Sudhirkumarpannalal Pratibha

Abstract Inspirational

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Sudhirkumarpannalal Pratibha

Abstract Inspirational

जिंदगी की खूबसूरती

जिंदगी की खूबसूरती

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जिंदगी क्या हैं ?....मै कौन हूं ?..क्या मेरे जीने का कोई मकसद हैं!...किसने भेजा मुझे इस धरा पर ?क्या कर्तव्य का निर्वहन करना ही हमारा मकसद है ? ये जिल्लत भरी पहाड़ सी जिंदगी को आखिर मैं कितने दिन तक ढोता रहूंगा। जी करता है आत्महत्या कर लू। खाना पीना सोना और फिर आने वाले दिन में भी यही करना।....क्या यहीं जिंदगी है। या फिर कुछ और ? कौन बताए किससे पूछु ? मेरी ये जिज्ञासा कैसे शांत होगी ?....कुंदन के दिल में अनेकों प्रश्न आ– जा रहे थे, कुंदन उधेड़बुन में था।इस उधड़बुन पर कौन पूर्ण विराम लगाएं ?......

सुबह के नौ बजे थे, कुंदन को कॉलेज जाने का समय हो गया था।वो जल्दी –जल्दी नस्ता किया।और हाथ में रजिस्टर लेकर भागा। कॉलेज पहुंचते पहुंचते घंटी बज गई। भागते–भागते क्लास में पंहुचा और पीछे वाली सीट पर जाकर बैठ गया। कुंदन बुरी तरह से हाफ रहा था, दिल की धड़कन काफी तेज चल रही थीं।

 बगल में बैठी शोभा अपने बैग से पानी की बोतल निकाली और कुंदन कि तरफ बढ़ा दी.... कुंदन दू घोट पानी पिया। .... उसे काफी राहत महसूस हुआ, "धन्यवाद्। "

"इसमें धन्यवाद् की क्या बात है, यह तो परोपकार है।.... कल तुम भी किसी प्यासे को पानी पिलाना।.... इससे बड़ा पुण्य इस संसार में कुछ भी नहीं है... कमाओ खाओ... बीबी और बच्चों की जिम्मेदरियां संभालते हुए अपने जीवन का एक–एक दिन घटाते जाओ ,.... यही जिंदगी हैं और जिंदगी जीने का मकसद...."

अभी शोभा कुछ और बोलना चाहती थी, लेकिन तभी प्रोफेसर क्लास में इन कर गए।

कुंदन धीरे से शोभा से बोला,"क्या मै तुमसे क्लास के बाहर कुछ बाते कर सकता हूं ?"

 हां क्यों नहीं ?... मुझे खुशी होगी।"

कॉलेज के बगीचे में पेड़ के नीचे शोभा और कुंदन बैठे एक दूसरे को अपलक निहार रहे थे। पहले कौन बोले दोनों को ही संकोच हो रहा था .... कुछ देर बाद शोभा ही कुंदन से बोली,"ऐसे क्यों देख रहें हो ?"

 कुंदन नजर हटाते हुए बोला,"पता नही क्यों ?"

शोभा बोली,"मुझसे क्या बात करनी थी ?"

कुंदन संकोच में बोला,"मै निशब्द हो गया हूं....!"

शोभा मुस्कुराते हुए बोली,"मगर क्यों ?"

"बस.... ऐसे ही... मै तुमसे ढेर सारी बातें करना चाहता हूं.... लेकिन पता नहीं क्यों.... सब भूल गया हूं।"कुंदन बोला

 कुंदन की बात सुनकर शोभा के चेहरे पर हल्की मुस्कान आ गई बोली,"निशब्द होना, शरमाना ये सब तो लड़कियों की आदत है। ... चलो इंट्रोडक्शन मै ही शुरुवात करती हूं... मै शोभा कुमारी स्नातक पार्ट टू कि विद्यार्थी हूं। फिलास्पी मेरा आनर्स विषय है, इकोनॉमिक्स और सोसियलॉजी मेरा सब्सिडरी है। मै बनारस से हूं। मेरे पिताजी बिजनेस मैन है और मां नर्स है।....मै मां–बाप की इकलौती बेटी हूं।... बस इतना सा ही परिचय है मेरा .….. अब तुम बताओ।"

कुंदन भी बिना देर किए अपना इंट्रोडक्शन देने लगा,"हम दो भाई और दो बहन है...मै भाई और बहनों में सबसे छोटा हूं। सबकी शादी ही चुकी है और मै अभी कूंवारा हूं।...मेरे पिताजी बिजनेसमैन हैं और मां हाउसवाइफ है...मेरा भी तुम्हारी तरह फिलास्पी आनर्स विषय है। इतिहास और समाजशास्त्र सब्सिडरी है।...."

