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Ruchi Singh

Abstract Children

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Ruchi Singh

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जीवन की दुविधा

जीवन की दुविधा

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घबराई हुई सुशीला जी अपने बेटे विशाल को दुबई फोन करती हैं जो अभी 15 दिन पहले ही गया था वह बोली बेटा "तेरे पापा को न्यूरो डिजी़ज हो गई है। डॉक्टर अल्जाइमर बता रहे हैं। उनको हॉस्पिटल में कल रात ही एडमिट किया है। उनके प्रिय दोस्त की मृत्यु से उनको सदमा लगा और उनको अस्पताल में भर्ती कराया गया मैं वहीं से फोन कर रही हूं।" विशाल भी घबरा गया वह बोला "मां आप चिंता मत करिए। मैं पहली फ्लाइट लेकर आता हूं।" वह जल्दी से छुट्टी लेकर आया पिताजी को देखकर दो दिन में ही चला गया। नई जॉब थी तो छुट्टी ज्यादा नहीं मिल रही थी। पड़ोसियों के सहायता से सुशीला जी ने अमर जी को अस्पताल में भर्ती किया था। 

एक दिन अस्पताल में बैठे-बैठे सुशीला जी अतीत की यादों में खो जाती है। कैसे 35 साल पहले शादी हुई थी। शादी के 2 साल बाद विशाल आया जिंदगी में। हम सब कितने खुश थे। अमरजी सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज में लेक्चरर थे। खूब पैसा कमाया और बेटे को खूब मन से पढ़ाया। हम दोनों का बच्चे का उज्जवल भविष्य बनाने का सपना था। विशाल बचपन से पढ़ने में बहुत ही अच्छा था और मेहनती भी। कई सालों की मेहनत के बाद वह सपना पूरा हुआ। एमबीए करके मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब करने लगा। 

अतीत के झरोखों में और अंदर झांकते हुए सुशीला जी सोचती हैं कि, कैसे कुछ सालों में विशाल की शादी भी कर दी। बहू रूबी भी घर आ गई । दोनों बेटा व बहू सुबह ऑफिस चले जाते और शाम तक आते। अमर जी भी रिटायर हो गए थे पर किसी प्राइवेट कॉलेज में अभी भी पढ़ाने का काम कर रहे थे। शाम को ही घर आते। अपने खुश मिजाज और मिलनसार व्यवहार से सोसाइटी में बहुत ढेर सारी दोस्तें भी बन गयी थीं मेरी। कम उम्र के लोगों में सोसाइटी में सबकी फेवरेट आंटी भी थी मैं। सब खूब बातें करते और कहते आपकी बातें बहुत ही अच्छी और ज्ञान देने वाली होती है।

सुशीला जी अब ख्यालों के सागर में गोते लगाती आगे सोचती हैं, विशाल जिंदगी में आगे बढ़ने के लिए कुछ महीनों से जॉब के लिए अप्लाई कर रहा था। तभी अचानक एक दिन उसे दुबई में बहुत ही अच्छी कंपनी से ऑफर आया। उसकी मेहनत रंग लाई। आज उसे तथा परिवार सभी को ऐसा लगा जैसे जीवन की बहुत बड़ी सफलता उसने पा ली। जिसका उसको बरसों से इंतजार था। बढ़िया पैकेज, साथ में घर, गाड़ी, सब सुविधाएं उसको मिली। उसने अपने मां-बाप की सहमति से वहां जाने का फैसला किया। कुछ ही दिनों में वह और रूबी वहां के लिए रवाना हो गए। सब बहुत खुश थे।

 परिवार में सभी के फोन आ रहे थे। आपका बेटा तो बहुत अच्छा निकला। इतनी कम उम्र में इतनी तरक्की कर लिया। आप लोगों को बहुत-बहुत बधाई। मां-बाप और बच्चे सब अपनी -अपनी जगह बहुत खुश थे और व्यस्त। बेटा बहू के जाने के बाद अमर जी वैसे ही अपनी नौकरी में बिजी और सुशीला जी अपने दोस्तों में और घर के कामों में बिजी रहती। खुशी-खुशी दिन कट रहे थे ।

