Seema Singh

Abstract Tragedy Inspirational

3  

Seema Singh

Abstract Tragedy Inspirational

जिद की जीत हुई, जिंदगी की हार

जिद की जीत हुई, जिंदगी की हार

5 mins
156


"क्या है ये?? ये भी कोई नंबर है। एक बात मेरी कान खोलकर सुन लो तुम्हें 95% से कम नहीं आने चाहिए। इतने नंबर होंगे तब ही किसी अच्छे कॉलेज में दाखिला मिलेगा। 12वीं की परीक्षा के परिणाम पर सब निर्भर है। तुम्हें एक बहुत बड़ा डॉक्टर बनना है।" आलोक जी अपने बेटे विकास से कहते हैं। "पर पापा मुझे डॉक्टर नहीं बनना है। मुझे डांसर बनना है। मुझे डांस करना बहुत अच्छा लगता।" विकास ने डरते-डरते अपनी मन की बात अपने पापा से कही।

"खबरदार आज के बाद से ये बात कही। ये नाच-गाना मुझे पसंद नहीं है। तुम वही करोगे जो मैं कहूंगा समझे।" आलोक जी बहुत ही गुस्से में विकास को कहते और वहां से चले जाते हैं। नैना दीदी आप और मां (आशा)-पापा को क्यों नहीं समझाते। मुझे डॉक्टर नहीं बनना। मुझे बचपन से डांस करने का कितना शौक है। पर पापा की जिद और डर की वजह से कभी भी अपने पसंद का कोई काम नहीं कर पाता। जब देखो सिर्फ सब पर अपनी जिद और मर्जी थोपते रहते हैं। 


अपनी पसंद का खाना नहीं, अपनी पसंद के कपड़े नहीं, अपनी पसंद के दोस्त भी नहीं। अपने लिए कोई भी फैसला लेने का हक नहीं। जब से होश संभाला तब से तुम्हें डॉक्टर बनना है। बस यही कहते रहते हैं। इनकी जिद की वजह से हम दोनों का बचपन सब बच्चों से बहुत अलग गुज़रा है। अगर गलती से 90% से कम नंबर आ गए तो, ये इतने नंबर कम क्यों है। जहां सबके पापा अपने बेटे के हर सपनों को पूरा करने की कोशिश करते हैं। पर एक हमारे पापा हैं जो अपने बच्चों के सपनों को जानने तक की कोशिश नहीं की, पूरा करना तो‌ बहुत दूर की बात है।" विकास अपनी बातें अपनी दीदी और मां से कहता है।

विकास की बातों को सुनकर उसकी बहन नैना उससे कहती है "विशु (विकास) सुन ऐसे मन छोटा नहीं करते। पापा से बात करने की हिम्मत ना तो मेरे में है ना मां में है। पापा की जिद का जीता-जागता उदाहरण तो खुद हूं। मुझे आगे पढ़ना था पर पापा को पसंद नहीं लड़की को ज्यादा पढ़ाना। लड़की को ज्यादा पढ़ाना यानी ज्यादा दहेज देना होगा। मां ने पापा को कितना समझाया पर वो नहीं माने और उल्टा मां को ही उन्होंने बहुत बुरा भला कहा।


तभी मां (आशा) कहती हैं "बेटा सुन मैं तेरे पापा से बात करूंगी तू परेशान ना हो। तुम्हें अपनी जिंदगी में जो करना है वहीं करो। तुम्हें डॉक्टर नहीं बनना मत बनो... तुम्हें डांस करना अच्छा लगता है। उसमें तुम अपनी पहचान बनाने चाहते हो बनाओ। मैं तेरे पापा से बात करुंगी। कहूँगी कि तुम्हें एक मौका दे। कुछ वक्त दे ताकि उन्हें तुम्हारे इस हुनर का पाता चले और जाने की उनके बेटे में कितनी काबिलियत है।" "आशा ये क्या बकवास कर रही हो। मैंने कितनी बार कहा विकास डॉक्टर बनेगा और कुछ नहीं।"आलोक जी गुस्से में अपनी पत्नी आशा को कहते हैं।

पर एक बार विकास की खुशियों के बारे में भी तो सोचिये। वो डॉक्टर बनकर कभी भी खुश नहीं रहेगा। उसने कभी भी आप से कुछ नहीं मांग। बचपन से उसने वहीं सब किया जो अपने कहा। अपनी जिद और पसंद को मारकर उसने हमेशा आपके जिद और आपकी पसंद के काम किए हैं। बच्चे बड़े हो गए हैं। उनपर अपनी जिद का बोझ नहीं डालिए....वो सह नहीं पाएंगे। एक मौका तो दीजिये.....इसे अपनी काबिलियत साबित करने का। कहीं ऐसा ना हो कि आपकी जिद और डर के बोझ तले किसी के सपनों की कब्र ना बन जाए।


ज्यादा ज्ञान देने की जरूरत नहीं है। बनती है कब्र तो बने। और तुम (विकास) आखिरी बार कह रहा हूं तुम वही करोगे जो मैं कहुंगा। आलोक की बातों को सुनकर विकास अंदर ही अंदर घुट रहा था। उसमें हिम्मत नहीं बची थी अपने पिता के जिद के खिलाफ लड़ने की। आखिरकार एक पिता की जिद की जीत हुई और एक बेटे के सपनों की हार। अगले दिन सुबह जब आशा जी अपने बेटे विकास को उठाने गई तो वहां का नाजार देख दंग रह गईं। तभी आलोक जी ने कहा कि आशा विकास उठा की नहीं, उसे जगाओ सुबह हो गई। बहुत पूछने पर आशा जी ने कोई जवाब नहीं दिया तो नैना और आलोक जी विकास के कमरे में आते हैं तभी आशा जी कहती हैं "आपको आपकी जीत मुबारक हो। आपकी जिद हमेशा की तरह जीत गई और एक बेटा हमेशा के लिए अपनी जिंदगी से हार गया।"


अपने बेटे की दशा को देखकर आलोक जी रोने लगते हैं। तभी आशा जी कहती हैं "अब आपके रोने से क्या होगा। आपकी जिद और डर के बोझ ने मेरे बेटे की जान ले ली। उसने तो एक मौका मांगा था और अपने उससे उसकी जिंदगी ही छीन ली। अब पछताने से क्या होगा। आज मेरा बेटा जहां भी होगा आजाद होगा। कम से कम उसकी मौत पर तो उसका हक था.......!!!!! 

प्रिय पाठकों हमने अक्सर देखा है माता-पिता के जिद और डर के बोझ तले बच्चों के सपने और जिंदगी को दबते हुए। खासकर जब दसवीं और बारहवीं की परीक्षा होती है। मैं बस इतना कहना चाहती हूँ कि माता-पिता के हर सपनों को पूरा करना चाहिए। पर कभी भी उनपर अपने सपनों पर अपने जिद और डर की बोझ ना डाले। हर बच्चों की अलग-अलग काबिलीयत होती है। कोई पढ़ाई में बहुत होशियार होता है, कोई खेल में, कोई डांस में, कोई गाने में। अपने बच्चों की काबिलीयत को परखें और उनका हौसला अफजाई करें। पढ़ाई के साथ-साथ और उनकी काबिलीयत को भी पंख दे। अपने सपनों के साथ-साथ बच्चों के सपनों को भी समझें कि वो अपना भविष्य किस क्षेत्र में देख रहे हैं। उनपर किसी प्रकार का दबाव ना डालें क्योंकि हर बच्चा सह नहीं सकता। अगर आपको मेरी कहानी पसंद आई हो तो कृपया कर जरूर बताएं।



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Abstract