शालिनी गुप्ता "प्रेमकमल"

Abstract Romance

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शालिनी गुप्ता "प्रेमकमल"

Abstract Romance

वो पाँच दिन

वो पाँच दिन

7 mins
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19-20साल का खूबसूरत सा लड़का.. वह अपने आप में खोया हुआ छत पर घूम रहा था, अपने काम में मग्न l पर दो खूबसूरत सी आँखें और भी थी जो दूर से उसे ही देख रही थी, 16-17 साल की खूबसूरत लड़की.. शायद रोज देखती थी उसे यूँ कैमरा लिए अपने आप में खोया हुआ छत पर.. पंछी तो कभी आकाश, तो कभी दूर धुँधलके में साँझ की, क्षितिज़ को कैप्चर करते हुए l बहुत ही गौर से देखा करती थी उसके चेहरे पर आते जाते रंग को... जब तस्वीर उसके मन की होती तो कितना खुश होता है,और जब उसके चेहरे पर चिढ़ के साथ जो बल पड़ते तो समझ जाती कि शायद मनमाफ़िक नहीं हुआ कुछ जनाब का..और मुस्करा देती l रोज आती थी और उसे देखा करती थी..पर लड़का इस सब से बेख़बर अपनी फ़ोटोग्राफ़ी में लगा रहता l उसने शायद अभी तक लड़की को देखा नहीं था, और उससे अनभिज्ञ था l

लड़की का घर दो गली छोड़कर था.. पर दोनों के घर की छत एक दूसरे की छतों से दिखती थी l

एक दिन लड़के को शायद किसी आर्ट गैलरी को कैप्चर करने का काम मिला था, एक फ़ेमस आर्ट गैलरी थी और बहुत से लोग पेन्टिग देखते हुए घूम रहे थे और वह भी पूरे तन्मयता से अपने काम में लगा था l वह एक एक पेन्टिग को अपना कैमरा सेट करते हुए क्लिक कर रहा था, कि तभी उसकी उँगलियाँ जैसे क्लिक करते करते रुक गयी उसके कैमरे के फ़ोकस में अचानक से एक खूबसूरत सा चेहरा आ गया और दिल जैसे उसे देखकर धड़क उठा l ना जाने क्यों वह उस चेहरे में ऐसे खोया कि पेन्टिग छोड़ उसे ही क्लिक करने लगा.. उसने 5-6 फ़ोटोज ही क्लिक की थी कि उसका साथी उसके पास आकर इशारे से पूछा.. ये क्या हो रहा है.. काम कर काम.. वह शर्मा कर अपने बालों में हाथ फ़ेरते हुए मुस्करा दिया l

अब उसका रोज का काम हो गया उस आर्ट गैलरी में जाना, वह रोज आती थी वहाँ अपनी फ़्रैन्ड के साथ.. एक दिन उसने उसका पीछा किया तो देखा वह सिटी बस से जा रही थी.. वह भी चढ़ गया.. उसने देखा कि वह तो उसके ही बस स्टॉप पर उतर रही है.. वो भी उसके पीछे गया तो देखा ..अरे वाह ! वह मुस्करा दिया ये तो उसके घर के पास रहती हैं l तभी उस लड़की ने अचानक से मुड़कर देखा और धीमे से आँखे चुराते हुए उसे देखकर मुस्करा दी..जैसे शायद जानती थी कि वह उसके पीछे है l

दूसरा दिन

वह बस से अपनी दोस्त के साथ जा रही थी, वह भी शायद उसका बस स्टॉप पर इंतजार कर रहा था.. वह भी उसके साथ बस पर चढ़ गया और धीरे धीरे उसकी सीट के पास पहुंचा और थोड़ी भीड़ होने का इंतजार करने लगा जैसे ही थोड़ी भीड़ बढ़ी उसने धीरे से सबसे नजर बचाकर धड़कते दिल के साथ एक लिफ़ाफ़ा उसे देने की कोशिश की ..पर ये क्या !... उस लड़की ने भी सबसे नजरें बचाकर उस लिफ़ाफ़े को लेकर जल्दी से अपने बैग मे छिपा लिया..और उसकी कोशिश को सफ़ल कर दिया l शायद वो ये सोच भी नहीं सकता था.. उसकी तो खुशी का ठिकाना ना रहा l

