काला रंग....
काला रंग....
यह काला रंग मुझे सब रंगों में बेहद शांत और बड़े दिल वाला लगता है। आज की बोलचाल में ग्रेट....
यह काला रंग अपने में सब रंगों में समा लेता है और बिना चूँ किये धूप की सारी उष्णता भी ....
सबको समाहित करने की जो निपुणता इसमें है किसी और में नहीं है….फिर क्यों न मैं इसे ग्रेट कहूँ?
अब तक कवियों और लेखकों ने स्त्री के सौंदर्य में गोरे रंग को ही प्रतिमान की तरह स्थापित किया है। हाँ, काले रंग को उस प्रतिमान में सेलेक्टिवली यूज़ किया है।
इस वर्ण रोग से चिंतक भी अछूते नहीं हैं …
काला तिल....
काली गहरी आँखें....
काले लंबे बाल....
हक़ीक़त में क्या स्त्री के रंग को देखा भी जाता है?
हाँ, दिन के उजाले में देखा जाता है!!!
दिन के उजाले में गोरे रंग के ही कसीदे काढ़े जाते है। फ़ेयर अँड लवली की मान्यता देते हुए साँवले रंग को बाहर किया जाता है। साँवले चेहरे की इंटेलिजेंस को कोई देखता भी है?
हाँ, स्याह रात में स्त्री का काला या साँवला रंग नज़र भी आता है?
रात के अँधेरे में और कभी कभी दिन में पर्दों के पीछे काले रंग या साँवले रंग को सहलाने के लिए शायद ही कोई पीछे हटता है...तमस में कामुकता न रंग देखती हैं और न ही वर्ण…
हाँ, दिन के उजालें में उस साँवले या काली त्वचा में अपने ही नाखूनों के खरोंचों के निशानों वाली स्त्री से नज़रें चुरायी जाती है...
कभी जानकर ....तो कभी अनजान बनकर....