Sangeeta Aggarwal

Drama Tragedy

4  

Sangeeta Aggarwal

Drama Tragedy

जिम्मेदारी

जिम्मेदारी

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" मम्मी आज मेरी एक प्रेजेंटेशन है मेरी सफ़ेद कमीज कहाँ है ?" रितेश अपने कमरे से चिल्लाया। 

" बेटा वो तो प्रेस को दी ही नहीं बहू ने !" शांति जी बोली।

" ये नीति भी ना ..अब मैं क्या पहनूँ , नीति ...नीति !" रितेश चिल्लाया।

" हाँ क्या हुआ ?" नीति रसोई से बाहर आ बोली।

" तुमने मेरी सफ़ेद कमीज प्रेस को क्यो नहीं दी ?" रितेश बोला।

" मेरे सामने धोबी आया ही नहीं तो कैसे देती रितेश जैसे तुम ऑफिस जाते हो मैं भी जाती हूँ हर वक़्त घर मे तो रहती नहीं फिर मुझे आये अभी छह महीने हुए है उससे पहले क्या कपड़े प्रेस को नहीं जाते थे !" नीति को रितेश का चिल्लाना पसंद नहीं आया तो वो थोड़े गुस्से मे बोली।

" हाँ तो तब तुम नहीं थी मैने बहुत जिम्मेदारी निभा ली अब तुम आ गई तो अब तुम्हारी जिम्मेदारी है !"शांति जी शांति से बोल अशांति फैला चलती बनी।

खैर उस वक़्त रितेश बडबड करता हुआ दूसरी कमीज पहन गया और नीति भी खाना बना ऑफिस चली गई। आज उसकी भी एक जरूरी मीटिंग थी। ऐसा पहली बार नहीं हुआ था कि किसी काम के ना होने का ठीकरा उसके सिर फोड़ा गया हो जबकि सारा दिन शांति जी घर मे रहती है पर मजाल है कोई काम कर दे।

" मम्मीजी आज मुझे थोड़ा लेट हो जायेगा मीटिंग के कारण आप जरा दाल चढ़ा दीजियेगा !" नीति ने शाम मे ऑफिस से फोन करके सास से कहा।

मैं तो बाहर सत्संग मे आई हुई हूँ मुझे भी देर हो जाएगी आने मे !" शांति जी ने जवाब दिया। 

नीति ने फोन रख दिया वो सोचने लगी शादी के बाद सारे जिम्मेदारियाँ बहू पर क्यो आ जाती फिर चाहे वो नौकरीपेशा हो या घरेलू । क्यो नहीं ससुराल मे सास् उसे समझती आखिर वो भी तो एक औरत है इस स्तिथि से वो खुद भी गुजरी होती है। उसने घड़ी मे टाइम देखा तो फटाफट मीटिंग के लिए चली गई । मीटिंग खत्म होते होते सात बज गये । उसने फटाफट स्कूटी उठाई ओर घर की तरफ भागी। 

घर पहुँच के उसने देखा सासुमा आराम् से सोफे पर बैठी टीवी देख रही है। वो कपड़े बदल रसोई मे भागी । बाकी सारे काम को तो उसने सहायिका लगा रखी है पर खाना शांति जी को बहु के हाथ का चाहिए । रसोई मे आकर उसने देखा दाल नहीं चढ़ाई गई थी घड़ी मे आठ बज रहे थे रितेश कभी भी आ सकता था उसे आते ही खाना चाहिए होता है। 

दाल बनाने का विचार त्याग कर उसने आलू मटर की सब्जी बना ली क्योकि दाल के साथ भी एक सब्जी बनानी पड़ती इतना समय था नहीं। 

" ये क्या बस एक सब्जी दाल नहीं बनाई आज ?" रितेश खाने की मेज पर बोला। 

" महारानी जी आई ही देर से है अब बहू के राज मे यही होगा रुखा सुखा मिलेगा जबकि आज तक यहां ऐसा नहीं हुआ !" नीति के कुछ बोलने से पहले शांति जी तपाक से बोली। 

" यार नीति क्या करती हो तुम वैसे तो हर काम को सहायक है दो काम खुद करती हो वो भी ठीक से नहीं होते तुमसे।" रितेश बोला

" मम्मीजी मैं ऑफिस गई थी तफरी करने नहीं और मैने आपको ऑफिस से बोला था दाल चढ़ा देना आप पर आपने तो भिगोना तक जरूरी नहीं समझा !" नीति गुस्से को पीती हुई बोली।

" हाँ तो मैं भी तो सत्संग मे थी आकर मैं थक गई थी वैसे भी इतने साल ग्रहस्थी चलाई हमने सारी जिम्मेदारी उठाई अब तुम आ गई अब भी हमें उठाये क्या अब तो ये सब देखने की जिम्मेदारी तुम्हारी है !" शांति जी हाथ नचा कर बोली।

" मम्मी जी बहू के ऊपर उसकी शादी के बाद सिर्फ काम कि जिम्मेदारी नहीं डाली जाती बल्कि गलतियों की जिम्मेदारी भी डाली जाती है भले बहू नौकरी करे पर घर के काम भी करे कुछ भूल चुक या समय की कमी से कोई कमी रह जाये तो उस गलती की जिम्मेदारी केवल बहू की होती है भले वो घर मे नहीं होती पर धोबी को कपड़े वही देगी , सब्जिया वही लाएगी , बिजली के बिल गैस सबका ध्यान वही रखेगी क्यो क्योकि वो बहू है अगर इनमे से कोई काम समय पर नहीं हुआ तो गलती सारी बहू की !" नीति आज अपने मन की बात बोल पड़ी।

" नीति ये कैसे बात कर रही हो तुम माँ से !" रितेश गुस्से मे बोला।

" सही बोल रही हूँ रितेश छह महीने पहले तक जो काम मम्मीजी आराम से कर लेती थी अब वो मेरी जिम्मेदारी है क्यो क्या मैं तुम्हारी तरह ऑफिस नहीं जाती अगर ये सब काम करना मेरी जिम्मेदारी है तो मैं ऑफिस छोड़ देती हूँ क्योकि बिना बात गलतियों का ठीकरा मैं अपने सर नहीं ले सकती !" नीति ने अपना फैसला सुना दिया। 

" अरे नीति नौकरी छोड़ने की बात कहाँ से आ गई चलो बिजली , गैस और सब्जी की जिम्मेदारी मैं लेता हूँ और कपड़े धोबी को मम्मी दे दिया करेंगी ...क्यो मम्मी ?" रितेश नीति के नौकरी छोड़ने की बात पर बोला। 

" हुँह जोरू का गुलाम !" ये बोल शांति जी शांति से खाना खाने लगी । नीति जो खुद भी अपनी मेहनत के बल पर पाई नौकरी नहीं छोड़ना चाहती थी उसने बात यही खत्म करना उचित समझा क्योकि आज उसने अपनी बात कह दी थी अब हर गलती का ठीकरा उसके सर नहीं फूटेगा। 

दोस्तों क्यो बहू के आते ही उससे इतनी अपेक्षाएँ हो जाती है क्या वो इंसान नहीं , क्या उसके आने से पहले किसी की जिम्मेदारी नहीं थी किसी से कोई गलती नहीं होती थी। फिर क्यो उसके आने के बाद सारी जिम्मेदारियों के साथ साथ सब गलतियां भी उसी के हिस्से आती है। क्यों नहीं उसे बिना बोले सम्मान मिलता है।


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