Find your balance with The Structure of Peace & grab 30% off on first 50 orders!!
Find your balance with The Structure of Peace & grab 30% off on first 50 orders!!

Vishnu Saboo

Abstract

3.9  

Vishnu Saboo

Abstract

बचपन की परेशानियां

बचपन की परेशानियां

5 mins
327


" कितने प्यारे दिन होते है बचपन के, न कोई तनाव न कोई चिंता , बस खाओ, पियो , खेलो, सो जाओ और एक हमारी जिंदगी है दिन-रात किसी न किसी बात का तनाव किसी न किसी बात की चिंता... उफ्फ बचपन के दिन वापिस क्यों नहीं आ जाते" मैं मन ही मन अपने 2 साल के बेटे को देख कर ये सोच रहा था , उसकी बाल सुलभ हरकतें , उसकी बदमाशियां , उसका तुतलाना , उसकी हर अदा पे हम सब वारी-वारी जाते और गाहे-बगाहे उसके सुंदर से मुखड़े को चूम लेते बदले में वो भी कभी-कभी हमें चुम लेता तो हम इठलाते की देखो कान्हा ने मुझे प्यार किया तुम्हे नहीं।

रात को अकसर जब उसे सुलाने का वक़्त होता उसे खेल सूझने लगते, कभी तो वो थोड़ी देर खेल के सो जाता पर कभी वो सोता ही नहीं । उसके खेलने का मन होता तो ऐसा तो नहीं कि वो अकेला खेल लेगा, किसी न किसी को उसके साथ खेलना पड़ेगा । जब कई बार बहुत देर हो जाती सोने में तो झुंझलाहट होती है कि यार ये तो दिन में नींद पूरी कर लेता है पर हमें तो दिन में सोना नसीब नही। पर कर भी क्या सकते हैं , कभी मैं तो कभी नीलिमा उसे खिलाते जब तक वो सो नही जाता।

आज भी बाबू साहब सोने का मूड में नहीं लग रहा और मेरी ड्यूटी लगी है आज उसके साथ । मैं उसे खिलाते-खिलाते लेट गया और उससे बात करने लगा " कान्हा , तेरे तो मजे है बेटे दिन भर मस्ती " प्रत्युत्तर में वो हँसने लगा जैसे समझ गया हो । मैंने फिर कहा " बेटे सही है जी ले जी भर के ये वक़्त फिर नही आएगा" वो फिर से हंसने लगा जैसे कि पापा आप भी न ... ऐसे ही बातें करते और उसे खिलाते-खिलाते वो सो गया और मैं भी थकान के कारण बेसुध होकर सो गया।

तभी मेरे कानों में एक आवाज़ आयी "पापा" मैं उठ के बैठ गया तो देखा मेरा बेटा बोल रहा था। 

मैं -" तू सो जा न मेरे बाप मुझे भी सोने दे , तू तो देर से उठेगा पर मुझे तो जल्दी उठ के ऑफिस जाना है ना।"

वो - "पापा, आपको लगता है ना बच्चों की जिंदगी बड़ी आसान होती है?"

मैं - "हां, और क्या.. बस खाओ, खेलो सो जाओ।"

वो - "ऐसा नहीं है... हमारा जीवन में भी तनाव है , अपनी चिंताएं है"

मैं - "तुम्हे कैसी चिंता, कैसा तनाव ?"

वो -" एक थोड़े है, कई है।"

मैंने आश्चर्य से कहा - "तुम्हे क्या तनाव , तुम्हे खिलाना, पिलाना, सुलाना, नहलाना सब तो हम बड़े करते है।"

वो - "यही तो है तनाव की मुझे हर बात के लिए आप बड़ो पर निर्भर रहना पड़ता है, न कहीं अपनी मर्जी से जा पाता हूं, न खा पाता हूँ ।"

मैं - "तो ये तो अच्छा है ना , गोदी में लद के आना-जाना , सब काम करे कराए मिलते हैं और क्या चाहिए?"

