जरूरत से ज्यादा
जरूरत से ज्यादा


पूना के पुनर्वास केन्द्र में आज सारे मीडिया वाले जमे पड़े थे। सबको इंतज़ार था एम्बुलेंस का , सारे मीडियाकर्मी मुस्तैद थे कि एम्बुलेंस का दरवाजा खुलते ही पहली तस्वीर वो लें। आज पुनर्वास केन्द्र में आने वाला था ड्रग्स माफिया और पूर्व फ़िल्म स्टार मुश्ताक अली। मीडियाकर्मी अपना सेटअप में लगे थे जैसे कि मेकअप , कैमरा चेक, सैटेलाइट चेक वगैरा , ताकि वो इस "कार्यक्रम" का प्रसारण निर्बाध रूप से कर सके।
सायरन की आवाज़ के साथ एम्बुलेंस का प्रवेश होने जा रहा था और सभी मीडिया वाले शुरू हो गए अपने कार्यक्रम को "सबसे पहले" अपने दर्शकों तक पहुंचाने में। एम्बुलेंस का दरवाजा खुला और हथकड़ी में जकड़ा एक छह फुट का अधेड़ उम्र वाला आदमी उतरा जिसकी ढाढ़ी कुछ बढ़ी थी और बेतरतीब से बाल थे। वो सूरज की रोशनी से नजर चुरा रहा था जैसे कि ये रोशनी उसे जला डालेगी। नशे से बोझिल सी उसकी आंखें नीचे किये थोड़ा लड़खड़ाते वो आगे बढ़ने लगा , बेड़ी का 1 हिस्सा उसके हाथ में था और दूसरा सिरा 1 पुलिस वाले ने थामे था। तभी एक-दो मीडियाकर्मी उससे सवाल करने आगे बढ़े और कुछ पूछने के लिए मुंह खोला ही था कि मुश्ताक़ ने चेहरा उठा के उनकी तरफ अपनी आग्नेय नज़रे डाली। उसकी आंखे नशे से बोझिल जरूर थी पर उनमे अभी भी वही आग थी जिसके कारण लोग उससे डरते थे। मीडिया कर्मी उसकी नजरें देख कर पीछे हट गए और अपने हिसाब से अपने दर्शकों को वहाँ का हाल बताने लगे। कुछ चैनल उसकी पूरी जीवनी बता रहे थे तो कुछ एक पैनल को बिठा कर मुश्ताक़ के हाल पर बहस कर रहे थे।
क्योंकि उसका पिछला जीवन आपराधिक गतिविधियों वाला था उसे एक खास कमरे में रखा गया था जहां पर 3 सीसीटीवी कैमरे उसकी निगरानी में लगे थे। वो कमरे में गया और ऐसे पसरा जैसे कि कितना ही थकान उसे था। लेटे लेटे सोचने लगा कि ये कहाँ से कहाँ आ गया है वो।
एक छोटे से कस्बे में रहता था बचपन में, गुनगुनाने का शौक था तो गुनगुनाता रहता था कुछ न कुछ। एक दिन उसके अब्बू के दोस्त महेश चच्चा ने गुनगुनाते सुना तो पास बुला कर तारीफ करदी और पीठ थपथपा के बोले कि रियाज करो अपने फन को और तरशो। पर अपना फन तराशा कैसे जाए, अब्बू को तो ये गाना बजाना अच्छा ही नहीं लगता था वो तो बस तालीम पे तवज्जो देने की नसीहतें देते थे। पर महेश चच्चा का तारीफ करना मुश्ताक़ को इतना भाया की उसने मन में सोचा कि उसे इस फन को तराशना ही है और लग गया इसी जुगत में। अब्बू को बिना बताए उसने एक संगीत की क्लास ज्वॉइन कर ली वहाँ की शिक्षिका नीलिमा तो मुश्ताक़ की फनकारी की ऐसी कायल हुई कि उन्होने उसे आगे बढ़ाने के लिए आखिर के 2 महीनों की फीस तक माफ करदी क्योंकि फीस के लिए उसे अब्बू से बात करनी पड़ती।
