Sangeeta Aggarwal

Tragedy

4  

Sangeeta Aggarwal

Tragedy

वो दस मिनट

वो दस मिनट

5 mins
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नहीं इसलिए मुझे घर के पीछे का हिस्सा दे दिया गया है जहाँ एक नौकर मुझे खाना पीना दे जाता है मैं अपने बच्चो से पोते पोती से बात करने को तरस जाता हूँ पर इस डर से अपने कमरे से बाहर नहीं आता कि कहीं घर का मालिक होने के बावजूद मै अपने बच्चो से ही जलील ना हो जाऊं। " विशंभर जी रोते हुए बोले। 


" विशंभर नाथ जी आप अपने बेटे को सजा दिलाना चाहते हैं ? पर माफ़ कीजियेगा कानून मे इसकी कोई सजा नहीं है क्योकि ना तो आपके बेटे ने आपको घर से निकाला ना ही आपको पड़ताड़ित किया हाँ आप उससे अपना घर फैक्ट्री वापिस ले सकते है ।" जज साहब बोले।


" ना ना बेटा मैं अपने बेटे को सजा दिलाना भी नहीं चाहता कैसे दिला सकता हूँ मैं उस बेटे को सजा जिसका चेहरा देख मैने जीवन के इतने साल काटे हैं रही घर फैक्ट्री की बात वो मुझ बूढ़े के किस काम की !" विशंभर जी बोले।


" तो आप क्या चाहते है ? आपने ये मुकदमा क्यों किया ?" जज असमंजस मे बोला।


" बेटा मैने अब तक जो भी अपने बेटे के लिए किया उसकी कीमत चाहता हूँ मैं !" विशंभर जी के इतना बोलते ही सारा कोर्ट सकते मे आ गया । एक पिता अपने बेटे से कीमत मांग रहा है सभी विशंभर जी की आलोचना करने लगे । 


" ओह्ह तो ये बात है ..बोलिये क्या कीमत है आपकी ? ये बात आप घर पर बोल देते तो मेरा इतना समय नहीं खराब होता !" तनुज बोला। 


" बेटा तू तो इतना पढ़ा लिखा है मेरा सारा कारोबार भी तू ही संभाल रहा बल्कि उसे ऊंचाइयों पर भी तू ही लेकर गया है हिसाब किताब का भी तू पक्का है तू बता एक पिता के त्याग की क्या कीमत होती है ?" विशंभर जी बोले। 


" विशंभर जी आप यूँ पहेलियाँ मत बुझाइये साफ साफ बोलिये आप क्या कीमत चाहते है ?" जज साहब थोड़ा झुंझलाते हुए बोले।


" जज साहब वो घर मेरे नाम है कारोबार मैने खुद से बेटे के नाम किया हुआ है । फिर भी क्या आप लोगो को लगता है मैं रूपए पैसे के लिए अपने बेटे पर मुकदमा करूंगा । मुझे ये भौतिक चीजे नहीं चाहिए जज साहब !" विशंभर जी बोले। 


" तो क्या चाहिए आपको ?" 


" जज साहब मैं चाहता हूँ मेरा बेटा ऑफिस से आकर दस मिनट के लिए ही सही मुझे मेरे कमरे से बाहर लेकर चले भले घर के पार्क मे ही सही ये दस मिनट मेरे साथ बिताये । जैसे बचपन मे मैं इसे अपने कंधे पर बैठा घूमाता था ये मुझे मेरा हाथ पकड़ कर घुमाये !" विशंभर जी बोले।


" ये कीमत चाहिए आपको !! पर इससे क्या हांसिल होगा आपको ?" जज हैरानी से बोला । हैरान तो वहाँ मौजूद सभी लोग थे। 


