Sangeeta Aggarwal

Drama Inspirational Others

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Sangeeta Aggarwal

Drama Inspirational Others

माँ का आशीर्वाद

माँ का आशीर्वाद

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निर्मला जी हाथ मे दही चीनी की कटोरी पकड़े अभी भी दरवाजे पर टकटकी लगाए देख रही थी जिससे अभी अभी उनका बेटा कार्तिक बाहर निकला था। निर्मला जी की आँख नम थी पता नही बेटे के तिरस्कार से या ऑफिस का पहला दिन और बिना दही चीनी खाये चला गया उस दुख से । बहुत देर खड़े रहने के बाद निर्मला जी ने दही की कटोरी मेज पर रख दी और खुद वही कुर्सी पर बैठ गई मानो अभी भी बेटे के लौटने का इंतज़ार कर रही हो। बैठे बैठे अचानक वो अतीत मे चली गई जब पति माधव की मृत्यु के बाद छह साल के बेटे को सीने से लगाए वो जार जार रो रही थी।


" माँ मत रो मैं हूँ ना तेरे पास !" कार्तिक ने उसकी गोद मे बैठे बैठे उसके आंसू पोंछते हुए कहा।

अचानक निर्मला जी जैसे नींद से जागी हो " हां तू है ना !"


फिर उसे जोर से सीने से भींच लिया पर इस बार उन्होंने अपने आँसू पीने की कोशिश की क्योकि उनका बेटा उनका कार्तिक जो उनके पास था जिसके लिए उन्हे खुद को संभालना था।


" माँ भूख लगी है !" थोड़ी देर बाद कार्तिक बोला।


" हां ..रुक अभी लाती हूँ कुछ खाने को !" निर्मला जी तुरंत खड़ी हो गई और बेटे को रसोई में से बिस्किट लाकर खिलाने लगी। दुख के साथ साथ अब उनके चेहरे पर एक संतोष था अपने भूखे बच्चे का पेट भरने का संतोष।


उन्हें बेटे में मग्न देख आस पास खुसर पुसर शुरु हो गई।


" कैसी औरत है जिसे पति के मरने का गम नहीं है बेटे में लगी हुई है बस अरे कौन सी आफत आ जाती जो वो थोड़ी देर भूखा रह लेता सामने पति की लाश पड़ी है और ये बच्चे को खिला रही है !" लोग ऐसी अनेकों बाते कर रहे थे पर निर्मला जी को बेटे की चिंता थी पति तो अब चला गया वो वापिस नही आना जो है अब उसे देखना है।


खैर सबसे बेखबर निर्मला जी ने बेटे को तृप्त किया फिर पति को अंतिम विदाई दी। अब उनके लिए कार्तिक ही उनकी दुनिया था उनके मायके वालों ने उन्हे अपने साथ ले जाने को कहा पर निर्मला जी नही चाहती थी उनके बेटे के साथ उसके ननिहाल मे परायों सा व्यवहार हो इसलिए उन्होंने अपने बल बूते अपने बेटे की परवरिश की ठानी। एक स्कूल मे आया की नौकरी पकड़ ली जिससे बेटे को भी पूरा वक़्त दे पाये।


" माँ जल्दी से मुझे दही चीनी खिला दो मेरी परीक्षा कस समय हो रहा है !" हर परीक्षा से पहले कार्तिक माँ से कहता निर्मला जी बड़े प्यार और विश्वास के साथ उसे दही चीनी खिलाती मानो उन्हें पूरा विश्वास हो कि ये दही चीनी उनके बेटे को हर सफलता देगी।


" माँ देखो मैं दसवीं में सारे जिले में प्रथम आया हूँ !" बेटे ने आकर माँ को गले लगाकर कहा।


" जुग जुग जिये मेरा बेटा ऐसे ही तरक्की करता रहे बस !" निर्मला जी उसकी बलैया लेते हुए कहती।


" बस माँ मैं पढ़ लिखकर नौकरी पर लग जाऊं फिर तुम्हे ये काम नही करने दूंगा !" बेटा जब जब ऐसा कहता निर्मला जी अपने बेटे पर बलिहारी जाती।


समय बीतता रहा और कार्तिक ने एम.बी.ए. करके एक अच्छी कम्पनी मे नौकरी पकड़ ली और आज उसी का पहला दिन था निर्मला जी दही चीनी के साथ उसको आशीर्वाद दे रही थी पर आज जाने क्यो कार्तिक को उस दही चीनी की जरूरत महसूस नही हुई । बल्कि निर्मला जी ने जब उसे खुद से खिलाना चाहा तो उसने झुंझला कर कहा " माँ दही चीनी से सफलता नही मिलती वो अपनी मेहनत से मिलती है ।" कार्तिक मानो घमंड से बोला।


" बेटा बचपन से तो तू यही खाकर किसी अच्छे काम को जाता आया है फिर आज क्या हुआ !" निर्मला जी ने कहा।


" माँ तब मैं बच्चा था अब एक कम्पनी मे लाखो का पैकेज पा रहा हूँ वो भी अपनी मेहनत से !" ये बोल कार्तिक निकल गया और निर्मला जी आँसू भरी आँख से उसे तकती रही।


कार्तिक जैसे ही बाहर निकला उसने देखा उसके घर के सामने झोपड़ पट्टी मे रहने वाली रामिया रो रही है उसका बेटा पास बैठा उसे चुप करा रहा है।


" माँ रो मत दही चीनी के पैसे नही तो तू मुझे गुड़ खिलाकर परीक्षा देने भेज दे !" रामिया का पंद्रह - सौलाह साल का बेटा बोला।


" पर बेटा दही चीनी शुभ होता है किन्तु तेरे बापू की बीमारी ने इतना पैसा भी नही छोड़ा की मैं वो खरीद सकूं !" रामिया बोली।


" माँ शुभ तो माँ का आशीर्वाद होता है जो वो दही चीनी खिलाते हुए अपने बच्चो को देती है तू मुझे गुड़ खिला दे मुझे सफलता जरूर मिलेगी क्योकि तेरा आशीर्वाद जो मेरे साथ !" बेटा माँ से लिपट कर बोला । रामिया आंसू पोंछ बेटे को गुड़ खिला विदा करने लगी। कार्तिक की आँख मे आंसू आ गये।


" देखा कार्तिक सफलता दही चीनी से नही माँ के आशीर्वाद से मिलती है जो वो इसे खिलाते हुए देती है और तू अभागा अभी उसी आशीर्वाद को अपने घमंड की भेंट चढ़ा कर आया है !" कार्तिक के मन से आवाज़ आई। कार्तिक भागता हुआ घर के अंदर आया और कुर्सी पर बैठी माँ के चरणो मे बैठ गया।


" तू गया नही !" निर्मला जी आँसू पोंछती हुई हैरानी से बोली।


" तेरे आशीर्वाद के बिना कैसे जा सकता था मुझे दही चीनी खिला और मेरी मेहनत के साथ अपना आशीर्वाद भी जोड़ दे जिससे तेरा बेटा हर कदम सफलता पाये।" कार्तिक बोला।


निर्मला जी ने खुशी खुशी उसे दही चीनी खिला आशीर्वादों की झड़ी लगा दी। कार्तिक माँ के पैर छू जाने लगा। इस बार उसके चेहरे पर घमंड नहीं आत्मविश्वास था मानो माँ के दही चीनी खिलाने से अब उसके चारों तरफ सुरक्षा घेरा बन गया जो उसे हर कदम सफलता दिलाएगा।



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