इच्छित जी आर्य

Tragedy

2.8  

इच्छित जी आर्य

Tragedy

जिस्मानी प्यार और समाज

जिस्मानी प्यार और समाज

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"मेरी बेटी यहाँ बैठेगी..." सोचते हुए ही सुचित्रा कमरे में दाखिल हुई थी।


कमरे का दरवाजा खोलते ही सुचित्रा के चेहरे पर असमंजस के भाव थे। फाइव स्टार होटल का यह एयर-कंडीशनर कमरा चार लोगों के दिनरात के ठहरने के हिसाब से डिजाइन किया गया था। दो जोड़ी बड़े-बड़े बेड, सोफे, कुर्सियां, मेज और इस तरह के इंतजामात कमरे में थे कि चार लोगों के लिए ठहरने के लिए बने कमरे में आराम से आठ-दस लोग बैठ सकते थे। अब जब इंतजाम मौजूद थे, तो उन सुविधाओं का फायदा उठाने में भला किसी को क्या परेशानी हो सकती थी! पर सुचित्रा के लिए तो जैसे यही परेशानी की बात थी।


चटकती गर्मी के मौसम में जहां शाम के वक्त में भी बाहर आसमान से धधक बरस रही थी, दुल्हन के जोड़े में सजी रचना के ये ढेर सारे सगे रिश्तेदार फाइव-स्टार होटल के एयर-कंडीशनर कमरे के आराम के लुत्फ उठाने में जुटे हुए थे। सगे रिश्तेदार मतलब रचना के दादा-दादी, बुआ-फूफा, चाचा-चाची, बुआ की दो लड़कियाँ, चाचा जी के दो लड़के और एक लड़की, सभी को मिलाकर कुल ग्यारह लोगों का पूरा कुनबा था, जो परिवार में हो रही शादी का अहम हिस्सा बनने को बेताब था और उसी के लिहाज से वो सब के सब जाने क्या-क्या और न जाने कितना कुछ बतियाने में जुटे हुए थे!


सुचित्रा ने कमरे में दाखिल होने के साथ ही एक पल को दाहिने से बाएं गर्दन घुमाते हुए उन सभी को घूरा। फिर मानो एकदम से चीख पड़ी-

"आप सभी लोग निकलो यहां से। मेरी बेटी यहां बैठेगी।"


परिवार में हो रही शादी के लिहाज से सज-धज कर भयानक गर्मी के मौसम में एयर-कंडीशन कमरे में सुख के पल काट रहे सभी के लिए ही साफतौर पर ये यकायक शब्द दिल में गहरे चुभने वाले थे। एक अकेली रचना को बिठाने के लिए आखिर इतने सारे लोगों को उठाकर कमरे से बाहर निकालने की क्या जरूरत थी! और मान भी लिया जाये कि रचना को इसी कमरे में बिठाना था, तो दुल्हन के जोड़े में सजी रचना के लिए ये सारे रिश्तेदार इतने नजदीकी थे कि उसे गोद में खिलाने से लेकर आज तक की हर घड़ी ही रचना ने उनके इर्द-गिर्द ही गुजारी थी। तो दुल्हन के पहनावे के भारी गहनों-कपड़ों की वजह से गर्मी से ज्यादा ही परेशान रचना यदि उन सभी के बीच बिना किसी झिझक तसल्ली से आराम फरमाती, तो भला किसको और भला क्या दिक्कत होती? पर सुचित्रा के मन में भरी तल्खी इस वक़्त जिस तरह जाहिर हुई थी, उसके भी अपने कारण थे।


इतने सारे रिश्तेदारों के होते हुए भी छोटे से लेकर बड़े तक हर एक काम के लिए सुचित्रा को खुद ही भागना पड़ रहा था। कहने के लिए रचना के दादा-दादी, बुआ-फूफा, चाचा-चाची सब रचना की शादी करवाने के लिए आये थे, पर जब से वो सुबह आये थे, उसके बाद सुचित्रा ने सीधे अब शाम को और वो भी इस कमरे के अन्दर उनकी शक्ल देखी थी। पति दिवाकर ने भी ऐसी परिस्थिति में, ऐसे मोड़ पर लाकर यूं अचानक सुचित्रा का साथ छोड़ा था कि गुस्से के कड़वे घूंट खामोशी से निगलने के अलावा उसके पास कोई चारा ही न था। सुचित्रा ने जिस दिन अपनी पसंद का यह लड़का बेटी रचना से शादी के लिए तय किया था, दिवाकर की भौहें उसे लगातार तनी ही मिलती थीं। और फिर अब जब शादी के लिए सब कुछ तय होने के बाद शादी में मुश्किल से चार दिन का वक्त बचा था, दिवाकर को एक बहुत जरूरी बिजनेस मीटिंग के लिए देश से बाहर जाना पड़ा था। और फिर सुबह ही खबर आई थी कि बिजनेस मीटिंग के बाद लौटते हुए कुछ गोपनीय कारणों से उसे पुलिस ने हिरासत में ले लिया था। सुचित्रा एक तो शादी की तैयारियों और मेहमानों की आवभगत में अकेले परेशान हो रही थी, दूसरी तरफ दिवाकर की गिरफ्तारी की खबर ने उसे जैसे दिमागी तौर पर तोड़ कर रख दिया था। सुचित्रा के हिस्से में परेशानी की बड़ी बात यह थी कि जो कुछ उसके मन में चल रहा था, उसने वह किसी को भी बताया नहीं था और उसके चेहरे से उसकी परेशानियों को पढ़ पाना उस घर में दिवाकर के अलावा किसी को आता ना था। यही सब सम्मिलित कारण थे कि क्यों मन की टीस उस चिल्लाहट में भरकर बाहर आई थी।


सुचित्रा ने जिस तरह से आकर इन सारे परिवार वालों को कमरे से बाहर निकल जाने के लिए कहा था, उन सभी लोगों का इस बात पर बुरा मान जाना बिल्कुल लाजिमी था। 


पर सुचित्रा का बोला इतना भला-बुरा सुनने के बाद जैसा किया जाना चाहिए था, उसके ठीक उलट, उन सारे रिश्तेदारों में से किसी ने भी जैसे किसी भी बात का जरा भी बुरा ना मानना।

बल्कि उन सबने तो जैसे सुचित्रा की बोली हर बात को बिल्कुल अनसुना-अनदेखा करके, वहीं पर जमे बैठे रहे और अपनी बातों की आवाजों को उन्होंने पहले से भी तेज कर दिया। वो, ये सब जो कर रहे हुए थे, उनके पास इसकी अपनी वजह थी।


सुचित्रा के ससुराल में सब उसके व्यवहार, उसकी आदत बड़ी अच्छी तरह से जानते थे। वह जानते थे कि उनका दिवाकर उनसे दूर केवल इसी सुचित्रा की वजह से ही रहना पड़ रहा था। जब से दिवाकर की सुचित्रा से शादी हुई थी, तब से ही वह अपने घर वालों का दिवाकर न रहा था। और सारे घर वालों को पता था कि कुछ और नहीं, बस यह एक जिस्मानी रिश्ता ही था, जिसकी वजह से दिवाकर अब केवल नाम के लिए ही 'उनका' दिवाकर रह गया था। और जब अभी दिवाकर ही उस जगह मौजूद न था, जहाँ दिवाकर की बेटी की शादी हो रही थी, तो भला एक जिस्मानी रिश्ते से जुड़े रिश्ते को वो सारे परिवार वाले भला किस मोल से तोलते?



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