जमी हुई बर्फ
जमी हुई बर्फ
रेडियो पर निधि और प्रभात का पसंदीदा गाना आ रहा था। जिसे सुनते हुए भी वो गुमसुम सी थी।
यूँ तो आज उन दोनों की शादी की पच्चीसवीं सालगिरह थी लेकिन निधि के मन में ना कोई खुशी थी ना कोई उमंग।
ख्यालों में खोई निधि की तन्द्रा बाई की आवाज़ से टूटी "मेमसाब, आज खाने में कुछ खास बनाना है क्या?"
नज़र बचाकर छलक आये आँसुओं को पोंछकर उसने कहा "नहीं, जो रोज बनता है वही बनाओ" और उठकर अपने कमरे में चली गयी।
सीढ़ियों के पास खड़े प्रभात ने निधि को आँसू पोंछते हुए देख लिया था। उसने सोचा जाकर निधि से बात करे लेकिन तभी व्यापार के सिलसिले में किसी का फोन आ गया और वो व्यस्तता में निधि की बात भूल गया।
हर साल की तरह इस बार भी प्रभात ने सालगिरह पर फाइव स्टार में पार्टी का आयोजन किया था। ऐसे अवसरों पर शहर के नामी-गिरामी लोगों को आमंत्रित करके संपर्क बढ़ाना और फिर इसका इस्तेमाल अपने व्यापार को बढ़ाने में कैसे करना है ये प्रभात बखूबी जानता था।
बस पार्टी की शुरुआत में कुछ देर और फिर केक कटिंग के वक्त ही वो कुछ वक्त निधि के साथ रहता था और फिर उसका बाकी का वक्त अपने साथी व्यापारियों और अफसरों के साथ बीतता था। उधर निधि शहर की हाई-प्रोफाइल महिलाओं से घिरी बेबस नज़रों से प्रभात की ओर देखती और घुटकर रह जाती। ये फाइव स्टार की शान-ओ-शौकत, ये नामी-गिरामी लोगों का साथ शुरू-शुरू में तो बहुत अच्छा लगता था। लेकिन अब ये सब चीजें उसे सुकून नहीं दे पाती थी, उल्टे उसकी बेचैनी ही बढ़ा देती थी।
उसे याद आते थे शादी के बाद के वो शुरू-शुरू के दिन जब प्रभात के पास हमेशा उसके साथ वक्त बिताने का, बातें करने का समय होता था। अब तो महीनों बीत जाते है दोनों को एक-दूसरे से कुछ कहे हुए। खाने की टेबल पर बस सुबह मुलाकात होती है जिसमें बस काम की ही चंद बातें होती है। देर रात जब प्रभात लौटता है निधि इंतज़ार में थककर सो चुकी होती है।
आज भी दोपहर में प्रभात ने फोन करके बस इतना ही कहा "शाम की पार्टी की सारी तैयारियां हो चुकी है, सात बजे ड्राइवर चला जायेगा तुम्हें लेने।"
"ठीक है" कहकर निधि ने फोन रख दिया।
जब निधि पार्टी की जगह पर पहुँची प्रभात पहले से ही वहां मौजूद था। उसने निधि के चेहरे की उदासी भांप ली और कहा "ये कैसा चेहरा बना रखा है तुमने? थोड़ी मुस्कुराहट लाओ चेहरे पर। आज एक बेहद महत्वपूर्ण कॉन्ट्रैक्ट की बात होनी है पार्टी में। वो लोग तुमसे भी मिलना चाहते है। उनके सामने ऐसा चेहरा रखोगी तो क्या सोचेंगे वो?"
प्रभात की बात सुनकर निधि ने बिना कुछ कहे नकली मुस्कान से अपनी उदासी को ढंक लिया।
हमेशा की तरह पार्टी बहुत शानदार रही और प्रभात को वो कॉन्ट्रैक्ट मिलना लगभग तय हो गया। उसकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था।
पार्टी खत्म होने के बाद घर पहुँचकर निधि अपने कमरे में जाने लगी तो प्रभात ने उसका हाथ थाम लिया और कहा "निधि, रुको। मुझे बताओ क्या बात है? सुबह से देख रहा हूँ तुम कुछ ठीक नहीं लग रही। मैं सुबह ही तुमसे बात करना चाहता था लेकिन फिर एक फोन आ गया और मेरे दिमाग से बात निकल गयी।"
"बस यही तो बात है प्रभात की तुम्हारे पास मेरे लिए वक्त ही नहीं रहा। क्या तुम्हें याद है हम आखिरी बार कब साथ बैठे थे, कब हमने बातें की थी, कहीं बाहर गए थे जहां तुम्हारा मोबाइल बीच में नहीं था" निधि ने भर्राए स्वर में कहा और जाने लगी
"रुको निधि, तुम इस तरह मुझ पर इल्जाम लगाकर नहीं जा सकती। तुम्हें मेरी बात भी सुननी होगी" प्रभात ने फिर से निधि को रोकते हुए कहा।
"बोलो, क्या कहना है तुम्हें" निधि ने शून्य में देखते हुए जवाब दिया।
"अगर मैं ये कहूँ की इसकी जिम्मेदार तुम खुद हो तो क्या कहोगी तुम?"