" अरे बेटा तुम लोग क्या जानो एक पिता को इससे क्या हांसिल होगा । उस दस मिनट के इंतज़ार मे ये बूढा बाप अपना पूरा दिन काट देगा । बहू की चुभती हुई बाते हंस कर टाल देगा । वो दस मिनट दिन के 24 घंटो पर भारी होंगे क्योकि उन दस मिनटों मे एक पिता को उसकी जिंदगी की सबसे बड़ी खुशी अपने बच्चे का साथ मिलेगा , उस दस मिनट मे एक पिता को ये एहसास मिलेगा कि उसका भी कोई है । उस दस मिनट मे एक पिता अपने बेटे के सिर पर हाथ रख उसे आशीर्वाद दे सकेगा । उस दस मिनट मे एक पिता अपने बेटे के सिर की सारी बलाएं अपने सिर ले सकेगा अपने पोते पोती को पास से देख सकेगा। उस दस मिनट से मेरे बेटे का भविष्य सुधर जायेगा क्योकि इसका बेटा अभी छोटा है जब वो अपने पिता को उसके पिता के लिए समय निकालते देखेगा तो वो भी तो इसके बुढ़ापे मे इसके लिए समय निकलेगा। और जज साहब समय का कुछ नहीं पता कब मेरे प्राण पखेरु उड़ जाये तो उस दस मिनटो मे मेरे बेटे को पता तो लग जायेगा कि मैं अब नहीं रहा । और जज साहब ...वो दस मिनट जो मेरा बेटा मुझे देगा उसमे उसका सारा कर्जा चुक जायेगा !" विशंभर जी बोले।


विशंभर जी ये इतना बोलते ही कोर्ट मे एक पल को तो सन्नाटा छा गया । और अगले ही पल सिसकियों की आवाजे आने लगी तभी सबकी निगाह उस तरफ गई जहाँ से जोर से आवाज़ आ रही थी। अपने कटघरे मे जमीन पर बैठा तनुज जोर जोर से सिसकियां ले रहा था। 

 

विशंभर जी अपने कटघरे से निकल बेटे के पास पहुंचे और उसका सिर सहला बोले " क्या हुआ बेटा क्या ज्यादा कीमत मांग ली मैने ?" 


" नहीं पापा आपने कोई कीमत नहीं मांगी आपने तो एक बेटे को आइना दिखाया है । माँ बाप बेटे का भविष्य बनाते है पर आपने तो मेरा भविष्य बचाया है ।सारी उम्र मेरे बारे मे सोचा आपने और अब भी मेरे बुढ़ापे के बारे मे सोच रहे है मुझसे दस मिनट मांग मेरा सारा बुढ़ापा सुधार रहे है । मुझे माफ़ कर दो पापा अब आपका बेटा आपके साथ केवक दस मिनट ही नहीं बल्कि जितना हो सकेगा उतना समय बिताएगा । आप अपने पोते पोती को सिर्फ देख नहीं पाओगे उनके साथ खेलोगे क्योकि अब आप घर के मुख्य कमरे मे रहोगे पीछे के साधारण कमरे मे नहीं !" तनुज पिता से लिपट रोते हुए बोला। विशंभर जी बेटे को ऐसे प्यार करने लगे जैसे बचपन मे करते थे। 


अब इस मुक़दमे और विशंभर जी की शिकायतों का कोई औचित्य नहीं रह गया था क्योकि दोनो पक्षो मे समझौता हो गया था । सभी लोग अपनी आँखे पोंछते हुए उठ खड़े हुए क्योकि सबको जल्दी थी घर पहुँचने की क्योकि ज्यादातर लोग कहीं ना कहीं तनुज की तरह अपने बूढ़े माँ बाप को उपेक्षित कर रहे थे। जज साहब ने केस बंद कर फटाफट अपनी कार की तरफ दौड़ लगाई क्योकि उनके घर मे भी बूढी माँ बेटे के दस मिनट की बाट जोह रही थी। 


दोस्तों हम लोग जिंदगी की जद्दोजहद मे इतने उलझ जाते है कि अपनों के लिए समय नहीं निकाल पाते इसमे सबसे ज्यादा उपेक्षित हमारे माँ बाप होते है । तो आज से बल्कि अभी से आप भी अपने माता पिता के लिए दस मिनट निकालिये इससे पहले के देर हो जाए क्योकि ये दस मिनट ना केवल आपके जन्मदाताओं को खुशी दे सकते है बल्कि आपका बुढ़ापा भी संवार सकते है। अगर आपके माता पिता आपके साथ है तो आज बन जाइये बच्चा और जी लीजिये अपना बचपन फिर से और अगर साथ नहीं तो एक फोन करके उन्हे एहसास दिलाइये वो आपके लिए क्या है । यक़ीनन इससे आपको भी खुशी मिलेगी।



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