वो रात
वो रात


अंधेरा घिर आया था, मैं बड़ी तेज कदमों से घर की और बढ़ रहा था । लॉकडाउन की समय सीमा के चलते पूरा इलाका एकदम सुना हो चला था । मैं मन ही मन सभी देवी देवताओं को मनाते हुए चला जा रहा था कि भगवान बस सुरक्षित घर पहुँचा दो 5 रुपये का प्रसाद अर्पण करूँगा। मेरे डर का कारण था रास्ते मे पड़ने वाला एक हॉन्टेड घर। जिसके बारे में सुनने में आता है कि उसमे घोस्ट रहते है, और कई तरह की पैरानॉर्मल एक्टिविटी होती है , जैसे कि हँसने की डरावनी आवाजें आना, डरावनी चीखें आना और अकेले बंदे को देख के उसे मार देते है। हालांकि ये सब सुनी सुनाई बातें थी या सच मुझे नहीं पता।
वैसे तो मैं इन भूत-प्रेत में विश्वास नहीं करता, पर मुझे डर बहुत लगता है ऐसी बातों से । मैं अपनी गर्दन नीचे किये और ईश्वर की प्रार्थना करते बढ़ा जा रहा था कि किसी पे मेरी नज़र न पड़े और किसी से मेरी नज़र न मिले क्योंकि मैंने सुना है कि अगर आपकी नजर किसी ऐसी शख्सियत से मिल जाती है जो भूत है तो वो आपके पीछे पड़ जाता है।
मैंने दूर से देखा वो घर जिसकी कितनी ही हॉरर स्टोरीज मैंने सुनी, और मजाक में उड़ा दी थी, वो अभी भी 200 कदम दूरी पर था और मेरा ये वक़्त निकल ही नहीं रहा था। मैं बस सोच रहा था कि बस उस घर को पार कर लूँ उसके बाद कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता, मेरी मजबूरी थी कि मुझे वो घर के सामने से गुजरना ही था वरना मैं दूसरे रास्ते से निकल जाता , पर जो दूसरा रास्ता था वो सील किया हुआ था क्योंकि उधर महामारी का मरीज पाया गया था।
मैं बस कुछ कदम ही चला था कि अचानक मैंने देखा वो घर जो 8-10 घर छोड़ के आना चाहिए था, वो एकदम से मेरे सामने आ गया जिसे देख के मेरे पसीने चलने लगे .. मैं जोर-जोर से बजरंग बली को याद करते हुए तेजी से उस 200 गज लंबे घर को पार करना चाह रहा था कि तभी एक हाथ ने मेरा हाथ पकड़ लिया और मुझे घर में खींचने लगा .. मैं डर से चीख पड़ा कि कौन है छोड़ो मुझे .. मैं पलट के उसे देखना नहीं चाह रहा था क्योंकि वो कोई स्केरी फेस होगा जिसे देख कर मैं शायद बेहोश हो जाऊं।
मैंने जोर लगा के बोला कि छोड़ो मुझे प्लीज, तभी उसने कहा कि इतने दिनों बाद तो कोई हाथ आया है कैसे छोड़ दे.. आज तो दावत होगी। मैं पसीने से तर-बतर उसकी मिन्नतें करने लगा पर उसने मुझे घर के अंदर खींच लिया और हवा में उड़ाते हुए मुझे एक अंधेरे रास्ते से ले के जाने लगा। थोड़ा आगे जाकर कहीं कहीं रोशनी दिखने लगती फिर अंधेरा आ जाता। रास्ते में दीवारों पे कहीं मुंडिया लटकी थी तो कहीं शरीर के अलग अलग हिस्से जिन्हें इन लोगों ने मशाल और दीपक के जैसे इस्तेमाल किया था। मैंने कहा मुझे कहाँ ले के जा रहे हो तो वो बोला अपने दोस्तों के पास, इस लॉकडाउन के चलते हमें कोई मिल नहीं रहा तो हम पहले थोड़ा तुम्हारे साथ मन बहलायेंगे बातें करेंगे फिर आज का डिनर करेंगे ।
