जीवन संध्या #13दिन
जीवन संध्या #13दिन
13 दिन बुढ़ापे की सनक
आज श्रीवास्तव जी को रिटायर्ड हुए करीब पांच साल हो गए हैं। अपने रिटायर्ड साथी के साथ योगा करने जाना और खूब गप-शप करना।
उन आठ- दस लोगों के ग्रुप में एक थे टीचर दुबे जी। पक्के चटके हुए एक बार उनकी सुई किसी बात पर अटक जाती तो फिर किसी की मजाल के
दुबे जी को समझा सकें
दुबे जी की इस हठधर्मी की वजह उनके दोस्त अक्सर उन्हें सनकी कहते थे। ये सारे ग्रुप जिस एरिया में रहतें थे वहाँ के पार्षद ने बच्चों के लिए खेल की जगह को अतिक्रमण करके उस पर बोर्ड लगा दिया था सब बच्चे , इन बुज़ुर्गों के पास आए । उन्हें लगा अंकल लोगों के कहने पर पार्षद हमें हमारी जगह जहाँ हम खेलते हैं और वैसे भी बिल्डर ने बच्चों के पार्क के लिए छोड़ी थी ।
इन बुजुर्गों ने ध्यान से सुना बच्चों की परेशानी और उन्हें भरोसा दिलाया की हम देखतें हैं क्या कर सकते हैं उन आठ -दस बुज़ुर्गों ने श्रीवास्तव जी के यहाँ बैठक, तय हुई थी तो सब ही सरकारी दफ्तरों से रिटायर्ड सारे दांवपेंच जानते थे, उन्होंने सब एक ड्राफ्ट तैयार किया और कलेक्टर को देने का प्लान बनाया।
दूसरे दिन सब लोग कलेक्ट्रेट पहुँच गए। स्लीप भेज कर कलेक्टर से मिलने का समय मांगा। लंच के बाद उन लोगों को बुलाया, कलेक्टर ने शांति से सारी बात सुनी फिर उससे संबंधित अधिकारी को बुला कर ये पार्षद का अतिक्रमण वाला केस हल करो और मुझे इंफ्राम करो।
क्यों श्रीवास्तव जी पूर्व डिप्टी कमिश्नर से रिटायर्ड थे। उन सबको भरोसा दिला कर भेजा। कुछ दिनों बाद पार्षद का अतिक्रमण हटाने का नोटिस जारी किया गया। सरकारी नोटिस के बाद पार्षद ने अपना कब्ज़ा हटा लिया। बच्चों ने बड़े खुश हो गए ।
पूरी सोसाइटी में बुजुर्गों की खूब तारीफ हुई । अब दुबे जी ने अपने दोस्तों से कहा अपने सब मिलकर इस पार्क को पेड़ -पौधों को लगाते हैं अपने पैसों से माली रखतें हैं, वहाँ की पानी की समस्या का भी हल भी नगरपालिका से नल लगवा लेंगे अपनी सोसाइटी को ताज़ा हवा और लोगों को तफ़रीह की अच्छी जगह हो जाएगी। सबने और बच्चों ने लग गए कचरा हटाने कुछ ने उन बूढ़े लोगों पर मज़ाक बनाने लगे अरे ये तो सनक गए हैं।
दुबेजी की बीवी नाराज़ होती हैं क्यों अपनी बूढ़ी हड्डियों को तुड़वाना दिन भर गधा हम्माली करते हो रात में दर्द होता है। मगर उन बुजुर्गों ने ठान लिया था के इस कूड़ा-करकट को हटा कर पेड़-पौधें लगाएंगे।
दो तीन मज़दूर और बच्चों को तो अंकल जी या किसी के दादा बन गए, किसी के नानाजी सब बच्चों ने मेहनत की क्यारियाँ बनी फिर सब बुजुर्गों ने अपनी पेंशन से कुछ चंदा किया बच्चों ने भी अपने-मम्मी पापा से पैसे लाकर उन बुजुर्गों को दिए पौधें लाए माली ने सब सलीके से लगा दिए, अब देख भाल भी आपस में सबने मिलकर, सारे बुजुर्गों को कोई काम तो रहता नहीं था दो-दो में आकर पेड़-पौधे की रखवाली की जाती फिर सोसाइटी में तय हुआ एक माली रख लेतें है। उन बुजुर्गों ने पार्क की बाउंड्री भी नगर पालिका से लगवाई गई।
दुबे जी और बाकी दोस्तों को बड़ा गर्व होता । सोसाइटी के फंक्शन में सारे बुजुर्गों को सम्मानित किया। और जो लोग उन्हें सनकी कहते थे वो भी शर्मिंदा हुए।
हमारे ये बुजुर्गों को कम ना आंके क्यों उन्होंने दुनिया देखी है।