शालिनी गुप्ता "प्रेमकमल"

Abstract Inspirational Others

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शालिनी गुप्ता "प्रेमकमल"

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जीवन डायरी..5 मौन

जीवन डायरी..5 मौन

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आज कुछ ज्यादा किया नहीं मैंने..पढ़ना लिखना ज्यादा हो रहा है....बनिस्बत घर के कामों के...क्योंकि करीबन एक साल होने को आ रहा है, मुझे सीधे वाले हाथ में फ़्रोजन शोल्डर हो गया है l जिसकी वजह से हाथ को उठाने वाले और मूवमैन्ट वाले काम कर नहीं पा रही हूँ, बहुत ही ज्यादा परेशानी होती है l इसकी वजह से अपने ही बालो में कंघी करना..अपने हाथ को पीछे नहीं कर सकते, ऊपर नहीं उठा सकते, मसलन कि बहुत सारे दैनिक कार्य बाधित हो गए हैं...दर्द भी बहुत असहनीय होता है l उसका इलाज भी थकाऊ और झिलाऊ है, मतलब कि कोई दवाई नहीं है इसकी, बल्कि फ़िजियोथैरेपी से ही ठीक हो सकता है l पूरा घर अस्तव्यस्त हुआ पड़ा है l अब तो कभी कभी चिढ़चिढ़ा जाती हूँ कि क्या करुँ...क्योंकि इस तरह से बिखरा हुआ घर देखने की आदत नहीं है ना...बच्चे तो बच्चों की तरह ही काम करते है ना l

वैसे इस बीमारी और लॉकडाऊन की वजह से कुछ अच्छा भी हुआ है,जैसे..मेरी बेटी इसके कारण खाना बनाना सीख गई है..पहले से ज्यादा समझदार हो गई है l जब वो मेरा ध्यान रखती है तो बहुत अच्छा लगता है l हाँ...लेकिन घर के कामों के बँटवारे को लेकर जब दोनों भाई बहन के बीच जो घमासान होता है तो मध्यस्थता भी मुझे ही करना पड़ती है और सारे इल्जाम भी मुझ पर ही आते है कि आप तो उसे कुछ नहीं कहते ... तो दूसरा बोलेगा कि आप तो हमेशा उसी की साइड लेते हो...वगैरह वगैरह l अब किसे और कैसे समझाए कि हम तो दोनों की साइड है l

एक बात तो है कि जब आप माँ बाप बन जाते हैं तो आप अपने माता पिता को बहुत ही अच्छी तरह से जानने और समझने लगते हैं l जब आप उनकी जगह पर खड़े होते हैं, तो आपकी सारी शिकायतें, जो अपने माँ बाप से होती हैं वह धीरे धीरे खत्म होने लगती है l आपने कितनी गलतियां की, और उन्होने कितने त्याग किए.. सब नजर आने लग जाता है l वो कितने अच्छे पैरेंट्स है...ये स्वयं पैरेंट्स बनने पर ही पता चलता है l

अब आप कहोगे कि ये क्या राम कहानी सुनाने बैठ गई.. असल मैं जैसा की मैंने आपको बताया कि आजकल मेरा रोज बच्चों के युद्ध से सामना होता है,और रोज उनके बीच सामंजस्य बैठाना पड़ता है, तो मैने एक बात महसूस की.. जब आप किन्ही दो पक्षों के बीच बैलेंस करने की कोशिश कर रहे हैं और दोनों ही सही हो...तो आप चाहे ना चाहे पर किसी ना पक्ष के साथ खड़े हो ही जाते है..और फ़िर दूसरा पक्ष आपसे रूष्ट हो ही जाता है l एक गलत, एक सही हो तो कोई समस्या नहीं होती क्योंकि दोनों पक्ष ये माने ना माने पर, अंदर से जानते हैं कि कौन सही है, कौन गलत l जब दोनों पक्ष सही हो... तब किसी एक के साथ जाना बहुत ही गलत हो सकता है, तो उस वक़्त मैं दोनों के साथ मौन का रास्ता अपनाती हूँ l उन्हे अपनी समस्या स्वयं ही हल करने देती हूँ l ये मौन बड़ा ही कारागर होता है l

