झरोखें और खिड़कियाँ
झरोखें और खिड़कियाँ


झरोखें होते है राजमहलों में।राजमहलों में रहने वाली राजघराने की स्त्रियों को बाहरी दुनिया देखने के लिए।यूँ ही नही वे खास लोग होते है।
झरोखें हमेशा से ही खिड़कियों से ऊँचे और खूबसूरत डिज़ाइन के होते है।खिड़कियों का वजूद उन झरोखों के सामने कुछ भी नही होता है क्योंकि खिड़कियाँ तो आम लोगों के घरों में पायी जाती है।वह भी हवा और प्रकाश की आमद के लिए बस।
लेकिन अब समय बदल गया है।अब तो न राजे महाराजे रहे और न राजमहल ही।सब कुुुछ खंडहरों में तब्दील हो गए है।अब लोग अतीत के झरोखों में झाँक कर उन खंडहरों को देख राजमहलों की शान का अंदाजा लगा लेते है।
लेकिन खिड़कियाँ?
उनके क्या कहने?
वह तो आज भी उसी तरह से खामोशी से खड़ी है हमारे जैसे आम लोगों के घरों में।हमारे अंदर के संसार को समेटते हुए हमे बाहर की दुनिया दिखाने में मस्त और व्यस्त ......