Anita Sharma

Romance Classics

4.5  

Anita Sharma

Romance Classics

जनम-जनम का साथ

जनम-जनम का साथ

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"दीपमाला तू आ रही है न? पार्टी शाम की जगह दोपहर में रखी है। क्योंकि इसबार वैलेंटाइन डे संडे को है तो सभी फ्री रहेंगें। और पार्टी करके सभी टाइम से घर चले जायेंगें । आखिर सुबह हम सभी को फिर से ऑफिस भी पहुंचना है। "


दीपमाला की बचपन की दोस्त पिंकी ने एक होटेल में पार्टी रखी है।दीपमाला का मायका और ससुराल एक ही शहर में है। तो उससे दीपमाला का हमेशा मिलना जुलना होता रहता है। वो पहले भी दीपमाला से पूँछ चुकी है। पर उसका कोई संतोष जनक उत्तर न मिलने से वो दोबारा उसे पार्टी में आने के लिये बोल रही है। पर इसबार भी दीपमाला ने अनमने ढंग से बोला.......


"पता नहीं यार आऊँगी की नहीं? तू तो जानती है कि समर के पास इससब के लिये टाइम नहीं है। फिर भी मैं बात करती हूँ उनसे । पूरी कोशिश करूँगी आने की। बाय"


दीपमाला की शादी को अभी दो साल ही हुये है। उसके पति समर पेशे से डॉक्टर है। उन्हे ये वैलेंटाइनडे मनाना पसन्द ही नहीं है । और ये प्यार का त्यौहार ही क्यों समर को तो किसी और चीज का भी शोंक नहीं। बस घर से हॉस्पिटल और हॉस्पिटल से घर। वहीं दीपमाला को पार्टियों में जाना, डांस, गाना हर चीज का शोंक है। बस इसी बात पर दोनों में तना तनी होती रहती है।


इससब के बावजूद दोनों में बहुत प्यार है। दीपमाला जहाँ समर की हर छोटी बड़ी जरूरतों का ख्याल रखती है। और समर उसके हर सपने को पूरा करने की पूरी कोशिश करता है। ये मानो कि दीपमाला के सपनों को वो खुद ही जीने लगता है। बस समर से ये पार्टियों में जाना नहीं हो पाता।


आज भी दीपमाला ने जैसे ही समर से पार्टी में चलने के लिये कहा समर ने मुस्कराते हुये कहा.....


" दीपू तुम चली जाओ न, मेरा बिल्कुल मन नहीं है। "


दीपमाला गुस्से में तमतमाते हुये बोली......


" ये मेरी कोई किट्टी पार्टी नहीं है, जिसमें में अकेले चली जाऊं । वहाँ सब अपने - अपने पार्टनर के साथ आयेंगे मैं अकेले वहाँ क्या करूँगी"?


"अरे दीपू तो मत जाओ न। वैसे भी ये प्यार के नाम पर दिखावा मुझे पसन्द नहीं सो प्लीज!! "


समर ने सीधे शब्दों में कहा और टी वी चलाकर आराम से न्यूज देखने में बिजी हो गये । दीपमाला को समर से यही उम्मीद थी। फिर भी उसकी आँखों के कोर गीले हो गये। जिन्हे पोंछते हुये वो अपने कमरे में जाकर मुँह ढक कर लेट गई। तभी समर ने उसके चादर को खींचते हुये उसे आवाज देकर उठाया....

पर दीपमाला ने अपने चादर को और भी जोर से पकड़ लिया। जब हल्के से खींचने पर चादर नहीं हटा तो समर ने उसे चादर के साथ ही उठाकर बिठा दिया और वैसे ही उसे गले लगाते हुये बोला......


"उठो न दीपू चलो खाना खाते हैं । क्या छोटी सी बात पर गुस्सा हो जाती हो। तुम्हे पता तो है मैं कैसा हूँ। फिर भी क्यों जिद करती हो। "


गुस्से मैं दीपमाला चादर हटा कर बोली ...... "हाँ जानती हूँ । पता नहीं किस प्रकार के आदमी हो? न तो कोई सपना है न हि कोई शोंक। मेरी तो किस्मत ही खराब थी जो मुझे आपके जैसा पति मिला। "


"पर मेरी किस्मत बहुत अच्छी है कि मुझे तुम्हारे जैसी प्यारी बीबी मिली। सही कहा दीपू तुमने की मेरा कोई सपना नहीं है। न ही कोई शोंक क्योंकि डॉक्टरी की पढ़ाई करते - करते मेरी आदत हो गई है अकेले रहने की और अपने काम से काम रखने की।पर अब मुझे एक नया शौक लगा है। तुम्हारे हर सपने को हर ख्वाहिश को पूरा करने का।और तुम्हारे ये पार्टी में जाने की ख्वाहिश भी मैं जरूर पूरी करूँगा।"


समर दीपमाला का हाथ अपने हाथों में लेकर उन्हे प्यार से सहलाते हुये बोला।समर के यूँ मान जाने से दीपमाला के आँखों में अबतक रुके आँसू गालों पर लुढ़क कर आ गए। जिन्हे साफ करते हुये समर के हाथों को पकड़ते हुये बोली..... ...


"समर मैं कभी नहीं चाहूँगी कि तुम्हे मेरी वजह से वो काम करना पड़े जो तुम्हे पसन्द न हो।अब हम कहीं नहीं जायेंगे कल बस यूँ ही घर में रहकर हम एक दूसरे के साथ समय बितायेगें।"


दीपमाला की बात सुनकर समर उसे अपनी बाहों में भरते हुये बोला...."एकदिन ही क्यों मैं तो तुम्हारे साथ हर जनम बिताना चाहूंगा। "


समर की बात सुनकर दीपमाला भी मुस्कराते हुये " मैं भी "बोल उसके सीने में समा गई।



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