Preeti Agrawal

Abstract

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Preeti Agrawal

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झगड़े वाला अनोखा प्यार

झगड़े वाला अनोखा प्यार

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"तुमको सौ बार मना किया ना! चलो उठो वहां से"- ऋषि की तेज आवाज से रीना के हाथ रुक गए।

"बस 2 मिनट! 2 मिनट में हो जाएगा"

"मैं तीन तक गिनती गिनता हूं, तब तक तुम नहीं हटीं तो फिर देख लेना"- ऋषि ने धमकी दी।

"हां देख तो रही हूं। अच्छा जरा इधर देखो। हां यहां से भी बहुत अच्छे दिख रहे हो"-  रीना ने शरारत से कहा।

"तुम्हें मजाक सूझ रहा है? मैं सीरियसली बोल रहा हूं"- ऋषि ने आंखें ततेरी।

"ठीक है। मैं अब शाम को खाना नहीं खाऊंगा"- ऋषि ने कहा।

"यह भी कोई बात हुई भला! हम बच्चे हैं क्या कि तुम 3 तक गिनोगे और मुझे वह मानना पड़ेगा"- रीना हंसते हुए बोली।

"अब तुम्हें जो समझना है समझो! तुम्हारा बचपना जाता नहीं है। कितनी बार एक ही बात को समझाना पड़ेगा"- ऋषि नाराज होने लगे।

"अच्छा बाबा बस 2 मिनट! यह हाथ के तो पूरे कर लूं नहीं तो फिर वैसे के वैसे रह जाएंगे"- रीना ने विनती के स्वर में कहा।

"देखो मैं तीन बोल‌ दूंगा ना तो तुम्हें अच्छे से मालूम है क्या होगा। इतने साल हो गए हैं अब तो शादी को। तुम्हें तो मेरा स्वभाव अच्छी तरह से समझ में आ ही जाना चाहिए"- ऋषि अभी भी अपनी जिद पर अड़े थे।

रीना और ऋषि की शादी को 25 साल हो गए पर उनकी लड़ाई बच्चों की लड़ाईयों से कम नहीं होती। धीर-गंभीर स्वभाव वाले ऋषि के प्यार जताने का तरीका ही अलग था। इसी तरह डांट-डपटकर वह उसके काम में मदद  ही करना चाहते थे। शुरू-शुरू में तो रीना को उनके प्यार का यह तरीका समझ ही नहीं आता था। पर धीरे-धीरे वह भी समझने लगी थी और फिर उसी अंदाज में बराबरी से बहस करती। बस उसी तरह की यह एक मीठी सी नोकझोंक उन दोनों के बीच चल रही थी। 


ऐसा नहीं कि उनमें आम पति-पत्नी की तरह रोजमर्रा की सामान्य लड़ाइयां नहीं होती थी। कई बार तो बात रीना की "हां मेरे जैसी सीधी-सादी मिल गई ना इसलिए अपनी दादागिरी दिखाते हो। कोई दूसरी तेजतर्रार मिलती तो पता चलता" से लेकर ऋषि की "अब तो ये सातवां जनम है। अगले जनम से तुम भी फ्री और मैं भी फ्री हो जाऊंगा" तक भी बढ़ जाती थी। फिर कुछ समय बाद ऐसे भी मिल जाते जैसे कोई लड़ाई हुई ही ना हो। वैसे भी शुरू से भले ही खुशियों भरे दिनों में कई बार उनके अहम के टकराव से झगड़े हो भी जाते थे पर जब भी कोई कठिन परिस्थिति आई वो दोनों मजबूती से साथ मिलकर उसका सामना करते थे। 


अचानक ही लॉकडाउन लगने से सारे काम ठप्प हो गए। 24 घंटे चलने वाला ऋषि का ऑफिस भी बंद हो गया। ऋषि और युवा बेटी पलक अब पूरे समय घर में ही होते। घर में कामवाली बाई को भी आने से मना कर दिया था। सारे काम रीना खुद ही करती। ऋषि दो-तीन दिन से देख रहे थे‌ कि रीना की सुबह रोज 6.00 बजे से होती और रात में सोते हुए 12 कैसे बज जाते पता ही नहीं चलता था। अब उन्हें पता चलने लगा कि दिनभर घर में भी बहुत से काम होते हैं। पलक और ऋषि ने घर के कामों में रीना की मदद करनी शुरू कर दी। झाड़ू-पोंछे और साफ-सफाई के साथ ही मशीन में कपड़े धोने का भी काम उन्होंने अपने हाथ में ले लिया। 

