जिंदगी की सबसे कड़वी यादें..!
जिंदगी की सबसे कड़वी यादें..!
जब भी उस इंसान का जिक्र होता है.. तो वो सब कड़वी यादें फिर से ताजा हो जाती है। चाह कर भी भूला नही पाती और याद करना मैं चाहती नहीं।" अमृता की बातों को सुनकर उसकी मां उसे हिम्मत देते हुए कहती हैं...."बेटा यादें कितनी भी कड़वी हो, पर वो तेरी जीवन की सबसे बड़ी सच्चाई है, जिसे चाह कर भी तुम इनकार नहीं सकती की वो तेरी बेटी का पिता है।"
"बस इसी बात का ग़म है मां की वो इंसान मेरे बच्ची का पिता। अच्छे पति के कोई गुण तो ना पहले थी ना कभी होगी। पर एक पिता के रूप में उसकी भुमिका बहुत अच्छी है...पर वो भी सिर्फ दिखावे के लिए। क्योंकि उसकी सारी सम्पत्ति की इकलौती वारिस जो है।"
"अमृता तुम ऐसे कैसे कह सकती हो ? माना की अब हम दोनों के बीच कोई रिश्ता नहीं है। पर इसका मतलब ये नहीं है, की तुम मुझ पर ऐसे घिनौने आरोप लगाओगी।" अमृता की बातों का जवाब देते हुए जय कहता है।
"इसमें गलत क्या है। मैंने जो कुछ भी कहा सब सच ही तो है। मैंने तुम पर कोई आरोप नहीं लगाये है जो हकीकत है वहीं तो कहीं है। तुम से शादी करना मेरी जिंदगी की सबसे बड़ी भूल थी। जिसका खामियाजा मुझे जिंदगी भर भुगतान है। तुम तो ना अच्छे बेटे बन सके और ना अच्छे पति। कम से कम एक अच्छे पिता तो बन जाओ। कभी सोचा है जब सिया को तुम्हारी हकीकत पता चलेगी तो क्या होगा?? टूट जायेगी वो।वो तुम्हें अपना सुपरहीरो समझती है...पर हकीकत ये है की तुम सिर्फ अपने मतलब के लिए उससे प्यार का नाटक कर रहे हो। ताकि तुम्हें तुम्हारी सम्पत्ति वापस मिल सके।जो उसके दादाजी उसके नाम कर गये है। तुमने मेरे साथ जो कुछ भी किया मुझे उसकी परवाह नहीं है पर मेरी मासूम बेटी का भरोसा मत तोड़ना। एक अच्छा पति ना सही एक अच्छा पिता जरुर बन जाना।
तभी जय कहता है "अमृता मुझे पता है कि तुम मुझसे बहुत नफरत करती हो। और करना भी चाहिए... शादी करने का फ़ैसला हम दोनों का था। पर मैं उसे अच्छे से निभा नही पाया। अपनी बुरी संगत की वजह से तेरे पर ना जाने कितने अत्याचार किए।मैं जानता हूं मेरी अहमियत तेरी जिंदगी में उस कड़वी यादों की तरह है जो कभी मरती नही है उनका क़त्ल पड़ता है। तेरी जिंदगी में मेरी जगह कहीं भी नही है।ये हकीकत को मैं अपना चुका हूं। तुम मुझपर विश्वास नही करती मैं जानता हूं....।पर मैं चाहता हूं कि तुम मुझपर एक बार, आखिरी बार मुझपर पर विश्वास करके देखो। मैं एक अच्छा पिता बनुगां।मैं अपनी बेटी सिया से बहुत प्यार करता हूं। माना की मेरी आंखें खुलने में देर हुई पर मेरा प्यार अपनी बेटी के लिए कोई छलावा नही है...। मानता हूं मैं एक अच्छा बेटा और पति नही बन सका।पर मैं एक अच्छा पिता हु। मेरी बस तुमसे एक विनती है, मेरी सिया को मुझसे दूर कभी मत करना।
"जय,मैं सिया को तुम से कभी दूर नही करुंगी। जानते हो क्यों, क्योंकि उसने जब पहली बार बोलना शुरू किया था तो उसका पहला अक्षर "पापा "था। मैं जानती हूं तुम उससे बहुत प्यार करते हो,पर तुम्हारी आदतों से डर लगता है। कहीं मेरी बेटी का दिल ना टूट जाए मेरी तरह। मेरी जिंदगी की सबसे कड़वी याद हो तुम जिसके साथ मुझे हर पल जिना है,यही हकीकत है.....!
जिंदगी भी क्या क्या हमें दिखाती है। अच्छी यादों के साथ कड़वी यादों के साथ भी मुस्कुरा कर रहना सिखाती है।