बच्चों के साथ करी गई, यही छोटी गलतियां मुझे लगता है कि, इसकी जड़े कभी कभी बहुत गहरे तक चली जाती हैं l खासकर माँ बाप के संदर्भ में, ये बहुत परेशानी भरी हो सकती हैं, क्योंकि यही पतली, बारीक सी दिखाई ना देने वाली व्यवहारिक गलतियां, आगे जाकर उनके बीच सृजन करते प्यार भरे सम्बन्ध में, ईर्ष्या का बीज बो देते हैं l जो कही अंतस: में इकट्ठा होती जाती हैं और इसके दूरगामी परिणाम आगे देखने मिलते हैं l

मैं बात कर रही हूँ मौन रहने की... ये बहुत ही काम की चीज है l इसके प्रयोग से बड़ी बड़ी समस्या चुटकी में हल हो जाती हैं l अब आप पूछेगे भला कैसे ? जब आप बात करते हैं, तो आप खुली किताब की तरह होते है...लेकिन जब मौन धारण करते है तो बंद किताब कि तरह.. तो बंद किताब को भला कोई कैसे पढ़ेगा.. बताइए? वह सिर्फ़ आकलन ही लगाता रहेगा.. पर आपके बारे में जान नहीं सकता l

अब एक स्थिति..जैसे कि आपके साथ कोई बहस या वाद विवाद की परिस्थिति बन रही हो ..बस थोड़ा अपने में धैर्य लाना होता है.. मौन रहिये.. दूसरा व्यक्ति कितना बोलेगा..एक हद के बाद शान्त हो ही जायेगा l इतने में ही कई बड़ी समस्या टल जाती है l कोई आपको कुछ कह रहा है पर आप उस बातचीत में शामिल नहीं होना चाहते या उसके साथ बातचीत को आगे नहीं बढ़ाना चाहते तो बस आप एक मौन ले लीजिए ..और उसे बिना कुछ कहे, बिना कोई बुराई का बीज रोपण किये बिना ही आप उसे उसका जवाब दे सकते है l

जरूरी तो नहीं कि हर समय सबके सामने अपने आप को स्पष्ट ही किया जाये l कभी कभी हम अपने आप को सही साबित करने के लिए लगे रहते हैं पर फ़िर भी हम सही होते हुए गलत साबित हो जाते है l लेकिन उस समय आपका एक मौन, एक अनिर्णय की स्थिति पैदा करता है... जो सामने वाले को सोचने के लिए मजबूर करदे, और हो सकता है, जो आप दिखाना चाहते हैं, वह स्वयं ही देखले l

कभी कभी ऐसा होता है कि दो पक्षों के बीच कहासुनी चलती रहती हैं.. बस दोनों ही पक्ष बोलते रहते हैं.. दोनों ही एक दूसरे को सुनना ही नहीं चाहते हैं.. लेकिन ऐसे में एक पक्ष शान्त रहे.. तो आप देखियेगा की कुछ समय बाद उस पक्ष की कठोर नजरें और उसका मौन ही उसे सब जवाब भी दे देगा और हो सकता है कि उसे अपनी कही बातों का गिल्ट भी हो l

होता क्या है कि दो पक्षों के वाकयुद्ध में सिर्फ दो अहम् है जो आमने सामने होते है और दोनों ही प्रयासरत होते है एक दूसरे के अहम् को झुकाने में...l तब ऐसे में जब एक पक्ष बिना कोई बात किए, मौन धारण करके दूसरे पक्ष के अहम् को जीतने देता है तो दूसरा पक्ष बिना लड़े ही जीत कर भी उसका अहम हार जाता है l इसके लिए वह किसी पर भी दोषारोपण भी नहीं कर पाता है...और मामला शान्त.. दोनों के ही अहम भी तुष्ट हो जाते है l

इसलिए कभी कभी मौन रहना बहुत ही श्रेयस्कर होता है l मौन रहने के बहुत फ़ायदे है, पर आगे बढ़ूँँगी तो बात बहुत ही लम्बी हो जाएगी.. इसलिए यही विराम देती हूँ l चलिए आज इतना ही.. कुछ ख्याल आए तो बाँट लिए... फ़िर मिलते हैं...... ...


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