महामारी के कारण सब तरफ चिंता और भय का माहौल था। पर रीना इन दोनों के घर में रहने से बहुत खुश थी और नए नए व्यंजन बनाकर, घर में हल्का-फुल्का माहौल रखकर तनाव दूर रखने का प्रयत्न कर रही थी। आपस में वह तीनों काफी अच्छा वक्त बिता रहे थे। 

बहुत हंसी-खुशी से वह कठिन 3 महीने बीत गए।‌ अब लॉकडाउन भी खुल गया था और पलक और ऋषि के अपने  काम शुरू हो गए थे। वे दोनों पहले की तरह ही अब दिनभर व्यस्त रहने लगे पर छुट्टी के दिन झाड़ू-पोंछे और बर्तन मांजने का जिम्मा दोनों ने अपने ऊपर ही लिया हुआ था। 


आज रविवार होने से ऋषि कमरे की साफ-सफाई कर रहे थे और रीना ने किचन में आकर बर्तन मांजने शुरू किए ही थे कि ऋषि आकर नाराज़ होने लगे। 

"वहां से हट रही हो कि नहीं"- ऋषि ने फिर गुस्से से कहा।

"अरे! तुम भी तो काम कर ही रहे थे ना। मुझे इसमें बस 2 ही मिनट लगेगा मुझे। वैसे भी फिर से ऑफिस शुरू हो गए हैं। तुम्हें मुश्किल से एक ही दिन मिलता है छुट्टी का"- रीना ने तेजी से हाथ चलाना शुरू कर दिया।

"1...2…."-  और ऋषि ने गिनती बोलनी शुरू की।

आखिरकार रीना को मन मारकर हटना ही पड़ा। ऋषि इस मामले में बहुत जिद्दी हैं। उसे मालूम है कि अगर वह नहीं हटी तो फिर वो शाम को खाना नहीं खाएंगे।

"अब क्या हो गया तुम दोनों के बीच? फिर शुरू हो गए।  बच्चों जैसे लड़ना बंद करोगे कि नहीं!"- पलक ने बहस की आवाज सुनकर हमेशा की तरह दोनों को डांट लगाई।

"देख ना! तेरे पापा की हमेशा की जिद…"

"अच्छा जिद मैं करता हूं कि तुम करती हो हमेशा!"- ऋषि ने रीना की बात काटते हुए कहा।

"चुप हो जाओ आप दोनों! और अब मुझसे एक-दूसरे की शिकायत कोई नहीं करेगा। अगले साल मेरे बाहर जाने के बाद भगवान जाने आप दोनों का क्या होगा? मुझे तो अभी से चिंता होने लगी है।‌ जरा कुछ तो समझदारी रखो। दोनों हटो!"- पलक ने दोनों को प्यार से डांटा।

"पर बेटा मेरे बर्तन मंज ही गए हैं बस धोने के बाकी हैं। दो ही मिनट लगेगा"-  रीना ने कहा।

"मम्मी जब सबके अपने-अपने काम बंटे हुए हैं तो फिर तुम यह बीच में क्यों लेकर बैठी? दोनों जाओ अपने दूसरे काम करो यह मैं कर लूंगी" पलक ने आदेश के स्वर में कहा।

"चलो भई! अब तो ना तुम्हारी दाल गलने वाली है ना मेरी।‌ हमारी दादी अम्मा का आदेश जो आ गया है"- ऋषि हंसते हुए बोले।और फिर घर में जो तनाव का माहौल बनने‌ जा रहा था वह हमेशा की तरह ठहाकों में बदल गया।इस लॉकडाउन ने तीनों की बॉन्डिंग को और मजबूत कर दिया।‌ पहली बार इतने वक्त तक हर पल साथ में रहने का मौका मिला था। वैसे भी समय के साथ पति-पत्नी के रिश्ते में परिपक्वता आती ही है। एक दूसरे को और अधिक अच्छे से समझते हुए प्यार बढ़ने लगता है साथ ही युवा होते बच्चे एक दोस्त के जैसा व्यवहार करते हुए बड़ों के रोल में आने लगते हैं। 



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