उन्ही दिनों एक राज्यस्तरीय गायन प्रतियोगिता का अयोजन हुआ उसमे नीलिमा ने मुश्ताक़ को शिरकत करने को कहा , पहले तो वो डर रहा था कि अब्बू को पता चलेगा तो वो पीट देंगे फिर सोचा कि एक न एक दिन बताना तो है ही तो क्यों न यहीं पे मुक़्क़द्दर का अंजाम तय कर लिया जाए। हुनर तो था ही ऑडिशन में तुरंत चयन हो गया और जब पहला एपिसोड वहाँ के स्थानीय चैनल पे प्रसारित हुआ अब्बू आग बबूला हो गए लेकिन मुश्ताक़ को इसका अंदेशा पहले ही था इसलिए उसने महेश चच्चा और नीलिमा जी को बुला रखा था। उन दोनों की समझाइश के आगे अब्बू झुक गए और नतीजनन मुश्ताक़ ने वो प्रतियोगिता तीसरे नम्बर पे खत्म की। प्रतोयोगिता में भले ही वो तीसरा नंबर पाया था पर 1 जज की आंखों में चढ़ गया था उसने अपनी एक प्रादेशिक फिल्म में गाने का प्रस्ताव दे दिया।
प्रादेशिक फ़िल्म का गाना जब मशहूर हुआ तो एक निर्माता ने हिंदी फिल्म में गाना गाने का प्रस्ताव दे दिया। ईश्वर की दया से चेहरा पहले से ही अच्छा था और फिर पैसे आने लगे तो खाना पीना भी अच्छा होने लगा तो चेहरे पर और नूर आ गया और एक दिन एक निर्देशक ने उसे अपनी फ़िल्म में हीरो बना लिया। और अब वो अभिनेता और गायक दोनों किरदार निभाने लगा।अब तो पैसे उसके आंगन में जैसे बरस रहे थे। जल्द ही उसने एक बड़ा फ्लैट और फिर एक ऑफिस ले लिया मुम्बई में। सब कुछ अच्छा चल रहा था, तकरीबन हर रोज किसी न किसी के यहाँ पार्टी ,कितने ही लोगों से मुलाक़ात और इन्ही मुलाकातों में उसे मिला इरफ़ान।
इरफान किसी वक़्त फिल्मी उद्योग का चमकता सितारा था औऱ अभी उसे काम नही मिल रहा था पहले जैसे क्योंकि उसका बहुत सारा काम अब मुश्ताक़ की झोली में था, तो कुछ रश्क़ थी जिसे छिपा कर वो मुश्ताक़ से मिला। मुश्ताक़ के पास अब इतना पैसा था कि उससे खर्च नहीं हो रहा था , इरफान जैसे दोस्तों ने बताया कि जिंदगी के मजे लो , पार्टियां करो कल का क्या भरोसा। इस तरह मुश्ताक़ और इरफान की मुलाक़ातें बढ़ी तो दोस्ती भी बढ़ी और एक दिन एन्जॉय के बहाने इरफान ने पहली बार मुश्ताक़ को ड्रग दिया। बहुत न नुकुर के बाद मुश्ताक़ ने 1 सुट्टा मार ही लिया उसका सिर भारी सा हुआ पर उसे मजा भी आया। और यहीं से आदत लगी ड्रग लेने की। पहले दिन में काम औऱ रात में नशा करता था पर फिर रात में नशा करने के कारण सुबह वक़्त से उठ नहीं पाता तो वक़्त पर काम पे भी नहीं जा पाता। कोई वक़्त पे आने का बोलता तो उससे उलझ जाता। धीरे -धीरे लोगों ने उसे काम देना बंद कर दिया और वो दिन-रात नशे में डूबा बेहोश सा पड़ा रहता।
कहते है ना जिसने वक़्त की कदर नहीं कि वक़्त उसकी कदर नहीं करता, अब यही कुछ मुश्ताक़ के साथ हो रहा था। जब तक पैसे थे उसे सब कुछ मुहैया था पर पैसे खत्म तो सारे चेले- चपाटे भाग लिए और नशे की लत ने उसे नशे के व्यापारियों का कर्जदार भी बना दिया। काम था नहीं तो पैसे कैसे चुकाता, लिहाजा पहले फ्लैट फिर ऑफिस सब बिक गया औऱ इन पैसों को भी ड्रग्स के धुवें में उड़ा डाला। पर नशे की लत ऐसी लगी कि नशा तो चाहिए ही और उसके लिए पैसा, और पैसा कहां से आएगा बिना काम के। जिस किसी के पास काम मांगने जाता वो भगा देता क्योंकि उन्हें अब एक नया सितारा मिल गया था। जो लोग कल तक कतार में खड़े होके काम देते थे अग्रिम पैसा देते थे अब वो उससे मिलना भी नहीं चाहते थे।इस चमकती दुनिया का यही सच है चढ़ते सूरज को सलामी और ढलते सूरज को डूबते देख मजे लेना।
