Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win
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Dipesh Kumar

Abstract

4.3  

Dipesh Kumar

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जब सब थम सा गया (सोलहवाँ दिन)

जब सब थम सा गया (सोलहवाँ दिन)

4 mins
233


प्रिय डायरी,

आज के दिन की शुरुआत पढ़ाई के साथ शुरू हुई।साढ़े चार बजे मैं उठ गया और हाथ मुँह धोकर पढ़ने बैठ गया।वैसे तो नींद मुझे अब भी परेशान कर रही थी लेकिन अब पढ़ना जरुरी था।सुबह के साढ़े छः बजे तक पढ़ने के बाद मैं छत पर टहलने के लिए चला गया।टहलते टहलते मेरी नज़र ऊपर रखी दरी पर पड़ी और मैं इसको बिछाकर सूर्य नमस्कार करने लगा।वैसे तो बहुत दिन हो गए थे सूर्य नमस्कार करे हुए।लेकिन मैंने कुछ देर के लिए सूर्य नमस्कार और प्राणायाम किया।इतने मैं सूर्योदय हो रहा था।सच में प्रकृति ईश्वर का सबसे सुंदर उपहार हैं हम सब के लिए।सुबह सुबह सकरात्मक माहौल से मन प्रसन्न हो गया।

कमरे में आकर मैं कुछ देर तक कुर्सी पर बैठ गया।थोड़ी देर बाद नित्य क्रिया करके मैं पूजा पाठ करके घर के अंदर आया तो माँ पूछने लगी कि "नाश्ता निकालूं ?" मैंने कहा थोड़ी देर रुक जाओ रूपेश आता हैं तो हम दोनों साथ में मिलकर नाश्ता करेंगे।रूपेश पास के खेत में गेहूँ देखने गया था ,साथ मैं पिता जी भी गए थे।रूपेश और पिताजी कुछ देर में लौट आये और हमलोग ने नाश्ता किया।फिर मैं अपने कमरे में आ गया।मुझे थोड़ा अजीब सा लग रहा था क्योंकि मैंने समाचार नहीं देखा।खैर कोई नहीं वैसे भी समाचार में कोरोना की खबर ही तो होगी।फिर मैं अपनी किताबों के बीच खो गया।वास्तव में किताबों से अच्छा कोई दोस्त नहीं होता ,क्योंकि ये सिर्फ आपको सुकून देते हैं तकलीफ नहीं।पढ़ते पढ़ते समय का आभास नहीं हुआ और दोपहर के एक बज गए थे।लेकिन आज भोजन के लिए आवाज़ नहीं आई तो मैं सोचा हो सकता मैं पढ़ रहा था ,इसलिए कोई परेशान नहीं करना चाह रहा हो।कुछ देर बाद मुझे एक फ़ोन आया।नंबर अंजान था तो मैंने सोचा किसका नंबर हैं?फिर उठा कर देखा की कौन हैं तो फ़ोन से एक महिला की आवाज़ आती हैं,

"कैन आई टॉक टू दीपेश कुमार?"

मैंने कहा,"यस" और फिर अंग्रेजी भाषा में पंद्रह मिनट तक बात हुई।दरहसल पिछले वर्ष मैंने एक स्कूल में अपना बायोडाटा भेजा था।वही से फ़ोन आया था,वे लोग मुझे अपने स्कूल में अंग्रेजी शिक्षक के रूप में बुलाना चाहते थे।मैंने उन्हें मना किया कि मैं अभी आपके स्कूल में कार्य नहीं कर सकता क्योंकि मैं अपनी नौकरी से खुश हूँ।जैसे ही मैंने फ़ोन रखा और नीचे से आवाज़ आई।