उधर जैसे ही लड़की घर पहुँची तो जल्दी से अपने कमरे का दरवाजा बंद किया और बैग से वो लिफ़ाफ़ा निकाल कर खोला तो उसमें उसकी बहुत खूबसूरत फ़ोटोज़ थी जो उसने आर्ट गैलरी में खींची थी l ये देखकर उसका मन खुशी के मारे नाच रहा था, उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि वह क्या करे.. तो वह खुशी से मचलती साँसों को सम्भालती हुई छत पर भाग गयी..पर शायद उसे वहाँ भी चैन नहीं आया तो वह छत पर ही रखे उसके अधूरे कैनवास को रंगने लगी l

तीसरा दिन

वो आज जल्दी ही आर्ट गैलरी आ गई थी और शायद उसका बेसब्री से इंतज़ार कर रही थी.. वो जानती थी कि वह रोज आता है..

थोड़े इंतजार के बाद ही देखा तो वह आ गया था.. उसे पता था कि वो आते ही उसे ढूँढेगा, इसलिए जैसे ही उसने उसे देखा तो वह छिप गयी.. वह वहाँ पहुंचा तो वह नहीं थी.. उसे फ़िर वह थोड़ी दूर पर दिखी.. वह दौड़कर उसके पास पहुँचा तो फ़िर वहाँ नहीं थी पर वहाँ एक पेन्टिंग रखी थी और उसके पास ही एक लाल गुलाब रखा था.. उसने मुस्कराते हुये उसे उठा लिया और जैसे ही उस पेंटिग को देखा तो कुछ जाना पहचाना सा दृश्य लगा.. उस पेन्टिग में एक छत पर एक लडका कैमरा लिए मंदिर पर बैठे एक पंछी की फ़ोटो ले रहा था और थोड़ी दूर एक छत पर एक लड़की उसे ही देख रही है l ये देखकर उसके दिल के तार झनझना उठे..मतलब.. उसने देखा उस पेन्टिग में नीचे उसके बनाने वाले का नाम लिखा था "स्नेहा" l

वो उसे इधर उधर ढूँढने लगा पर वो वहाँ नहीं थी तो वह बस स्टॉप की तरफ़ भागा तो देखा वह बस में बैठ रही थी जब तक वह पहुँचा बस जा चुकी थी l उसने गुस्से में एक पत्थर मे पैर मारा.. आज फ़िर उससे मिल नहीं पाया l

चौथा दिन

आज वो पहले ही बस स्टॉप पर पहुँच गया और जब वह आई तो वह भी उसके साथ ही बस पर चढ़ा.. और उसके पीछे की सीट पर बैठ गया l फ़िर उसने धीरे से एक कागज की पर्ची सीट पर आगे झुककर सोने का नाटक करते हुए उसे दे दी l उसने खोल के पढ़ा तो उसमें लिखा था "फ़ोटोज कैसे लगे" और नीचे नाम लिखा था 'प्रसून'

उसने भी धीरे से बैग में से पेन्सिल निकालकर.. उसी कागज में पीछे लिखा "बहुत ही सुन्दर" आपको पेन्टिग कैसी लगी "स्नेहा" और उसे गुड़मुड़ी करके सबसे आँखें बचाकर उसके पास नीचे फ़ेंक दिया l उसने जल्दी से उठा कर पढ़ा और फ़िर एक पर्ची अपने जेब से निकाली फ़िर उसको दी.. उसने पढ़ी.. तो उसमें लिखा था कि कही बाहर मिल सकते है क्या? वह आँखें बंद कर फ़िंगरक्रास करे अंदर ही अंदर प्रार्थना कर रहा था कि मान जाये.. पर वह कोई जवाब देती उसके पहले ही बस स्टॉप आ गया और वो उतर गयी l

