जिंदगी खेल नहीं

जिंदगी खेल नहीं

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लगता था आज यह बहस खत्म ही नहीं होगी। चारों लड़के करीब डेढ़ घंटे से एक दूसरे की बातें सुनने में कम, तर्क- कुतर्क से काटने में अधिक लगे थे।

"जिंदगी बनने और बिगड़ने में वक्त नही लगता, तुम्हें यकीन नहीं ? 

 एक दफा किस्मत को आजमाकर देख लो।"अपने चारों तरफ बिखरे बेतरतीब सामान पर एक उचटती सी नजर डालकर वेणु ने कहा।

"किस्मत और वक्त का ही खेल है जिंदगी, जो इसमे लिखा होता है, उसी हिसाब से जिंदगी चलती है। और वक्त का भी बड़ा महत्व होता है वक्त अच्छा हो तो राजा रंक बन जाता है ,और बुरा हो तो हमारे जैसे हालात।"भुवन ने उदास नजर चारों ओर घुमाई।

" दोस्तों,

 जिंदगी एक अनमोल तोहफा है। और पुरुषार्थ किस्मत है, खज़ाने की चाबी है। सिर्फ किस्मत ही सब कुछ है, ऐसा नही समझना चाहिए।"सुमित नोटपैड संभालता हुआ बोला।

" देखो भाई, मेरे विचार से हर चीज़ का अपना महत्व है, ये एक साथ काम करती हैं- किस्मत भी और पुरुषार्थ भी।

अगर कोई पुरुषार्थ न करे, तो अच्छी किस्मत भी कैसे कोई चमत्कार कर सकती है? याद है, कभी बचपन में पड़ा हुआ श्लोक," सिंह को भी प्रयास करना पड़ता है ,शिकार खुद उसके मुंह में नहीं प्रवेश कर जाता।"

अरुण ब्रेड स्लाइस मुंह में रखते हुए कहा।

"नहीं, मैं तो फिर भी यही कहूंगा कि किस्मत में जो लिखा होता है, ज़िंदगी उसी हिसाब से चलती है।" भुवन हार मानने को तैयार नहीं।

"अच्छा यह बताओ, ज़िंदगी को तुम दोष कब देते हो जब चीज़ें तुम्हारे मन मुताबिक़ नहीं होतीं, तब ही न? तुम चाहते हो यह एक तरफा खेल हो जिसमें जीत हमेशा तुम्हारी ही हो! अरुण ने अपनी बात पर ज़ोर देते हुए कहा।

"क्या कभी फलों से लदा हुआ वृक्ष अपने ही भार से टूटते देखा है ? हां, झुक जरूर जाता है और झुकना तो बड़प्पन है।"सुमित भी अरुण की बातों से सहमत होता दिखाई दिया।

"यह ज़िंदगी न जाने मेरे साथ कितने खेल खेलेगी?"वेणु अभी भी अपने पहले मूड से बाहर निकलना नहीं चाहता।

"अरे, तो तुम अपना रास्ता क्यों बदल रहे हो ज़िंदगी अगर खेल है तो तुम भी खेलो ज़िंदगी के साथ। कभी तो जीतोगे, कभी तो बाजी तुम्हारे हाथ आएगी। फिर देखना इस शह 

और मात में तुम्हें जीने का मज़ा आने लगेगा।"सुमित बाहर निकलते हुए बोला।

 "जिंदगी एक सफर है सुहाना यहां कल क्या हो किसने जाना? ...., यार, संभालो और समझाओ इसे।"भुवन भी खीज चुका था।

" देखो दोस्त,जिंदगी क्या है, यह मैं भी नहीं जानता। इतना जानता हूं, यह कभी हंसाती है, कभी रुलाती है कभी उम्मीद जगाती है, तो कभी निराशा के घोर अंधकार में धकेल देती है। कभी हाथ थाम कर अंधेरे से बाहर निकाल लेती है, तो कभी चोटी पर चढ़े हुए इंसान को नीचे धक्का देकर गिरा देती है। अब यह तुम पर है कि तुम यह सोच कर बची खुची जिंदगी को और दुखी कर लो, बिगाड़ लो।

 मगर सच तो यह है कि जिंदगी एक संघर्ष है, और जिसने इस संघर्ष को एक चुनौती मानकर सामना किया है, उसके साथ जिंदगी ने भी मुस्कुराकर कदम मिलाया है। 

और फिर अगर तुमने गम नहीं झेलें तो खुशी का मजा कैसे लोगे? अगर तुम रोए नहीं तो हंसना क्या है, यह तुम कैसे जानोगे? अगर तुम्हारा पेट भरा है तो भूख क्या है, यह तुम कैसे जान पाओगे?अगर तुम हमेशा जीतते हो तो हार क्या है यह कैसे जानोगे?"भुवन लगभग हांफने लग गया था।

"प्लीज, जो मैं कर रहा हूँ , मुझे करने दो। मैं ऐसा नहीं हूं कि अभी रो रहा था अभी हंसने लग जाऊं।कल तक जिससे प्यार करता था आज उससे नफरत करने लग जाऊं। मुझे उसको भुलाना इतना आसान नहीं है।

बस गिने चुने हम चार ही लोग हैं। जो एक दूसरे को समझते हैं। यही मेरी दुनिया है।"रेणु बोला।

"तुम्हें पता भी है, तुम कब से यही बातें दोहरा रहे हो? और वह क्या है ,जो तुम से संभाला नहीं जाता?

छोटी -छोटी बातों को भूल जाओ, दो चार दिन में सब शांत हो जाएगा, और हां, उससे कल के अपने बर्ताव के लिए माफी मांग लेना।"सुमित बोला।

"दोस्त, जिंदगी चार दिनों की है ,और कोई कुछ भी कहे ,मैं तो कहूंगा, जिंदगी खेल है। इसे जिंदादिली से खेलो। जो किरदार तुम्हें मिला है उसे भरपूर ईमानदारी से जियो।" भुवन की इस बात पर लगा कि सबकी सहमति बन गई है।


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