मैंने कहा मुझे नहीं करना डिनर, मैं खाके आया हूँ तो वो डरावनी हंसी हंसने लगा और बोला बेटा तुझे कौन डिनर करवाने वाला है हमारा डिनर तो तू है आज.. ये सुनकर मेरे होश उड़ गए मैं सोचने लगा क्यों मैं ऋत्विक के यहाँ देर तक रुका .. वो तो कबसे बोल रहा था कि भाई रात होने को है निकल जा पर मैं ही उसकी पड़ोसन नीलिमा से गप्पे लड़ाने बैठ गया .. उफ्फ अब क्या होगा मेरा... । तभी मुझे याद आया कि मेरे गले में तो हनुमानजी की मूर्ती है, मैं वो इसे स्पर्श करा देता हूं ये सोच के मैंने गले की तरफ हाथ बढ़ाया पर ये क्या मेरे गले में तो वो मूर्ती थी ही नहीं, क्योंकि आज सुबह ही मैंने वो निकाल दी थी , क्योंकि उसका धागा गल गया था और मैंने दीदी को बोला की इसमें दूसरा धागा लगा दो और फिर पहनना भूल गया। उफ्फ ये क्या कर बैठा मैं आज और आज ही ये मेरे साथ हो गया।
अब तो मेरा मरना निश्चित था। तभी उस भूत ने मुझे पटक दिया अपने साथियों के बीच .. वो जगह ऐसी गंदी और बदबूदार थी जगह-जगह खून बिखरा था एक प्लेट में कटी हुई अंगुलियाँ रखी थी जिसपे नमक मिर्च लगा रखी थी और पास में एक गिलास में खून से भरा गिलास पड़ा था, उसे देख ये आभास हुआ जैसे हम शराब के साथ चखना खाते है वैसा ही कुछ ये करते होंगे। कहीं खोपड़ियां पड़ी थी तो कहीं पे शरीर के अलग अलग हिस्से जिन पे तरह तरह के कीड़े-मकोड़े लगे थे और अपनी भूख मिटा रहे थे । मेरे गिरने की आवाज से सोये पड़े उसके साथी उठ गए और उसके साथियों को देख कर मेरी चीख निकल गई । हे देवा... ये क्या थे एक की मुंडी नहीं थी पर वो पेट पर अपनी आंखें और मुँह लगाए हुए था , तो एक अपनी खोपड़ी को बार बार अपने धड़ से उठा रहा था फिर धड़ पे लगा रहा था और कभी उसे हवा में उछाल के किक लगा कर अपने धड़ पे सेट कर रहा था, तो एक अपने नाखूनों को पत्थर पे घिस के धार कर रहा था और बोल रहा था इतने शार्प कर लिए है कि इस छोकरे के पेट मे ऐसे घुसेंगे जैसे मक्ख़न में छुरी । तभी एक पहलवान जैसा दिखने वाला भूत जिसने शायद वर्जिश करके अपने डोले इतने फुला लिए थे कि उसकी नसे फट के बाहर आ गयी और वो खून से नहाया हुआ था और भयंकर दिल दहलाने वाली आवाज़ में वो बोला कि ये क्या बात हुई पिछले शिकार को भी तूने ही काटा था , इस बार मेरा नंबर है .. इसे तो मैं 2 हिस्सों में फाड़ दूंगा, दाएं वाले पार्ट का कुछ नमकीन बनाएंगे और बांये वाले का कुछ स्वीट डिश।
तभी जो मुझे पकड़ के लेके आया वो बोला इसे पकड़ के मैं लाया हूँ तो इसे मारूँगा भी मैं ही इसकी खोपड़ी में लोहे की स्ट्रिप लगाकर इसका गरम खून पिऊँगा और उसके बाद इसका दिल निकाल के उसकी एक नई डिश बनाकर खाऊंगा.. बाकी का हिस्सा तुम आपस में बांट लेना। तभी एक भूतनी ने उस जगह एंट्री ली उसका हॉरर फेस देख के मेरी आँखें फटी की फटी रह गई , उसके होंठ उसके माथे पे लगे थे और उसकी नाक उसके गले पे लगा था अपनी दिल दहलाने वाली आवाज़ में उसने बोला इस हीरो का मुंडी तो मैं खाऊँगी पिछली बार भी तुम लोगों ने मुझे बस उस छोकरे के हाथ खाने दिए थे। उसकी बात सुन कर बाकी सब डरावनी सी हंसी हँसने लगे, इन सबकी ये प्लानिंग सुनकर मेरी रूह कांपने लगी, मैं तो हॉरर मूवी भी इस डर से नहीं देखता था कि मेरी चीख निकल जायेगी और कहीं पतलून न गीली हो जाये, पर अभी मेरे सामने जीवंत हॉरर सीन चल रहा था और साक्षात भूत मंडली मेरी नई डिश बना कर खाने को तैयार हो रही थी ।