वो - "अरे पापा, आप नहीं समझोगे मेरी परेशानी .. आप बड़े हो न।"

मैं - "अच्छा? बड़े ज्यादा समझदार होता है या बच्चे?'

वो -" पापा , ये भी तो एक परेशानी ही है कि आप बड़े लोग खुद को ही समझदार मानते हो और हमारे सारे डिसीजन आप लेते हो।पता है मैं कितना कुछ कहना चाहता हूं पर मुझे बोलना नहीं आता तो मैं व्यक्त नहीँ कर पाता की मुझे ये सब अच्छा नहीं लगता या ये मुझे अच्छा लगता है, ये मुझे खाना है तो ये बनाओ , वो नहीं भाता तो मत बनाओ।"

मैं - "अच्छा क्या अच्छा लगता है और क्या नहीं?"

वो -' आप बड़े लोग जब भी प्यार आता बस गीली गीली चुम्मीया दे देते हो, किसी का दाढ़ी वाले बाल गाड़ते है तो किसी के मुंह से कैसी महक आती है , तो कोई मुझे गेंद की तरह उछाल-उछाल के खेलने लगता है, तो कोई कैसे मेरे साथ अपना मन बहलता है... पर मेरा जोर कहाँ चल पाता आप तो प्यार जताते ही पर मेरा क्या हाल होता है कभी सोचा? "

मैं -"हा हा हा, पर तु है ही इतना प्यारा तो अपने आप तुझे प्यार करने को मन करता है , तेरे साथ खेलने में और तुझे खिलाने में मजा आता है। तुझे इसमे क्या परेशानी होने लगी .. तुझे एक पल भी अकेला नहीं छोड़ते.. सारा ध्यान तेरे पर।"

वो - "वही तो बात है, आप बड़े लोग अपनी मन का करते सब , मेरा मन है या नहीं वो न आप पूछते न मैं बता पता हूं। अबसे आप लोग मुझे प्यार करो तो पहले मुझे पूछा करो , और क्या खाना है , कहाँ घूमने जाना है ये सब पूछा करो मुझे । ये मत समझो कि मुझे जो कुछ भी आप दे रहे हो वो सब मुझे पसंद ही है और मेरी जिंदगी में कोई तनाव नहीं है । मेरे लेवल का तनाव बस मैं ही झेल सकता हूं...आपको अपनी परेशनिया बड़ी लगती है मुझे अपनी... आप अपने लेवल की परेशानियों से रोज लड़ते है और मैं अपनी ... समझे पापा... अब आप सो जाओ सुबह आफिस भी जाना है आपको फिर बोलोगे की कान्हा तू तो दिन में सो जाता है मेरा क्या मुझे फिर ऑफिस में नींद आती है। गुड नाईट पापा।"

इसके साथ ही वो आवाज बन्द हो गई । मैंने बोला - ठीक है कान्हा गुड़ नाईट बेटा, मैं खयाल रखूंगा अब से...

तभी नीलिमा ने मुझे झकझोर के उठाया - क्या हुआ किससे बातें कर रहे हो , कबसे बड़बड़ाये जा रहे हो?

मैं हड़बड़ा के उठ बैठा देखा तो नीलिमा अचंभे के भाव से मुझे देख रही थी , मैंने मन में सोचा ओह्ह वो एक सपना था?

मैंने नीलिमा को कहा सो जाओ मैं कोई सपना देख रहा था बस।

मैंने बेटे की तरफ देखा, बेटा पास में सोया हुआ था, उसके चेहरे पे एक मुस्कान थी... शायद वो मुस्कान इस बात का प्रतीक थी कि उसने मुझे अपनी बात समझा दी थी।

मैं लेटा-लेटा सोच रहा था उफ्फ उम्र कोई भी हो सबकी अपनी-अपनी परेशानियां होती ही है , और सबको अपनी परेशानियां ही बड़ी लगती है।



Rate this content
Log in

More hindi story from Vishnu Saboo

Similar hindi story from Abstract