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Kamini sajal Soni

Tragedy

3.5  

Kamini sajal Soni

Tragedy

जंजीरे

जंजीरे

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वार्षिक पत्रिका के प्रकाशन के लिए हर कक्षा के बच्चों को सूचना दी गई कि आप अपने अपने विचार, रचनाएं ,कविताएं या कलाचित्र प्रकाशन हेतु दे सकते हैं।

सौरभ घर आया आते ही घर पर देखता है कि उसकी मां को किसी बात पर बहुत जोर जोर से डांटा जा रहा है। शायद ऐसा माहौल उसको रोज ही देखने मिल जाता था....अंदर तक सिहर गया यह नज़ारा देखकर।

मां क्या हुआ ? आप क्यों रो रहे हो।

कुछ नहीं बेटा। तुम बताओ कैसा रहा स्कूल !!

अच्छा रहा मां.. ‌‌

स्कूल में वार्षिक पुस्तक प्रकाशन हेतु अपना योगदान देना है मां अब मैंने सोच लिया मैं क्या कर सकता हूं।

>मन ही मन निश्चय कर सौरभ कला चित्र बनाने बैठ जाता है और यह क्या उसने एक जंजीरों में जकड़ा हुआ चित्र बना डाला ।

मां आश्चर्यचकित होकर पूछती है बेटा यह क्या???

मां यह भारत मां है।

जंजीरों में जकड़ी हुई!!

आज़ादी के इतने वर्षों पश्चात भी भारत मां आज़ाद नहीं हुईं।

बेटे के मुंह से यह बात सुनते ही मां की आंखों में आँसू आ गए और मन ही मन सोचने लगी कि भारत मां और औरत शायद ही कभी जंजीरों से मुक्त हो पाए।

कभी परंपराओं के नाम पर, कभी खानदान के नाम पर, कितने ही ऐसे कारण होते हैं जो एक स्त्री को बंधन में जकड़ते चले जाते हैं!!!



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