ज्ञान और संस्कार (आलेख)
ज्ञान और संस्कार (आलेख)
ज्ञान और संस्कार (आलेख)
यूनान, रोम, मिस्र सब मिट गए जहाँ से,
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी....
इकबाल जी की ये पंक्तियाँ आज भी उतनी सत्य है....
सच में कुछ तो खास हैं हम और कुछ खास हमसे हो जाता है। वेद-पुराणों, उपनिषदों की भूमि , भारत भूमि ज्ञान का ऐसा सागर है जिसमें सारे विश्व से लोग आकर अपनी ज्ञान पिपासा मिटाने के लिए गोता लगाते हैं। संस्कृत सीखने के लिए लोग इसलिए ललायित रहते हैं कि वे वो ज्ञान पा सकें जो भारतीय साहित्य और ऋषिमुनियों की धरोहर हमारे भारतवर्ष में है।
हमारी सभ्यता, हमारी संस्कृति प्राचीनतम व श्रेष्ठ है। संस्कारों की संस्कृति भारत भूमि अपनी इसी विशेषता की वजह से विश्व में विशिष्ट है। हर भारतवासी जन्म से लेकर जीवनपर्यंत अनेकों संस्कारों का वहन करता है। हर संस्कार का जीवन में सही तरीके से पालन करने के लिए उसका ज्ञान होना आवश्यक है। ज्ञान हम गुरू से प्राप्त करते हैं।
ज्ञान प्राप्ति तो जीवन भर चलती रहती है ,बस हमारे गुरू बदलते रहते हैं।
जन्म लेते ही माँ पहली गुरु बन जाती है और उसके बाद पिता जीवन में आगे बढ़ने की शिक्षा देते हैं। भारती य संस्कृति के अनुसार संस्कारों की नीव घर से ही पड़ जाती है। इसके बाद सही अर्थों में विद्या प्राप्ति के लिए विद्यालय / स्कूल में ज्ञान प्राप्त करने के लिए गुरु के पास जाना पड़ता है। घर में बहन - भाई और स्कूल में मित्र - सखा व्यवहार का ज्ञान भी सिखा देते हैं। परिवार से मिलने वाले संस्कार और गुरु के ज्ञान से मिलने वाले संस्कार इंसान को जीवन में हमेशा ऊँचा उठने को प्रेरित करते रहते हैं। सही अर्थों में माना जाए तो जो संस्कारों की नींव घर से डल जाती है तो स्कूल में तो बनी रहती है, वह अपने आप ही और भी सुदृढ़ बन जाती है। गुरु ज्ञान के साथ-साथ एक व्यवहारिक संस्कार भी अपने शिष्य में डाल देते हैं और जितनी लगन से विद्यार्थी गुरु से ज्ञान प्राप्त करते हैं उतना ही जीवन में वे ऊंचा उठते चले जाते हैं। इन सब के साथ वक्त और जिंदगी बहुत सारे ज्ञान के सबक हमें पढ़ा देते हैं।
सब गुरुओं में सबसे ऊपर वह परमपिता परमात्मा जो हमारे सब कर्मों का हिसाब रखते हैं और समय-समय पर हमें सचेत करते रहते हैं। सत्कर्मों के प्रति हमारा ज्ञान बढ़ाते रहते हैं। उस परमपिता से मिलने का ज्ञान फिर से हमें अपने गुरु से मिलता है तो देखा जाए तो गुरु ही सबसे ऊपर क्योंकि वही हमें प्रभु मिलन के ज्ञान की ज्योति मन में प्रज्वलित करते हैं। अपने संस्कारों को समय के साथ - साथ हम चलाए रखते हैं और जीवन को सुचारू रूप से सुखमय बनाते हैं। ज्ञान और संस्कार, हमारे व्यवहार में हमारे जीवन को सजाए रखते हैं। हमारे संस्कार ही सही अर्थों में हमारी व्यवहारिक डिग्री है। देव भूमि भारत, संस्कारों की संस्कृति भारत, शत-शत नमन।