Shailaja Bhattad

Inspirational

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Shailaja Bhattad

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मैं हूँ

मैं हूँ

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"कितने रुपए का बिल बना? नीता।" 

"एक हजार रुपये का माँ।" 

 "क्या? इतना कम कैसे, पचास प्रतिशत छूट चल रही है क्या ? दिखाना तो जरा।" नीता के हाथ से बिल लेते हुए सुनीता ने आश्चर्य भाव से पूछा। 

 "अरे ! बिल में घी के पैसे तो जोड़े ही नहीं है।" बिल को देखकर चौंकते हुए सुनीता ने कहा । "दिखाओ मां, अरे हां, उन लोगों ने घी बिल किए बिना ही दे दिया, अभी जाकर का बिल करवा लाती हूं।" कहकर नीता स्टोर के लिए निकल गई।

"कितने लापरवाह हैं ये लोग।" सुनीता ने आश्चर्य से कहा।

"भैय्या बिल को ध्यान से देखकर बताइए क्या इसमें घी के पैसे जोड़े गए हैं?" नीता ने स्टोर मैनेजर से पूछा।

 "नहीं, बिल्कुल नहीं। नीता ने पूरी बात बताकर घी का बिल बनाने के लिए कहा।

आश्चर्य मिश्रित ख़ुशी के साथ स्टोर मैनेजर ने नीता का धन्यवाद किया और कहा- "विश्वास नहीं होता कि आज भी ईमानदारी मौजूद है।"

"ईमानदारी तो सबमें है महोदय । मैल की परतों ने उसे ढँक भर दिया है।"

"सही कहा आपने। "


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