वो भी गुस्से में उतरा और घर पहुँचा ही था कि उसे उसकी पेन्टिग याद आई तो वह भागकर छत पर पहुँचा तो देखा वह भी छत पर थी और उसने हाथ के इशारे से मंदिर दिखाया और फ़िर शिव भगवान की फ़ोटो और फ़िर एक पेपर पर 8.45 का टाईम.. उसने भी खुश होकर हाथ से थम्सअप का इशारा किया l उसकी इस जबर्दस्त कोशिश पर और दोनों ही अपनी इस बेसब्री पर पहले तो शर्मिन्दा हुए और फ़िर एक दूसरे की तरफ़ पीठ करके जोर से हँस दिए और जल्दी से नीचे भाग गए l

पाँचवा दिन

वो जल्दी सुबह उठकर मंदिर पहुँच गया और देखा की वह भी आ गई थी तो वह उसे देखकर छिप गया.. उसने देखा कि उसकी नजरें सिर्फ़ उसे ही तलाश रही थी और उसकी बेचैनी देखकर खुशी से उसकी लग रहा था कि धड़कनें रुक जाएगी l वह मुस्कराते हुये छुपते छिपाते उसके करीब पहुँचा तो देखा वह आँखें बंद किए भगवान से शायद उसको ही माँग रही थी, आरती शुरु हो गयी थी और वह भीड़ में खो गया l उधर लड़की को जैसे ही उसके पास होने का एहसास हुआ तो उसने आँखें खोल दी और चारों तरफ देखा तो कोई नहीं था.. वो इससे थोड़ा बेचैन हो गई और बेचैनी में पूजा की थाली के फ़ूल सहलाने लगी तो देखा फ़ूलों के बीच एक पर्ची रखी थी जिस पर लिखा था.. मैं तुमसे अकेले मिलना चाहता हूँ बीच पर ,यदि तुम्हारा जवाब हाँ हो तो नन्दी भगवान पर एक जैस्मिन का फ़ूल रख देना मैं समझ जाऊगा l

लड़की ने कुछ नहीं सोचा, खुशी से दौड़कर गयी और भगवान पर फूल रखा और चली गयी l

उसने जैसे ही यह देखा तो खुशी से नाच उठा और उसके पहले प्यार की पहली निशानी उस फ़ूल को दौड़कर उठा लिया l इस मासूम सी लव स्टोरी का एक गवाह भी था, उस लड़के का दोस्त जिससे लिपटकर वह खुशी से झूम रहा था.. उसने उसे रोकते हुए साईन लैग्वेज में मुस्करा कर पूछा कि जब उससे मिलेगा तो क्या कहेगा.. ये सुनते ही जैसे वक्त थम गया.. उसने तो ये सोचा ही नहीं था कि वह तो बोल और सुन नहीं सकता..क्या वो उसे अपनाएगी

कैसे बतायेगा उसको.. उसकी आँखें डबडबा गयी और भारी कदमों से चलता हुआ चला गया l

वो दोस्त बोला.. जानता था कि यही होगा.. पर तू शायद ये नहीं जानता कि वह भी यही सोच रही होगी l

और मैं ये सब जानते हुए भी तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकता l क्योंकि शायद जानता हूँ कि एकसी कमियों के साथ जिंदगी खुशनुमा नहीं होती हमेशा तीसरे की जरूरत बनी रहेगी l उससे अच्छा है ना कि ये प्यार हमेशा एक खुशनुमा एहसास बनके दिल में जिन्दा रहे l

छठवाँ दिन

जो उनकी जिंदगी में आया ही नहीं और ना ही कभी वो फ़िर छत पर आए l दोनों ही दिल टूटते नहीं देखना चाहते थे शायद ...



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