शालिनी गुप्ता "प्रेमकमल"

Abstract Inspirational

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शालिनी गुप्ता "प्रेमकमल"

Abstract Inspirational

जीवन डायरी.. 6 जिंदगी

जीवन डायरी.. 6 जिंदगी

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"जिंदगी इम्तिहान लेती है "...सच में ना तुम कितना प्यार करती हो ना मुझे.... कुछ नहीं कहती बस आती हो रोज, एक इम्तिहान लेकर....रोज खड़ा करती हो एक प्रश्न मेरे सामने, हर इम्तिहान के साथ दे जाती हूँ , मेरे वजूद को एक मायना, एक मजबूती l मैं जितना तुम्हें जानती जा रही हूँ ना .... तुम मेरे उतने ही करीब आती जा रही हो l पहले कितना बैचेन करती थी ना, तुम मुझे .... पर अब उतना ही सुकून सा देने लगी हो l पता नहीं क्यों...सहेली सी लगने लगी हो मुझे l अब रिश्ते बोझ नहीं लग रहे है मुझे.. जब से तुम्हें समझा है ना...बँधकर भी, बँधी नहीं हूँ मैं l

अब तुफ़ान नहीं..बहती हवा का झौका सी लगने लगी हो l सोचती हूँ कि तुम साकार होती तो कैसी होती ??पर तुम तो निराकार हो..बिल्कुल हवा की तरह...कभी खुशबू सी महकती, तो कभी सुहानी बयार सी, तो कभी तूफ़ान सी l

जब सूरज निकलता है तो चाय के साथ महसूस होती हो..ढलती शाम में, छत के किसी कोने में, जब चेहरे को ठंडी हवा छूती है, तो तुम आसपास ही नजर आती हो l कभी किसी किताब के पन्नों पर दिख जाती हो... तो कभी किसी फ़ोन कॉल में खिलखिलाकर अपना जलवा बिखेर जाती हो...तो कभी बारिश की बूदों के साथ, कानों में गुनगुनाती गज़लों में, शर्माती इठलाती दिख जाती हो l कभी अचानक से हाउ करके सामने आती हो डराने के लिए, पर पता...अब तुम्हारी चालाकियाँ कुछ कुछ समझ आने लगी है मुझे.. तो अब डरती नहीं हूँ...पहले से ही तैयार हो जाती हूँ आँखे मिलाने के लिए l

अभी तक तुम्हें सुनती ही आ रही थी..पर अब जवाब देना भी सीख रही हूँ मैं l अभी तो बहुत कुछ बाकि है ...जो तुमसे सीखना है, जानना है, बाँटना है l

पता है जो पहले डराता था..वो आज सवाँरता है मुझे l मैं पहले कितना शिकायत करती थी ना तुमसे, पर अब सिर्फ़ समाधान पर विचार करती हूँ l जो छूट गया तो.. छूट गया, छोड़ आगे बढ़ जाती हूँ.. और जो मिल गया तो, उसी में खुश हो जाती हूँ मैं l अब उम्मीदों का बोझ किसी पर डालती नहीं मैं...और अब जिम्मेदारियाँ खुद पर लादती नहीं मैं l जो जितना कर सकते है.. करती हूँ मैं.. नहीं तो फ़िर आगे बढ़ती हूँ मैं l

अभी तक तो सिर्फ.. मैं तुम्हें जी रही थी ..पर अब मैं तुम्हें महसूस भी करने लगी हूँ l अब थोड़ा थोड़ा तुम्हें मैं प्यार करने लगी हूँ मैं.. हाँ कुछ कुछ ..अब तुम्हें पहचानने लगी हूँ मैं l कुछ ज्यादा ही poetic हो रही हूँ ना ..😅ऐसा लग रहा है मुझे .... इसलिए तुम घबरा ना जाओ तो.. विराम दे रही हूँ.. कभी कभी सच में.... मैं भी ना..

आज मेरी दी ने एक msg भेजा मुझे पढ़ कर मजा आ गया सोचा ...आप को भी पढ़ाया जाये...👇संपादित करके डाल रही हूँ.. हो सकता है..आपने पढ़ भी रखा हो पर मुझे❤ अच्छा लगा

ख्वाहिश नहीं मुझे

मशहूर होने की,"

आप मुझे पहचानते हो

बस इतना ही काफी है।

अच्छे ने अच्छा और

बुरे ने बुरा जाना मुझे,

जिसकी जितनी जरूरत थी

उसने उतना ही पहचाना मुझे!

जिन्दगी का फलसफा भी

कितना अजीब है,

शामें कटती नहीं और

साल गुजरते चले जा रहे हैं!

एक अजीब सी

'दौड़' है ये जिन्दगी,

जीत जाओ तो कई

अपने पीछे छूट जाते हैं और

हार जाओ तो

अपने ही पीछे छोड़ जाते हैं!

बैठ जाता हूँ

मिट्टी पे अक्सर,

मुझे अपनी

औकात अच्छी लगती है।

मैंने समंदर से

सीखा है जीने का सलीका,

चुपचाप से बहना और

अपनी मौज में रहना।

ऐसा नहीं कि मुझमें

कोई ऐब नहीं है,

पर सच कहता हूँ

मुझमें कोई फरेब नहीं है।

जल जाते हैं मेरे अंदाज से

मेरे दुश्मन,

      एक मुद्दत से मैंने

      न तो मोहब्बत बदली

     और न ही दोस्त बदले हैं।

एक घड़ी खरीदकर

हाथ में क्या बाँध ली,

वक्त पीछे ही

पड़ गया मेरे!

सोचा था घर बनाकर

बैठूँगा सुकून से,

पर घर की जरूरतों ने

मुसाफिर बना डाला मुझे!


सुकून की बात मत कर

ऐ गालिब,

बचपन वाला इतवार

अब नहीं आता!

जीवन की भागदौड़ में

क्यूँ वक्त के साथ रंगत खो जाती है ?

हँसती-खेलती जिन्दगी भी

आम हो जाती है!

एक सबेरा था

जब हँसकर उठते थे हम,

और आज कई बार बिना मुस्कुराए

ही शाम हो जाती है!

कितने दूर निकल गए

रिश्तों को निभाते-निभाते,

खुद को खो दिया हमने

अपनों को पाते-पाते।

लोग कहते हैं

हम मुस्कुराते बहुत हैं,

और हम थक गए

दर्द छुपाते-छुपाते!

खुश हूँ और सबको

खुश रखता हूँ,

लापरवाह हूँ ख़ुद के लिए

मगर सबकी परवाह करता हूँ।

मालूम है,कोई मोल नहीं है मेरा फिर भी

कुछ अनमोल लोगों से रिश्ते रखता हूँ।


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