सुख भोगने दिया ना बेटे का ।उससे भी ज्यादा गलती हमारी है यह है कि औलाद के प्यार में हम इतने अंधे हो चले जाते हैं कि सही या गलत का फर्क करना भूल जाते हैं ।बच्चे को प्यार करना गलत नहीं है पर उसके गलत व्यवहार को बढ़ावा देना हम सबकी सबसे बड़ी गलती है और उसका नतीजा यह है आज वो एक अपराध की राहों पर चल पड़ा।



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