विश्वास के नाम पर धोखा
विश्वास के नाम पर धोखा
कहते हैं.... समय के साथ... इंसान की पहचान होती है। कब कौन सी परिस्थिति किस मोड़ पर आपको क्या दिखा दे ......ये कोई नहीं जानता। उस वक्त हमें पता चलता है कौन अपना कौन पराया!!!!!
ऐसी ही कुछ परिस्थिति उस वक्त शर्मा जी की थी। जब उन्हें ये पता चलता है की...उनके प्यारे सुपुत्र ने धोखे से उनका सब कुछ अपने नाम कर करके सब कुछ बेचकर.... देश छोड़कर चला गया। जब उन्हें अपने ही घर से धक्के मार कर बाहर निकल दिया गया.... ये कह कर की ये सब आपका नहीं है.....आपके बेटे ने सब कुछ हमें बेचकर चला गया है। ये सब बातें सुन कर उनके पैरों तले जमीन ही हिल गई.... और ये सदाम शर्मा जी सह नहीं सके उन्हें दिल का दौरा पड़ गया। जैसे तैसे शर्मा जी की पत्नी सुनंदा जी उन्हें अस्पताल लेकर गई।
"मां ये सब क्या है??? पापा कैसे है?? अपने हमें फोन क्यों नहीं किया???कब आये आप और पापा वापस चार धाम की यात्रा से??? वो तो अच्छा हुआ की अनुज भाईया (पड़ोसी) ने हमें फोन करके सब कुछ बताया। वरना हम तो यही समझते की आप और पापा यात्रा से वापस नहीं आये है।" पुजा अपनी मां सुनंदा जी कहती हैं।
अपनी बेटी को समाने पाकर सुनंदा जी टूट कर रोते हुए सब कुछ बताती है। ये सब सुनकर पुजा को विश्वास नहीं होता...वो भी टूट सी जाती है...पर उस परिस्थिति में अपने आप से ज्यादा अपने माता पिता को संभलना सबसे ज्यादा जरूरी था।
"आप शांत हो जाइए मैं हूँ ....सब ठीक हो जाएगा। बस पापा जल्दी से अच्छे हो जाए।"
पिता तो होश में आ गए पर उस वक्त उनकी मनोदशा इस कदर थी की वो कुछ समझने की स्थिति में नहीं थे। उन्हें अभी भी विश्वास नहीं है रहा था की उनका अपना बेटा उनके साथ इतना बड़ा धोखा करेगा....पर कहते हैं ना अपने ही बच्चों में अंतर करेंगे तो यही परिणाम होगा। शर्मा जी ने हमेशा बेटा और बेटी में अंतर किया है। वो अपनी बेटी से बहुत प्यार करते हैं पर अपने बेटे से कम.... बचपन से ही बेटे की हर ग़लती पर हामी भरी...जिसका नतीजा ये है। सुनंदा जी ने हमेशा कहती थी इतना पुत्र मोह सही नहीं है.....परवो किसी की एक ना सुनते।
पापा.. पापा दवा ले लीजिए...। पुजा बेटा अपने पापा को माफ कर दो। मैंने हमेशा तुम्हें तेरे भाई से कम समझा...ये सब उसका ही परिणाम है।
पापा आप शांत हो जाइए जो होना था वो हो गया। होता है....ये तो प्रकृति का नियम है। जब उसने ही भेदभाव किया है तो अपने थोड़ी सी भेदभाव कर दी तो क्या हो गया। बस आप में सब बेकार की बातों पर ध्यान मत दीजिये। चलिए घर चलते हैं.....अब आप घर जा सकते हैं.... डाक्टर ने परमिशन दे दी है।
"पर बेटे कौन सा घर....वो तो"।
"पापा अपने घर... अपनी बेटी के घर.... प्लीज़ अब ये मत कहना कि बेटी घर कैसे हर सकता हूं। अगर आप चाहते है की मैं आपको माफ कर दूं तो प्लीज़ ना मत कहो ना आप।
"चालें पापा जी अपने नये घर में अपने बेटी और बेटे जैसे दामाद के साथ रहने।" अनीक(पुजा का पति)
सुनंदा जी. कहती हैं.".दामाद जी लोग क्या कहेंगे.. बेटी के घर पर रहना?????
"मां जी मुझे लोगों की नहीं अपने माता पिता की परवाह है। आप बस ये सोच लीजिये की आप अपने एक और बेटे के घर जा रही है.... जितना वो घर मेरा है उससे कहीं ज्यादा उस पर हक आपकी बेटी पुजा का है। उसके साथ की वजह से...आज मैं जो कुछ भी सिर्फ और सिर्फ पुजा की वजह से।
शर्मा जी और सुनंदा जी खुशी खुशी अपनी बेटी और दामाद के साथ... एक नये जीवन के सफर की चल पड़ते हैं।
जब कोई अपना धोखा देता है तो उसकी तकलीफ़ अहसनिय होती है...खास कर जब आपकी अपनी औलाद धोखा देती है तब।