कुंदन का इंट्रोडक्शन सुनते ही शोभा बोली,"चलो अब दो घंटी में तुमसे मुलाकात होती रहेंगी।"

 "क्या इस बगीचे में तुमसे मेरी आखिरी मुलाकात है ?..... मुझे जो बात पूछनी थी वो तो मै पूछ ही नहीं पाया।"कुंदन बोला।

 " अगर पूरी बात आज ही कर ले तो,कल क्या करोगे... ?"यह कहते हुए शोभा खड़ी हो गई l कुंदन भी खड़ा हो गया। दोनों मुस्कुराते हुए एक दूसरे को देखने लगे।

शोभा झिझकते हुए बोली,"ऐसे क्यों देख रहें हो.. ?..लाज आ रही है।"

कुंदन बोला," पता नहीं मै तुम्हें ऐसे क्यों देख रहा हूं ?.... लेकिन आज का दिन... यह बगीचा और तुमसे मुलाकात.... जीवन भर नही भूलूंगा।"

 शोभा बोली,"और मै भी।"

दोनों अपने–अपने घर चले गए।

जानती हो शोभा मुझे मेरा जीवन जीने का मकसद तूने दे दिया....बेझिल सी जिंदगी में तूने रस भर दिया... तुममें ही मै अपना सबकुछ देखने लगा हूं। तुम मेरी जीवन हो... तुम्हारे बगैर जीने की मै कल्पना भी नहीं कर सकता हूं।... कोई दिन अगर मै ना देखू पागल की तरह हो जाता हूं।...ये क्या हो गया है..."

 "जो तुम्हे हो रहा है कुछ–कुछ वैसा ही हमें भी हो रहा है।...शायद इसे ही प्यार कहते हैं।... आई लव यू कुंदु।"

 " सेम टू यू शोभु।"कहते हुए कुंदन शोभा से लिपट गया।

 शोभा कुंदन का विरोध नहीं की।

"जानते हो कुंदु आज कौन सा दिन हैं"

 " कौन सा ?" कुंदन आश्चर्य से पूछा

शोभा अपने बैग से लाल गुलाब का फूल निकालकर देते हुए बोली,"कम से कम इस दिन को तो मत भूलो...आज १४ फरवरी है वेलेंटाइन डे।"

कुंदन अफसोस जताते हुए बोला,"सॉरी।"

समय बीतते गया,दोनों ही स्नातक फाइनल का परीक्षा दिए।...दोनों ही फर्स्ट डिविजन से पास किए...।

कॉलेज का आखिरी दिन था ,दोनों ही अपना मार्क्ससीट लेने कॉलेज आये। दोनों फर्स्ट क्लास से पास होने पर बेहद खुश थे...लेकिन दुखी भी उतना ही थे। दोनों अब रोज नहीं मिल पाएंगे।....

 कुंदन बोला,"शोभा क्या हम दोनों इतना खुलकर आगे मिल सकेंगे।....

 "न...ना... शायद नहीं... पहरा सिर्फ पहरा,... समाज का पहरा... परिवार का पहरा.... समाजिक बन्धन,...पारिवारिक बंधन... सिर्फ बंधन ही बंधन सोचकर ही डर लगता है।"शोभा उदास होकर बोली।

कुंदन बोला,"मै तुम्हारे बगैर एक पल भी नहीं रह सकता.... कुछ करो।"

"मुझ तो एक बात की चिंता है...तुम मुझे भूल तो नहीं ना जाओगे... ?...मै तो मर ही जाऊंगी,"शोभा चिंतित होकर बोली।

"शोभा अगर यही बात मै तुमसे पुछू तो,... क्या हम दोनों का इतना प्यार कमजोर है... क्या मूझपर तुमको भरोसा नहीं है ?... प्यार विश्वास का दूसरा नाम है।या यू कहे कि प्यार विश्वास के बुनियाद पर ही टिकी होती हैं।...तुम ऐसा सोच भी कैसे सकती हो.. ? दूरियां दूरियां बढ़ाती नहीं तड़पाती है।"कुंदन शोभा को अस्वस्थ किया।