प्रभात की बात सुनकर निधि ने चौंककर उसकी तरफ देखा।
"याद है, हमारी शादी की पहली सालगिरह थी, तब हमारा व्यापार छोटा था पर इतना था कि हम एक ढंग की ज़िंदगी जी रहे थे।
सालगिरह के जश्न में हम दोनों के परिवार वाले शामिल हुए थे।
मैं कितने अरमानों से तुम्हारे लिए एक छोटी सी अंगूठी और नैनीताल की टिकट लाया था पर तुम सारे वक्त ललचाई नज़रों से अपनी बहन के महंगे हार को देखे जा रही थी और उनके विदेश यात्रा के किस्से सुनकर आँहें भर रही थी।
अंगूठी और टिकट लेते हुए तुमने जो उदासीनता दिखाई, उसने मेरे दिल को तोड़कर रख दिया था।
कोई भी पति ये बर्दास्त नहीं कर सकता कि उसकी पत्नी उसे नाकारा समझे, ये समझे कि वो उसकी ख्वाहिशें पूरी करने के लायक नहीं है। बस उसी पल मैंने तय कर लिया कि मैं तुम्हारी इस उदासीनता को, दूसरों को देखकर मन मसोसकर रह जाने की मजबूरी को तुमसे दूर कर दूंगा। और ये तभी सम्भव होता जब मैं दिन-रात अपने काम पर ध्यान देता।
आज देखो तुम्हारे पास तुम्हारी बहन के उस हार से भी कीमती जेवरातों की कमी नहीं है, साल में दो बार विदेश दौरा हो ही जाता है। अब जबकि मैं तुम्हें किसी को देखकर मन मसोसने नहीं देता तब भी तुम्हें मुझसे शिकायत है निधि?" प्रभात ने जबरन अपने आँसुओं को रोकते हुए कहा।
निधि हैरान रह गयी प्रभात की बातें सुनकर। वो ठीक ही तो कह रहा था ये उसकी दबी हुई महत्वकांक्षाएं ही तो थी जिन्हें प्रभात खामोशी से पूरा करता रहा बिना किसी शिकायत के। और वो उसे ही दोष देती रही जबकि दोषी वो खुद थी।
अपनी छोटी सी दुनिया में कितने सुखी थे वो एक-दूसरे के साथ, लेकिन उसे ही दूसरों के महल को निहारने का रोग लग गया था और आज खुद का महल उसे काटने के लिए दौड़ रहा था।
सच ही तो है
"कभी किसी को मुक़म्मल जहाँ नहीं मिलता,
कहीं ज़मीन तो कहीं आसमान नहीं मिलता"
ये तो इंसान पर है कि वो किस तरह अपनी ज़िंदगी के अधूरेपन को अपनी मुस्कान और अपनों के प्रेम से भर लेता है, या फिर आँसू बहाकर उस अधूरेपन के अहसास को और बढ़ाता चला जाता है
दोनों के बीच पसरी खामोशी को तोड़ते हुए निधि ने कहा "तुमने ठीक कहा प्रभात, मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गयी।
मेरी अनकही बातों को, ख्वाहिशों को तुमने समझ लिया, पर मैं कभी तुम्हारी खामोश निगाहों को नहीं पढ़ सकी। जब मेरे पास तुम्हारा साथ था, तुम्हारे प्यार से सजे छोटे-छोटे खूबसूरत लम्हे थे तब मैं उनकी कद्र नहीं समझ सकी और आज उनकी याद में ही घुट-घुटकर जी रही हूँ और तुम्हें भी इसी तरह जीने के लिए मजबूर कर रही हूँ।
क्या तुम अपनी निधि को माफ कर सकोगे?"
निधि के आँसू पोंछते हुए प्रभात ने कहा "तुमने कोई गलती नहीं कि। ये तो मानव स्वभाव है जो उसके पास नहीं होता वही उसे सुहावना लगता है। भूल जाओ जो भी हुआ।
अगर तुम चाहो तो अब भी हमारे पास थोड़ी ज़िन्दगी बची है जो हम एक-दूसरे के साथ प्रेम की छांव में जी सकते है, जहां बस हम दोनों होंगे और हमारी वो मोहब्बत होगी जिसने आज भी हमें मजबूत डोर में बांधकर रखा है।"
"मैं क्यों नहीं चाहूँगी प्रभात, मैं क्यों नहीं चाहूँगी?" कहते हुए निधि प्रभात के गले लग गयी।
दोनों के आँसुओं ने अब तक के तमाम गिले-शिकवों को बहा दिया।
"मैंने सोचा लिया है कल ही हमारे बच्चों को सब कुछ सौंपकर, अब मैं सारी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाऊँगा और अपनी निधि के साथ उन तमाम लम्हों को जीऊंगा जो अब तक नहीं जी पाया" प्रभात ने निधि को बांहों में थामे हुए कहा।
"सारी जिम्मेदारी से तुम कैसे मुक्त हो सकते हो प्रभात ? हमारे प्रेम की नई जिम्मेदारी जो अभी-अभी तुमने ली है उसे तो निभाना है ना ताउम्र" निधि ने अपने पुराने शरारती अंदाज में कहा।
दोनों के सम्मिलित ठहाकों ने उनके रिश्तों में जम गई बर्फ को हमेशा के लिए पिघला दिया था।
घर का बोझिल वातावरण एक बार फिर मोहब्बत के रंगों से खिल उठा।
दो बिछड़े प्रेमी एक-दूसरे का हाथ थामे प्रेम के अस्तित्व को सार्थक करते हुए मुस्कुराते हुए नए सफर की शुरुआत कर रहे थे।