जिम्मेदारी की पोटली
जिम्मेदारी की पोटली
उफ़ राजीव आज कितनी देर हो गई उठने में मुझे तुम जाग गये थे तो मुझे भी उठा देते !" रीना हड़बड़ा कर उठते हुए बोली।
" अरे मुझे कहा कब था तुमने रात को उठाने को !" फोन में लगा हुआ राजीव बोला। राजीव की बात सुन रीना को गुस्सा तो आया पर उसके पास गुस्से का भी समय नहीं था बेटे को स्कूल भेजना था फिर सास ससुर की चाय, राजीव का नाश्ता, टिफिन सब करना था इसलिए फटाफट बालों को लपेटा और जूड़ा बना लिया और जाने लगी।
" खुले छोड़ दो ना इन बालों को क्या ये जूड़ा सा बना लेती हो बस !" राजीव उसकी तरफ देखते हुए बोला। रीना तो पहले ही खफा सी थी राजीव से इसलिए उसे कुछ बोलने की जगह घूर कर देखा और चलती बनी। राजीव मुस्कुरा दिया।
बेटे को उठा कर उसे तैयार किया और चाय नाश्ता दे उसे राजीव के साथ भेजा। इतनी देर में एक गैस पर चाय एक पर सब्जी चढ़ाई, सास ससुर और राजीव को चाय दे फ़टाफ़ट टिफिन बनाने लगी। इतने राजीव तैयार होकर आया उसने नाश्ता मेज पर लगा दिया और सास ससुर और राजीव को नाश्ता दिया और उनको गर्म गर्म नाश्ता करवा कर खुद अपना नाश्ता लिया। इसी वक़्त उसे सुबह की चाय नसीब होती थी। इतना सब करते करते सफाई वाली आ गई और उसके साथ सफाई करवाई।
सब काम खत्म करते हुए एक यूँही बज गया थोड़ी देर में खाने का समय होने वाला था यूँही भागते दौड़ते शाम भी हो गई और राजीव भी ऑफिस से आ गया। सास ससुर उस समय आरव के साथ सोसाइटी के पार्क गये हुए थे। रीना ने राजीव को चाय लाकर दी।
" क्या यार सुबह से रात तक एक जूड़े में रहती हो तुम तुम्हे याद है मैं तुम्हारी खुली जुल्फे देख तुम्हारा दीवाना हुआ था और शादी के बाद तो वो खुली जुल्फे बस किसी समारोह में ही नज़र आती है वर्ना तो बस ये जूड़ा। कभी इसे खोल भी लिया करो !" राजीव चाय पीता हुआ पास में चाय पी रही रीना को देख बोला और उसके बालों से कलेचर निकालने लगा।
" पतिदेव जब तुमने मुझे देखा था खुले बालों में तब मैं एक बेटी थी लापरवाह सी अपने माँ बाप की लाड़ली।और जो अब ये जूड़ा बनाये जिस औरत को देख रहे हो वो एक गृहिणी है, एक माँ, एक पत्नी, एक बहू है समझे तुम !" रीना बोली।
" हां तो उससे क्या फर्क पड़ता है मैं तो अब भी तुम्हे पांच साल पहले वाली खुले बाल वाली रीना देखना चाहता हूँ पर तुम ना जाने क्यो सुबह उठते ही ये जूड़ा बना लेती हो !" राजीव बोला।
" पतिदेव तुम्हे पता है जब बेटी बहू बनती है तो उसपर बहुत सी जिम्मेदारियां आ जाती हैं एक गृहिणी इस जूड़े में सिर्फ बाल नही बांधती वो बांधती है जिम्मेदारियां। घर की, सास ससुर की, बच्चों की, पति की सबकी जिम्मेदारियां। जूड़ा बाँध वो तैयार होती है इन जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए। ओर इन्ही जिम्मेदारियों को पूरा करते वो पकाती है अपने लिए रिश्तो की खिचड़ी। खुले बाल मे जिम्मेदारियां निभाना और ये खिचड़ी पकाना एक गृहिणी के लिए मुश्किल होता है समझे तुम। ये जूड़ा नही जिम्मेदारियों की पोटली है जिसमे बहुत सारे रिश्ते बंधे हैं !" ये बोल रीना वापिस से जूड़ा बाँधने लगी अभी रात के खाने की जिम्मेदारी जो उठानी थी। राजीव उसकी तरफ ऐसे देखने लगा मानो उसने कोई रहस्यमयी बात बताई हो। एक जूड़े की ऐसी परिभाषा की तो शायद राजीव ने कल्पना तक नही की थी।
रात के काम खत्म कर रीना ने अपने कमरे में जाने से पहले अपना जूड़ा खोल दिया क्योंकि अब उसके सिर से जिम्मेदारियों का बोझ आज के लिए खत्म हो गया था। वो मुस्कुराते हुए कमरे में आई तो उसकी खुली जुल्फे देख राजीव भी मुस्कुरा दिया।
क्यों दोस्तों आप भी बांधती हैं ना रोज सुबह अपने जूड़े मे ढेरों जिम्मेदारियां ! क्या आपके पतिदेव को भी आपके जूड़े से परेशानी होती है ?