शोभा कुंदन पर भरोसा जताते हुए बोली,"मुझे तुमपर पूरा भरोसा है।"

"तो फिर आगे कब मिलना है ये बताओ ?" कुंदन शोभा से पूछा।

"कल!"शोभा जवाब दी।

 कुंदन भी आतुरता दिखाते हुए बोला,"कल कभी आता नहीं...दिन बताओ।"

शोभा बोली," कल का मतलब कल, दिन रविवार दोपहर १२ बजे।"

कुंदन और शोभा में प्यार इस कदर बढ़ा की दोनों जीवन भर साथ निभाने के बारे में सोचने लगे। लेकिन ये बहुत ही कठिन था। मां–बाप को मनाना इतना आसान नहीं हैं।

 कुंदन सोच में पड़ गया।,"क्या मां–बाप शादी के लिए राजी होंगे ?.....अगर एक के मां–बाप मान भी जाए तो क्या हम दोनों के मां– बाप मानेगे।.. ऐसी संभावना कम ही है।"

शोभा बोली,"कोशिश करते हैं, कोशिश करने में क्या जाता है...कोशिश करने वालों की हार नहीं होती है।यह हमें पूर्ण विश्वास है।"

शोभा अपने मां–बाप को मनाने में कड़ी मेहनत की। अंततः शोभा अपने मां-बाप को मनाने में सफल हुई।

लेकिन कुंदन के मां-बाप रूढ़िवादी विचारधारा के थे।... वह शोभा से शादी करने से साफ इनकार कर दिए। कुंदन ने अपनी परेशानी शोभा को बताई। शोभा कुंदन का ढाढस बधाई।वो बोली,"हिम्मत नहीं हारते कुंदन , जब सारे विकल्प बंद हो जाते हैं , तो एक विकल्प खुला रहता है।"

 कुंदन बोला,"शोभा मै, तो निराशा हो चुका हूं।... मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि ,मैं क्या करूं.. ?

शोभा बोली,"घबराओ मत , कुंदन मैं तुम्हारे मां-बाप से बात करूंगी। मुझे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि मेरे भावनाओं का कदर करेंगे। "

 कुंदन शोभा को मना करते हुए बोला "न ,ना , तुम उन लोगों से बात मत करो, गुस्सा में कुछ बोल देंगे तो , तुम्हें बुरा लग जाएगा।"

 "मेरा प्यार इतना कमजोर थोड़े ही है।... अगर कुछ बोल भी देंगे तो ...क्या हो जाएगा मुझे बुरा नहीं लगेगा... बड़ों की बातों का बुरा नहीं मानना चाहिए।"शोभा कुंदन को समझाते हुए बोली।

 कुंदन बोला,"अभी तुम नहीं मिल सकती मां बीमार है... मां जब तक ठीक नहीं हो जाती ... इस मैटर पर बात करना अच्छा नहीं लगेगा।"

 " ज्यादा बीमार है ?"

"नहीं! बस सर्दी खासी और बुखार हो गया है।"

शोभा बोली,"यह एक अच्छा मौका है... मां की सेवा भी हो जाएंगा ,और उनसे बात भी हो जाएगी।.. फिर बाबूजी को भी समझा लूगी ... मुझे खुद पर भरोसा है।"

 शोभा अपनी वाकपटुता और सेवा से कुंदन की मां– बाप का दिल जीत ली। कुंदन के मां-बाप शादी के लिए राजी हो गए। कुंदन को खुशी का ठिकाना नहीं था।

 दोनों की शादी धूम–धाम से हुई।

दोनों अपने शादी का 25 वा सालगिरह मना रहे थे।.... दोनों ही काफी खुश थे। दोनों का बहुत ही बड़ा परिवार हो गया था।.... बेटे– बहू,पोता– पोती,बेटी–दमाद, नाती –नातिन...धन–दौलत।सब कुछ तो था। शोभा और कुंदन के पास।....