खाना खा लो।मैं बोला,"अच्छा आ रहा हूँ"।मैं नीचे पंहुचा तो देखा चाचाजी अभी अभी अपनी ड्यूटी से आ रहे हैं,रोजाना वो दोपहर बारह बजे तक आ जाते हैं ।लेकिन आज लेट थे ,जब हम सब दोपहर का भोजन ले रहे थे,उसी समय टीवी पर कोरोना संक्रमण की संख्या विश्व के साथ साथ भारत में भी लगातार बढ़ रही थी।चिंताजनक स्थिति चल रही थी।हम लोग यही सोच रहे थे की क्या लॉक डाउन बढ़ेगा क्या?क्योंकि स्तिथि और ख़राब होती जा रही थी।इस बेकार स्तिथि के जिम्मेदार कुछ मुर्ख लोग थे।कुछ देर बाद खबर आती हैं कि ओडिशा के मुख्यमंत्री ने तीस अप्रैल तक ओडिशा में लॉक डाउन घोषित कर दिया हैं।

इससे संकेत मिल चुका था कि अब लॉक डाउन बढ़ने की संभावना ज्यादा हो चुकी हैं।ये सब देख कर मेरा दिमाग खराब हो रहा था,इतने मैं चाचाजी ने टीवी बंद कर दिए और बोलने लगी कि ये खबरें देख कर दिमाग खराब हो गया है। भोजन समाप्त कर मैं ऊपर अपने कमरे में आ गया।दिन प्रतिदिन कोरोना संक्रमण की संख्या और मूर्खो के कारनामो से दिमाग विचिलित हो रहा था,और सोचते सोचते मैं गाने सुनने में लीन हो गया।संगीत दिमाग को संतुलित करने का सबसे बढ़िया साधन हैं।कुछ देर बाद मैं सो गया।चार बजे जब नींद खुली तो कुत्ते भौंक रहे थे।मैं उठकर खिड़की से देखने लगा।तो कोई भी नहीं था।नीचे आकर पानी पीने लगा तो पिताजी कहने लगे चलो कुछ देर के लिए कैरम हो जाये मैंने कहा ठीक हैं।फिर सबने थोड़ी देर के लिए कैरम खेला।

शाम हो रही थी और मैं अपने पेड पोधो को सही करके पानी डालने के बाद कुछ देर रेम्बो को लेकर बाहर घुमाने लगा।इतने मैं पड़ोस के एक भैया जो पुलिस में है,"ड्यूटी पर जा रहे थे,गाड़ी रोक कर मुझसे पूछे,"पिताजी कहाँ हैं आपके?मैंने कहा,"भैया घर पर हैं,कोई काम है तो बताइए?"उन्होंने कहा "अंकल से कहना मुझे कल बैंक में काम है तो मैं ग्यारह बजे आऊंगा?"मैंने कहा,"ठीक हैं भैया मैं बता दूंगा",लेकिन जाते जाते बोले की ज्यादा बाहर रहने की कोशिश मत करो,घर में रहो सुरक्षित रहो।

इसके बाद मैं घर पर आ गया और पिताजी को सारी बात बता दी।शाम की आरती के बाद दादीजी के कमरे में बैठकर लॉक डाउन के आगे बढ़ जाने पर क्या क्या करना हैं ,इस विषय पर बात होने लगी।रात्रि भोजन के बाद मैं छत पर टहल रहा था,कुछ देर बाद जीवन संगिनी जी का फ़ोन आया तो वो भी चिंतित थी कि लॉक डाउन बढ़ेगा तो कितनी परेशानी होगी।फिर सबका हाल चाल पूछने के बाद फ़ोन रख दिया गया।मैं नीचे अपने कमरे में आकर पढ़ने बैठ गया।साढ़े बारह बजे तक पढ़ने के बाद मैंने अपनी आज की कहानी लिखी और बिस्तर पर आकर लेट गया।


लॉक डाउन के खत्म होने की उम्मीद अब काम लग रही थी,लेकिन दूसरों को बचाना है तो खुद को बच कर रहना होगा।यही सोचते सोचते आज का दिन भी समाप्त हो गया।

लेकिन कहानी अभी अगले भाग में जारी है।



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