क्या खोया ?क्या पाया?
क्या खोया ?क्या पाया?
कहते हैं जब परिस्थितियांँ साथ ना दें और उन्हें बदला ना जा सके तो उनके साथ ही समझौता कर स्वीकार कर जीना सीख लेना चाहिए । कुछ ऐसा ही हाल हम शिक्षकों, बच्चों व हमारी शिक्षा का है। आज के परिप्रेक्ष्य में शिक्षा का स्वरूप बिल्कुल बदल गया है । करोना के चलते हुए जब स्कूल में बच्चों को बुलाया नहीं जा सकता तो केवल एक ही माध्यम / विकल्प रह जाता है और वह है ऑनलाइन शिक्षा।
मैं सरकारी स्कूल की शिक्षिका हूँ और आजकल पिछले मार्च से आनालाइन पढ़ा रही हूँ । असंभव को संभव करने में प्रयासरत । ऑनलाइन शिक्षा वह भी भारत के सरकारी स्कूल में , सभी के लिए बहुत ही मुश्किल दौर चल रहा है । शिक्षक का तो ज्ञान बहुत बढ़ा है । विषय को आनलाइन पढ़ाने से टेक्नोसेवी हो गये । जिन चीजों से शिक्षक घबराते थे वही अब कंप्यूटर पर ऑनलाइन सब काम संभाल रहे हैं । लेकिन जहाँ बात बच्चों की आती है वहाँ शिक्षकों को बहुत ही परेशानियों को झेलना पड़ता है । सबसे अधिक मुश्किल होती है जब शत-प्रतिशत बच्चा जुड़ नहीं पाता। ऐसा नहीं है कि फोन नहीं है लेकिन फिर भी कहीं नेट प्रॉब्लम तो कहीं डाटा फिनिश ।
जहाँ माता- पिता दोनों काम पर जाने वाले हैं वहाँ बच्चे पढ़ाई कम गेम ज्यादा - कह सकते हैं। लेकिन यह हर किसी के लिए नहीं है। समझदार बच्चे बहुत अच्छे से ऑनलाइन भी अपना काम कर रहे हैं । गूगल मीट पर क्लास लगाना, गूगल क्लासरूम में काम सब्मिट करना ,विडियोज बनाना , यह सब काम बच्चे कर पा रहे हैं। टेस्ट देने और लिखने से कतराते हैं ।अगर एग्जाम गूगल फार्म पर है तो बहुत खुश , क्योंकि एम सी. क्यू. में टिक- टिक- टिक । जो बच्चे रेगुलर और ईमानदारी से क्लास में जुड़ कर अपना काम कर रहे हैं वो पूर्णतया सफल हो रहे हैं। उन्होंने तो बहुत कुछ पाया और सीखा है। क्योंकि अब पिछले एक साल से इतना अनुभव हो गया है कि इस साल बच्चे और अच्छी तरह से अपना काम कर पा रहे हैं।
फर्क इतना ही है जैसे क्लास में भी 5 या 7 बच्चे शैतानी करके ध्यान नहीं देते , वैसा ही ऑनलाइन में भी गड़बड़ है । स्कूल की क्लास में बच्चे को पकड़ लेते हैं और समझा देते थे पर , ऑनलाइन में स्क्रीन के उस तरफ हम कुछ नहीं कर पाते। पर अगर माता-पिता का साथ है तो ऑनलाइन शिक्षा पूरी तरह से सफल हुई है । केवल कमी वहीं है जहाँ घर में बच्चे पर चेक नहीं हो पा रहा। उसने काम किया और सबमिट नहीं किया तो टीचर केवल मैसेज दे पाता है उसके घर तो नहीं पहुँच पाता । इस तरह हमने खोया भी है । बच्चे के माता पिता बच्चे की क्लास के ग्रुप को यदि चेक करते हैं तो बच्चे अच्छे से काम करते हैं। बच्चों के व्हाट्सएप ग्रुप में वह सारा काम हर रोज डाला जाता है जो ऑनलाइन में करवाया जाता है ताकि जो बच्चा किसी भी वजह से ना जोड़ पाए वह उसे देख कर कम से कम यह तो समझ ले कि इतना काम हुआ है।
ऑनलाइन शिक्षा को सफल बनाने का हर संभव प्रयास किया जा रहा है शिक्षक तो अब 24 घंटे का शिक्षक हो गया है और बच्चे तो बेचारे कैद पंछी की तरह तड़प रहे हैं कि कब स्कूल खुलें और कब हम घर से बाहर निकले।खोने की बात करुँ तो बच्चों ने ज्यादा खोया है । स्कूल की पढ़ाई, दोस्ती,लंच टाइम, गेम्स पीरियड और अब तो हालत यह है कि बस स्कूल खुलें और भागें।