Shailaja Bhattad

Tragedy

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Shailaja Bhattad

Tragedy

संस्कार

संस्कार

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संस्कार- लघुकथा- डाॅ शैलजा एन भट्टड़ 


"सुनिए न आप यह सारा सामान पिताजी के हाथ में दे दीजिए। आज पूरे दिन थकान भरा दिन रहा होगा न, चलो जल्दी थाली लगाती हूं, आपकी पसंद का खाना बनाया है।"

 नेहा अपने पति से अपने गांव से आए  पिताजी के सामने बात कर रही थी।

 "अरे! आपने सामान अभी तक पिताजी को नहीं दिया।"

 "नेहा वो तुम्हारे पिताजी है कोई घर के नौकर नहीं, यही सम्मान है तुम्हारे मन में अपने पिताजी के प्रति। बच्चे भी देख रहे हैं। आज से बीस साल बाद मेरे साथ भी यही सब देखने के लिए तैयार रहना,  फिर न कहना हमारे बच्चे बदल गए हैं। अपने माता-पिता का सम्मान करना भूल गए हैं जैसे आज तुम भूल गई हो।"

 "अरे बेटा कोई बात नहीं बच्ची है अभी।"

 बात को संभालते हुए पिताजी ने कहा।

"पिताजी यह तो आपका बड़प्पन है। आपका बेटी के प्रति एक तरफा प्यार है। लेकिन आपकी बेटी के आपके प्रति व्यवहार में न तो प्यार है और ना ही सम्मान की लेश मात्र भी कोई झलक है। कई दिनों से देख रहा हूं लेकिन आज पानी सर से ऊपर जा चुका है।"

 अर्पण का गुस्सा अब सातवें आसमान पर था। 

नेहा ग्लानि भाव से नज़रे झुकाए खड़ी थी।

" बेहतर होगा अगर तुम तुरंत पिताजी से माफी मांगो और उन्हें ससम्मान घर लेकर चलो। वैसे तुम पिताजी को नीचे सामान उठाने के लिए ही लेकर आई थी न?  धिक्कार है तुम पर जो अपने माता-पिता का सम्मान नहीं करती वह मेरे माता-पिता को क्या सम्मान देगी। जो अपने माता-पिता की न हो सकी वह मेरी क्या होगी।

यह सब कृत्रिमता है, पाश्चात्य संस्कृति का कुप्रभाव । हमारे संबंधों की नींव हमारे माता-पिता है। अगर वह कमजोर हो गई तो हो सकता है हमारे संबंधों में दरार  आ जाए।


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