अनोखा उपहार
अनोखा उपहार
शशांक दीवाली आने वाली है, तुम्हारी नौकरी भी नहीं है... इस बार सब कैसे करना है " श्रुति ने अपने पति से पूछा।
" श्रुति मैं खुद नहीं समझ पा रहा हर साल दोस्तों को उपहार देते थे इस बार अकेले तुम्हारी तनख़्वाह से घर चल रहा वही बहुत... इस कोरोना ने कितना मजबूर कर दिया... ना ये आता ना मेरी नौकरी जाती " शशांक ने रुआँसा होते हुए कहा।
" शशांक दीवाली तो खुशियों का त्योहार है तो हम लोग इतना परेशान क्यों है.... " श्रुति ने शशांक को रुआँसा होते देख कहा।
" पर श्रुति जब सब उपहार लेकर हमारे घर आएँगे तो उन्हें खाली हाथ भी नहीं भेज सकते जबकि तुम्हें तो पता हर साल हम ही सबके घर सबसे पहले जाते रहे हैं ! "
" मैं तुम्हारी बेबसी समझ रही हूँ पतिदेव पर हर मुश्किल का हल होता है " श्रुति ने रहस्यात्मक मुस्कान के साथ कहा।
" श्रुति तुम्हारा मतलब... ओह्ह मतलब तुम्हारे पास पहले से कोई योजना है " शशांक ने फ़ीकी मुस्कान साथ कहा।
" जी पति देव असल में मैंने सोचा दीवाली खुशियों का त्योहार फिर हम कहीं से पैसों का इंतज़ाम कर उपहार दे भी दें वो हमें ख़ुशी तो देंगे नहीं बल्कि बोझ ही डालेंगे... तो क्यों ना इस बार हम अपने सभी जानने वालो को एक एक पौधा उपहार में दें..... बाकी उपहार लोग कुछ दिन में भूल जायेंगे पर ये उपहार वक़्त के साथ बड़ा होगा और लोग हमें याद रखेंगे ये एक अनोखा उपहार होगा ! " श्रुति ने खुश होते हुए कहा।
" वाह! श्रुति तुम्हारा दिमाग कितना चलता है मेरा एक दोस्त है उसकी नर्सरी है पौधों की मैं कल ही उससे बात करता हूँ...! शशांक की आँखों में अब चमक थी।
"सच में श्रुति तुम सही मायने में एक अर्धांगिनी हो जो मेरी हर मुसीबत हल कर देती... मेरी दिल वाली बीवी! "
" बस... बस जी इतनी तारीफ़ नहीं वैसे भी चिंता मत करो तुम्हारी नौकरी लगते ही तुम्हारा मोटा खर्च कराने वाली हूँ मैं " श्रुति ने अदा के साथ कहा।
"जो हुकुम मेरे आका " शशांक ने झुकते हुए कहा।
दोनों खिलखिला के हँस दिये...
दोस्तों कैसी लगी ये प्यारी सी जोड़ी
सच में दीवाली ख़ुशी का त्योहार है तो यूँ पैसा उधार ले झूठी शान दिखाना और बाद में पछताना कोई समझदारी नहीं....
धन्यवाद
आपकी दोस्त