:कानून के रक्षक
:कानून के रक्षक
डायरी सखी,
अभी कल ही एक वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा था। मैंने भी उसे देखा था। उसे देखकर मैं भी हतप्रभ रह गया। एक बार तो आंखों को विश्वास ही नहीं हुआ कि जो कुछ मैं देख रहा था , वह वास्तविक था या डॉक्टर्ड। कितना पतन हो गया है लोगों का। जिनके कंधों पर देश की कानून व व्यवस्था की जिम्मेदारी है वे ही अगर हिस्ट्रीशीटर्स को कानून से बचने की टिप्स देंगे तो उनमें और अपराधियों में क्या अंतर रह जाएगा ? बल्कि अगर ऐसा कहें कि उनका गुनाह हिस्ट्रीशीर्स से भी ज्यादा था तो कोई गलत नहीं होगा।
मुझे पता था कि तुम मामले की जानकारी करने के लिए अधीर होंगी। पर थोड़ा सब्र करना सीखो सखि। इस देश में सब कुछ इतनी जल्दी कहां होता है ? राम मंदिर के फैसले में ही कितने साल लग गये ? धारा 370 हटने में भी कितने साल लगे ? यहां के लोग बहुत धैर्यवान हैं सखि। लगभग 700 सालों की गुलामी को भी हंसते हंसते सह गये और लगता है कि अभी और गुलामी सहने की इच्छा हो रही है इनकी। तभी तो आसन्न खतरे से भी आंखें मूंदे बैठे हैं। धर्मनिरपेक्षता की अफीम कुछ इस तरह खिलाई गई है कि उसका नशा अभी तक उतरा नहीं है सखी।
एक खादिम ने एक भड़काऊ वीडियो बनाया जिसमें कहा कि जो भी एक महिला का सिर कलम करके लाएगा उसे अपना मकान दे देगा। उसने अपने बीवी बच्चों की कसम खाकर यह बात कही थी। सखि, यह कहने को तो "खादिम" है मतलब "सेवक" लेकिन इसके खिलाफ 17 - 18 मुकदमे दर्ज हैं विभिन्न थानों में। पुलिस रिकार्ड में यह आदतन अपराधी यानि हिस्ट्रीशीटर दर्ज है। मगर पुलिस इसे पकड़ती नहीं और तेजेन्द्र पाल बग्गा जैसे आदमी को पकड़ने के लिए कई राज्यों को पार कर दिल्ली पहुंच जाती है। इतना ही नहीं जब सरकार और पुलिस पर दवाब बढा तो इस खादिम के खिलाफ एक एफ आई आर दर्ज कर ली गई । जब सोशल मीडिया पर दबाव बढा तो उसे गिरफ्तार भी कर लिया गया।
यहीं पर पुलिस का असली चेहरा देखने को मिला था। पुलिस का उप अधीक्षक स्तर का अधिकारी इस हिस्ट्रीशीटर को सिखा रहा था कि कोर्ट में यह कह देना कि "मैं दारू के नशे में था"
ताज्जुब की बात यह है सखि कि वह खादिम ईमानदारी से कह रहा था कि वह दारू नहीं पीता है। जब दारू ही नहीं पीता है तो नशे में कैसे हो सकता है" ?
मगर पुलिस उप अधीक्षक इतना बेशर्म था कि वह फिर भी कह रहा था कि ऐसा बोलने से उसकी जमानत हो जाएगी अन्यथा नहीं होगी।
अब तुम्ही बताओ सखि, जब ऐसे लोग पुलिस में होंगे तो बेचारे आम आदमी कहां जाएंगे ? मगर सरकारें भी तो अपने वोट बैंक की खातिर ऐसे "खादिमों" की "खिदमत" में लगी रहती हैं। अब तो जनता को ही सोचना होगा कि उन्हें किस तरह अपने आपको बचाना है। पुलिस से तो भरोसा उठ गया है सखी।