मेरे हाथ पैर ठंडे हो गए थे और मैं थूक पे थूक गटक के अपने मरने के प्लानिंग सुन रहा था उनकी भयावह चीर फाड़ वाली प्लानिंग सुनकर डर के मारे मैं उनके मारने से पहले दिल के दौरे से मरने वाला था.. पर कहते है ना परेशानी में आदमी का दिमाग या तो एकदम सुन्न हो जाता है या तेज काम करने लगता है। मैं हॉरर शो और हॉरर मूवीज भले ही न देखता था, पर मैंने सुना था कि इन भूतों को किसी क्रॉस, त्रिशूल, या किसी धार्मिक धागे या ताबीज से खत्म या दूर भगाया जा सकता है ... मैं आस-पास देखने लगा कि कोई ऐसी चीज मिल जाये जिससे मैं इन्हें डरा सकूँ और यहां से निकल जाऊं, पर हाय रे मेरी बदकिस्मती मुझे ऐसा कुछ नहीं दिखा वहाँ।
और उधर वो लोग अपना भूतिया डांस शुरू कर दिए थे जिसमें वो कभी अपने पैरो को सर पे लगाकर तो कभी अपनी मुंडी को अपनी अंगुलि पे फुटबॉल की तरह घुमाकर करतब दिखा रहे थे.. शायद मारने से पहले मेरा मनोरंजन करने के लिए या ये उनका तरीका था जश्न मनाने का ... मैं बस आंखें बंद करके भगवान को याद कर रहा था की ईश्वर बस इस बार बच ले। तभी वो जो मुझे पकड़ के लाया था उसने लोहे की स्ट्रिप हाथ में ले ली और बोला मैं नाच नाच के थक गया हूं मुझे अब प्यास लगने लगी है अब मैं इसका खून पीऊँगा। मैं डर के मारे भागने लगा जिधर जगह मिल रही थी उधर भागने लगा पर उन सबने मेरे सारे रास्ते रोक रखे थे और मेरी इस भाग दौड़ का मजा लेने लगे .. और जोर जोर से हंसने लगे मेरी लाचारी पर।
तभी उस पहलवान भूत ने अपना हाथ लंबा किया और मुझे पकड़ के अपनी डिनर टेबल पे पटक दिया और बोला बस अब बहुत हुआ मनोरंजन अब भूख लगी है, भूतनी ने भी कहा कि हाँ मैं भी भूखी हूँ चलो अब इसे खाया जाए , सबने इस पे अपनी सहमती दी और लोहे की स्ट्रिप मेरी तरफ बढ़ने लगी और मेरे सर के पास आके वो ड्रिल की तरह घूमने लगी मेरी खोपड़ी में सुराख बनाने के लिए .. मैंने आखिरी बार बजरंग बली का नाम लिया पर जरूर मेरा कोई पाप आड़े आ रहा था कि भगवान भी मेरी नहीं सुन रहे थे। उस भूत ने स्ट्रिप मेरी खोपड़ी में घुसा दी और मेरा खून पीके अपनी प्यास बुझाने लगा.. मैं धीरे-धीरे चेतना खोता जा रहा था और अधखुली आंखों से उन सबके खुशियों से भरे चेहरे देख रहा था, वो सब उतावले थे कि जैसे ही ये मेरा खून पीकर खत्म करें वो लोग मुझे अपनी मन पसंद डिश में बनाये और अपनी क्षुधा शांत करे... फाइनली उसका खून पीके खत्म हुआ और अब सबने अपने नुकीले नाखूनों से मेरी चीर फाड़ शुरू कर दी... जो मुझे पकड़ के लाया था उसने अपने हाथ को कटर जैसा शेप दिया और मेरा दिल निकाल कर खाने की प्रक्रिया शुरू कर दी.. और इसी के साथ मेरी आँखें अब बंद हो चली .. मेरे प्राण निकल गए और मैं मेरी रूह अब उन्हें चटखारे लेकर मुझे खाते हुए देख रही थी। वो सब इस दावत का बहुत आनंद ले रहे थे और भूतिया तरीके से मुझे खा रहे थे। वो खाये पिये और फिर बेसुध होके सो गए.. ।
लेकिन मैं तो कुछ खाया हुआ नहीं था दोपहर से अब मैं उसी हॉन्टेड घर की मुंडेर पे बैठा हूँ और प्रतीक्षा कर रहा हूँ कि कोई आए और मैं डिनर करूं।