नशे की तलब में उसने नशे के व्यापारियों से कर्ज कर लिया पर उसे अब चुकाए कैसे तो एक नशे के व्यापारी ने उसे कहा कि या तो पैसा चुकाओ या हमारे लिए काम करो, मरता क्या न करता , नशे की तलब के आगे उसने वो प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और इस तरह वो नशे का डिलीवरी बॉय बन गया। क्योंकि वो इस चमकती दुनिया का हिस्सा था कभी तो उसे पार्टियों में भेजा जाता और नए शिकार फंसाने होते जिसके बदले उसे कुछ पैसा और कुछ नशा मिल जाता और तब उसे इरफान की भूमिका समझ आई , उसे भी इसी तरह नशे का एजेंट बनाया गया था।
लेकिन मुश्ताक़ डिलीवरी बॉय नहीं बनके रहना चाहता था उसने देखा कि किस तरह इस चमकती दुनिया के लोग अपने पास आया जरूरत से ज्यादा पैसा उड़ाने के लिए नए-नए शौक करते है और पैसा उड़ाते है। वो खुद इसकी जीती जागती मिसाल था। उसने अब ड्रग माफिया बनने का निश्चय किया। और धीरे-धीरे उसके संपर्क बढ़ाये, ख़रीददारों और बेचने वालों दोनों की जानिब। एक बार फिर बेइंतेहा पैसा आने लगा। कहते है हलवाई मिठाई बेचता है पर खुद नहीं खाता लेकिन मुश्ताक़ के मामले में ऐसा नहीं था। उसकी नशे की लत बदस्तूर जारी थी। नशे ने दिमाग का ऐसा कबाड़ा किया था कि एक कलाकार से वो अब निर्दयी अपराधी बन गया , कलाकार के हाथ में हथियार आ गए थे और नशे के व्यापार में उसके दुश्मन भी बन गए। नशे के व्यापार की प्रतिस्पर्धा में यहां भी किसी की जगह लेके वो उभरा था और हारे हुए प्रतिद्वंदी उसे गिराने की साजिशें करने लगे। उसका माल पकड़वाने लगे लिहाजा एक बार फिर पैसे की किल्लत होने लगी , जब तक अधिकारियों को पैसा मिल रहा था वो मुश्ताक़ पे हाथ नहीं डाल रहे थे, लेकिन जब मुश्ताक़ से ज्यादा पैसा उन्हें मिलने लगा वो पहले उसका माल पकड़ कर उसे कंगाल करने लगे फिर जब पूरी तरह निचुड़ गया तो उठा के कारावास में डाल दिया गया।
बेटे के कारनामे सुन कर मुश्ताक़ के वालिद साहब सदमा बर्दाश्त न कर पाए और दुनिया से रुखसत हो गए। कारावास में नशा मिलना बंद हो गया तो मुश्ताक़ बीमार रहने लगा और एक दिन उसे बहुत तेज दर्द होने लगा जिसके चलते उसका इलाज कराना जरूरी हो गया तो उसे इस पुनर्वास केंद्र पे लाया गया जहाँ इसका इलाज करके उसे वापिस कारावास में डाल दिया जाएगा।
अपने कमरे में खिड़की से बाहर झांकते हुए मुश्ताक़ सोच रहा था कि काश उसने इस चमकती दुनिया को ठीक से पढ़ा होता और समझा होता कि हर चमकती चीज सोना नहीँ होती। इस दुनिया ने उसे दौलत - शोहरत दी पर वो उसे संभाल नहीँ पाया क्योंकि वो कहीं न कहीं उसकी जरूरत से ज्यादा थी। हम अक्सर कहते या सुनते है " अन्न उतना ही लो थाली में, व्यर्थ न जाये नाली में" यही बात पैसे के लिए भी होना चाहिए कि उतना ही संचित करो जितना खर्च कर सको जब जरूरत से ज्यादा पैसा आ जाता है और उसे खर्च करने के लिए ऐसे साधन अपनाए जाने लगे तो पतन तो निश्चित है। अति किसी भी चीज की अच्छी नहीं। जिंदगी में फिर से मौका मिला तो वो ये सबक जरूर याद रखेगा।