 केक सामने रखा हुआ था। रंगीन लाइटो से पूरा बरामदा जगमगा रहा था।सदाबहार गाना बज रहा था। बरामदे का माहौल खुशनुमा था। कुंदन शोभा के रिश्तेदारो और सगे संबंधियों से, पूरा बरामदा खचाखच भरा हुआ था। 

अगले ही पल कुंदन और शोभा बरामदे में प्रवेश किए। तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा बरामदा गूंज उठा। दोनों ने मिलकर केक काटे। दोनों एक दूसरे को केक खिलाएं। फिर सब अपनी–अपनी जगह पर बैठ गए।

 कुंदन बोला," मुझे याद है.. जब मेरी मुलाकात शोभा से पहली बार हुई थी। उसके पहले मेरा जीवन मुझको ही बोझ लग रहा था। मैं खुद से प्रश्न किया करता था , इस जीवन का मतलब क्या है ? मेरे जीने का उद्देश्य क्या है ?.. जिंदगी का एक-एक पल काटना दूभर सा हो रहा था।सच पूछा जाए तो, अनेकों बार आत्महत्या के विचार आए थे , हमारे जेहन में। खाना पीना सोना ,यही जिंदगी थी हमारी। यह तो जानवरों की जिंदगी में भी होता है । फिर हम जानवरों से अलग कैसे हैं ?...जीवन कई मामलों में जानवरों के जीवन से अलग होता है।जीवन जीना ही जीवन नहीं है मनुष्य का जीवन में फर्ज, कर्तव्य, समर्पण, पारदर्शिता, इमानदारी, सद्भावना ,मानवता, शालीनता, सिद्धांत धर्म के प्रति सजगता, अपनी संस्कृति और संस्कार ,आदि– आदि।.... मनुष्य के जीवन के सार्थक तत्व है। मनुष्य की मनुष्यता इन्हीं तत्वो में निहित होता है।इसके बगैर मनुष्य मनुष्य कहां ? वह तो जानवर है।अगर इसका निर्वहन ईमानदारी पूर्वक करे तो,आदमी का जीवन सफल हो जाएगा। सच कह रहा हूं, मनुष्य का जीवन सफल हो जाएगा बेझिल लगने वाली जिंदगी में मस्ती भर जाएगी। जीने का उद्देश्य मिल जाएगा जीने की ललक बढ़ेगी पहाड़ सी जिंदगी। दो दिन की जिंदगी लगने लगेगी।

आप सब लोग को यह लग रहा होगा कि , ये सारी बातें आज मै क्यों आप लोगों को बता रहा हूं ? तो मै बता दू आज मेरी उम्र साठ वर्ष से ऊपर हो गई हैं। और मै हर पल जीता हूं। जिंदादिल इंसान हूं मैं। और सैकड़ों वर्ष जीने की तमन्ना है।मै आज आप सब लोगों को एक मंत्र देना चाहता हूं.. वो ये की जब सारे विकल्प खत्म हो जाएंगे , जब आप सब को लगने लगेगा कि अब कोई विकल्प नहीं बचा हुआ है , तो एक विकल्प जरूर मौजूद रहता है ,और वही एक विकल्प आपको नया रास्ता बनाती है , जो मंजिल तक पहुंचाती है। विकल्पहीन जिंदगी में सकारत्मकता के साथ विकल्प ढूंढ कर जिंदगी को आगे बढ़ाना जिंदगी जीने का फलसफा है। जैसे ही हम आगे बढ़ते जाएगे, रास्ता मिलते जाएगा, जीवन आनंद से भर जाएगा। बाकी आप सब लोग समझदार हैं।"

 अब शोभा की बारी थी,वो बोली,"जिंदगी मस्ती है, जिंदगी संघर्ष है। जिंदगी प्रेम है। जिंदगी दूखो का नाम है, जिंदगी नफरत भी तो है।.... जिंदगी के अनेक सारे अर्थ है।हम जिंदगी को किस अर्थ में लेते हैं , यह मेरे ऊपर निर्भर करता है।बस आपलोग अपनी जिंदगी को बिंदास जिए। ये छोटी सी जिंदगी न मिलेगी दोबारा। इसलिए आपसभी को शर्तहिन जिंदगी जीनी चाहिए।.... अपने परिवार में भरपूर समय देनी चाहिए। स्वार्थीहिन रिश्ते निभाने में तत्परता दिखानी चाहिए।फिर आपका यह सारा परिवार स्वर्ग से सुंदर हो जाएगा।

 शोभा चुप हो गई। पूरा बरामदा तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा । कुंदन के बगल में शोभा खड़ी थी।कुंदन शोभा को गले लगाना चाहता था। लेकिन सारे बच्चे उनके सामने ही थे। वह संभल गया।

 दोनों एक दूसरे को देख कर मुस्कुराने लगे।


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