संस्मरण
संस्मरण
जल ही जीवन है यह बचपन से जाना, ज्यादा कभी ना व्यर्थ गँवाया यह संस्कारों में था आया।
कमी न रही पानी की कभी
सदा ही घर में तीनों वक्त आया। असली कीमत तब समझ आई जब विदेश में जा कई देश घूम आई। ₹20 की बोतल जब सौ में खरीदनी पड़ती तब अपने पैसे की कीमत पता चलती। पानी के लिए पैसा देना बहुत ही था खलता पर मजबूरी वह अपना देश ना था। लंदन, पैरिस, स्विट्जरलैंड ....पानी की कीमत उफ्फ... ईजिप्ट में 5 दिन क्रूज में बिताए, जिंदगी के बहुत सुंदर अनुभव जोड़ कर लाए। बच्चे छोटे थे तो पानी ज्यादा माँगते थे और हर बार पैसों का खातमा होता देखते थे। हमारे यहाँ तो हैंड पंप, नदियाँ, कूँआ,बौड़ी, प्याऊ, पता नहीं कितने ही साधन जहां जाओ पानी पी आओ। पर विदेश की धरती या खरीदो या उबालो। वहाँ जाकर तो ऐसा लगा मानो हमें तो भगवान ने वरदान के रूप में पानी दिया और हमने उसे कितना गँवाया। पैसे से जब खरीद कर पीया तो कीमत और भी समझ आई। हमें तो अपने देश में पानी बिसलेरी के टेस्ट में अंतर ना समझ आया पर विदेशों में जा पैसे ने बहुत कुछ समझाया।
अब तो मन में यही था ठाना कहीं होने देंगे पानी की बर्बादी ।जहांँ भी जरूरत होगी आगे बढ़ जागरूकता फैलाने की पूरी करेंगे जिम्मेदारी। शिक्षिका होने के नाते बच्चों को सब समझाती हूँ, पानी को बचाने के गुर भी सिखाती हूँ। प्रण यही लेते हैं "न पानी को बर्बाद होने देंगे ना खुद पर बरबाद करेंगे "।