जैसे को तैसा
जैसे को तैसा
जैसे को तैसा - लघुकथा
"देखा कैसे आज खुद के बिछाए जाल में खुद ही फँस गई है, सही तो है 'जैसी करनी वैसी भरनी', कितनी बार इसको समझाया मनगढ़ंत कहानियां बनाकर दूसरों को तकलीफ में मत डाल, पर इसके कानों पर जूं तक नहीं रेंगी । 'तीस मार खाँ'' समझ रही थी अपने आपको, अब 'कौड़ी का तीन होकर' रह गई है।"
ठोकर खा चुकी सभी सहेलियां सीमा की कलाई खुलने पर उसे आड़े हाथों ले रही थी, क्योंकि सीमा किसी एक के बारे में बाकी के दिमाग में नकारात्मक भरकर चांद पर थूकने का काम कर रही थी।
सभी सखियां सीमा की आंखों में धूल झोंकने वाली प्रवृत्ति को समझ तो रही थी किंतु इस समस्या का समाधान नहीं ढूंढ पा रही थी, लेकिन रवीना इन सबसे हटकर थी।
उसने आज सभी सखियों को साथ लाकर एक-एक कर सबसे सीमा की कही बातों को सीमा के सामने कहने के लिए कहा, ताकि गलत फहमियों का शिकार हो चुकी सखियों के सामने दूध का दूध पानी का पानी हो जाए। अचानक कलाई खुलने पर सीमा का खून सूख गया। चारों खाने चित सीमा बैठकर आठ-आठ आंसू रो रही थी।
जो समय मित्रता को मजबूत करने में लगाना था, सभी मित्रों के आत्मविश्वास को चोट पहुंचाने में गंवा दिया, लेकिन 'अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत।'
डाॅ शैलजा एन भट्टड़