Sangeeta Aggarwal

Others

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Sangeeta Aggarwal

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यादें

यादें

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यादे इंसान की जिंदगी का वो सच जो कभी उसे हंसाता , गुदगुदाता है । कभी चुपके से रुलाता है । कभी दिल को तसल्ली दे जाता है । कभी एक पश्चाताप से भर जाता है। मुझे इस जाते साल ने क्या दिया ...खुशी या गम ? सपना यूँही अपनी डायरी लिए बैठी इस साल की यादें टटोल रही थी। 


साल की शुरुआत कितनी अच्छी थी ..." पापा मैं आ रही हूँ आपके पास हमेशा के लिए आपका ध्यान रखने !" नए साल की शुभकामनाओ के साथ यही तो कहा था सपना ने अपने जन्मदाता से ।


फोन पर पिता का सुकून से भरा खिला चेहरा तो नही देख पाई थी सपना पर उसे पता था एक पिता के लिए ये खुशी बहुत बड़ी होती है कि जीवन की संध्या बेला मे उसके बच्चे उसका ध्यान रखे...साथ ही ये सुकून भी कि अब मैं अकेला नही।


बस सपना ने सोच लिया अब अपना सब कुछ समेंट के चलना है । पर क्या समेटना इतना आसान होता है क्या क्या समेटेगी सपना पच्चिस साल की यादें है इस शहर मे ...दुल्हन बनकर आई थी पच्चीस साल पहले इस शहर मे । एक बेटी से पत्नी पत्नी से बहू , बहू से भाभी , भाभी से माँ कितने रिश्तो मे ढली थी इन पच्चीस सालों मे ...उसके साथ ही ससुराल के ओर रिश्ते भी थे ...क्या सबको समेटना आसान था उसके लिए । कितने संगी साथियों के साथ बिताये सुनहरे पल थे क्या क्या समेटेगी सपना! 


पर अब बचा भी क्या है समेटने को बहू का रिश्ता तो सास ससुर के स्वर्गवासी होने के साथ ही खत्म हो गया था , भाभी कहने वाले अपने अपने घर के हो गये थे। बच्चे साथ थे ही .. बचे बाकी रिश्ते ...क्या उन्हे सहेज पायेगी वो यहां से जाने के बाद । क्या संगी , साथी अपने रहेंगे ?...सपना जाने से पहले यही सोच रही थी ।


" जिसे निभाना होता है वो कैसे भी निभा लेते है वैसे भी रिश्ते दो तरफा होते है ...दोनो के द्वारा ही निभाए जाते है ..जो तेरे अपने है वो तेरा इस पल साथ देंगे जो तुझसे दामन छुड़ा लेंगे वो कैसे अपने ? और क्या तू ये सोच अपने जन्मदाता के प्रति फर्ज से विमुख हो जाएगी ?" सपना के अंतर्मन से आवाज आई।


" नही नही कोई रिश्ता जन्मदाता से बड़ा नही । मैं अपनी तरफ से पूरी कोशिश करूंगी हर रिश्ता सहेज पाऊं पर अपने जन्मदाता की खुशी की कीमत पर नही !" सपना ने खुद को जवाब दिया और इसी के साथ सारी दुविधा समाप्त हो गई...! सब रिश्तेदारों से मिलकर सारी यादें सहेज वो निकल पड़ी एक नई जिम्मेदारी निभाने। हालांकि कुछ लोगो को ये रास नही आया पर अब सपना ने पीछे मुड़कर नही देखने की ठानी।


पिता के पास आ एक सुकून मिला उसे भी क्योकि पिता को सुकून मिला था... अजीब रिश्ता होता है पिता के साथ बच्चो का ...बच्चो के बचपन से जवानी तक जिस पिता को सुकून मिलता है अपने बच्चो की खुशी देख उसी पिता के बुढ़ापे मे उसकी खुशी से बच्चो को सुकून मिलता है। 


" माँ मैं आ गई हूँ तुम्हारे अधूरे कामो को पूरा करने ...अपने पिता का बेटा बनने... अपनी बहनो का मायका बनने ...इस सबमे आपके साथ और आशीर्वाद की जरूरत है मुझे !" सपना ने आने के बाद माँ की तस्वीर से यही तो कहा था।


कुछ महीनो तक यही चिंता रही कि क्या मेरा ससुराल से बिल्कुल नाता टूट जायेगा क्या अब हर त्योहार बस पीहर का रह जायेगा ...ये डर भी जल्द खत्म हो गया जब नन्दों का राखी लेकर आना हुआ ...सच कितना सुकून मिला था ये देख ...खुद को थोड़ा शाबाशी देने का भी मन किया क्योकि रिश्तो को थोड़ा ही सही सहेजा तो है मैने ...कितना चलायमान होता है ना मानव मन सब पाना चाहता है पर ऐसा मुमकिन हो जाये तो कोई हसरत बाकी कहा रहे।


कुछ रिश्ते पीछे छूट भी गये सपना के लिए जिन्होंने पूरा साल मुड़कर नही देखा .. थोड़ा दुख है इसका सपना को पर वो रिश्ते क्या सच मे रिश्ते है। 


" नही नही ये मैं क्या सोच रही हूँ मुझे कमजोर नही पड़ना है मेरे साथ मेरे बच्चे है जो मेरा भविष्य है अतीत को पीछे छोड़ आई हूँ वर्तमान मे जीने को भविष्य अपना साथ लाई हूँ ...इस स्वार्थी दुनिया मे थोड़े ही सही रिश्ते भी सहेज लाई हूँ ...फिर क्यो घबराना है ...अब तो जन्मदाता के प्रति अपना हर फर्ज निभाना है !" सपना ने मन ही मन सोचा और डायरी को देखने लगी।


ऐ 2022 तेरा शुक्रिया तूने मुझे मेरा फर्ज याद दिलाया 

ऐ 2022 तेरा शुक्रिया तूने एक पिता की उम्मीद को खिलाया।

शुक्रिया तुझे बार बार तूने कुछ रिश्तो से मुखौटा तो हटाया।

शुक्रिया हर चीज के लिए जो तेरे साथ खोया और पाया।


डायरी मे ये लिख सपना ने डायरी बंद कर दी ...और तैयारी करने लगी नये साल के स्वागत की ..कुछ अच्छी यादें समेटेगी वो इस साल इस उम्मीद के साथ।


सपना की 2022 की यादो को पढ़ने के लिए धन्यवाद 

आप सभी को नए साल की अग्रिम शुभकामनाएं


आपकी दोस्त

संगीता


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