तभी एक दिन अचानक अमर जी को उनके प्रिय दोस्त के देहांत की सूचना मिली। अचानक दूसरे दिन भी ऐसे ही हुआ किसी और परिचित की मृत्यु की सूचना आई। एकाएक अमरजीत को वज्रपात सा मानसिक आघात हुआ। डॉक्टर के पास गए उनका इलाज में दवाई की डोज ज्यादा होने से उनको कुछ दिनों में एक नई अल्जाइमर की समस्या शुरू हो गई। और उन्हें अस्पताल में एडमिट करना पड़ा। तभी नर्स आकर बोली की आंटी जी इनके डिस्चार्ज के पेपर तैयार हैं। आप इनको ले जा सकती हैं। सुशीला जी अपने अतीत की यादों में से बाहर आई और उन्होंने पूछा क्या बोला आपने। नर्स ने वापस वही बात दोहराई। उन्होंने बोला ठीक है मैं अपने पड़ोसी को बुला लेती हूं। 

तभी उन्होंने देखा कि विक्रांत उनके पड़ोसी ऑफिस से सीधे हॉस्पिटल चले आ रहे हैं । उनको देखते ही सुशीला जी की आंखों में आंसू आ गए। उन्होंने "धन्यवाद विक्रांत" बोला 

"अरे आंटी मैं भी तो आपका बेटा जैसा हूं" कहकर आंटी को शांत कराया।

सुशीला जी उनकी मदद से अमर जी को डिचार्ज करा घर ले आई‌। उनके पड़ोसी ने उनके बेटे से बढ़कर सहायता की। विक्रांत सोसाइटी के और कुछ लोग भी बाजार से कुछ सामान लाना हो कुछ काम करना है सब में वह पूरी तरह से मदद करते थे। 

विशाल की सुशीला जी से रोज बात होती थी। पर कैरियर को छोड़कर क्या वापस आएगा वो? क्या मां-बाप को भी अच्छा लगेगा कि हमारी वजह से उसका कैरियर पीक पर जाकर वापस नीचे आ जाए। सब बड़े ही दुविधा में थे। कुछ समझ में नहीं आ रहा था।

अपना कर्तव्य समझकर एक दिन विशाल ने बोला "मां मैं इंडिया आ जाता हूं नौकरी देखी जाएगी।" पर सुशीला जी ने मना कर दिया। वह बोली कि नहीं बेटा तू परेशान मत हो मैं संभाल लूंगी।

कुछ दिनों के मंथन के बाद सुशीला जी ने एक तरकीब निकाली। एक केयरटेकर रख लिया जो अमर जी के साथ दिन भर रहता था। उनके सारे काम उनको नहलाना, खिलाना, बाहर सैर पर ले जाना, सब काम वही करता था। शाम को भी खाना खिला कर जाते समय अमर जी को हगीज़ पहना कर चला जाता था।

सुशीला जी रात भर अमर जी की देखभाल करती और सुबह 7:00 बजे केयरटेकर वापस फिर आ जाता। सोसाइटी के और लोग भी उनकी सहायता के लिए हमेशा तत्पर रहते। इस तरह उनकी जिंदगी की गाड़ी चलने लगी।

एक दिन सुशीला जी की बहन का फोन आया और बोला तुम्हें विशाल को बुला लेना चाहिए था। ऐसी स्थिति में तुम अकेले कैसे अमरजी को संभालोगी? सुशीला जी बोली "मै यदि विशाल को बुला लेती तो क्या वह सही रहता? वह क्या इंडिया में भी रहता तो जॉब छोड़ कर दिन भर घर में तो नहीं रहता। ऑफिस तो जाता, शाम या रात में ही तो ऑफिस से आता। यही सोच मैंने अपने दम पर अपने जीवन को आगे बढ़ाने का फैसला लिया। कहकर सुशीला जी हंस दी। सुशीला जी की बहन भी बोली "ठीक है जैसी तेरी मर्जी" कहकर फोन रख दिया।

क्या सुशीला जी ने सही किया आप अपने अनमोल विचार देकर बताइएगा जरूर।


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