The Stamp Paper Scam, Real Story by Jayant Tinaikar, on Telgi's takedown & unveiling the scam of ₹30,000 Cr. READ NOW
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Dr Jogender Singh(jogi)

Abstract

4.3  

Dr Jogender Singh(jogi)

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जादूगर

जादूगर

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बड़ी बड़ी खिचड़ी मूछें, सफ़ेद ज़्यादा। सांवला रंग । कमज़ोर बदन, दुबले से कुछ ऊपर । कड़क भारी आवाज़ । स्लेटी रंग का कुर्ता पायजामा , माथे पर काला तिलक। कभी कभी तिलक का रंग लाल हो जाता, पर कुर्ता पायजामा एकदम फिक्स स्लेटी। चाहे शादी हो , तेहरवीं हो , कीर्तन हो , मंदिर में पूजा हो या सतनारायण की कथा। मंगल सिंह का पहनावा एक ही रहता। बच्चे डरते थे मंगल सिंह से। लोग कहते हैं वो काला जादू जानता है। "काली माता भी सिद्ध है , मंगलू को , तभी तो काला टीका लगाता है '' दादी बोली।

बर्मन गांव में एक शादी से वापिस आ रहे ,हम सब। ग्यारह लोग। प्रीतम चाचा, भांगु चाचा , जीत सिंह , सुरेन्द्र, नंटा , भगवंत , किशोर, संता, छोटे दादा और मैं। छतरी (लंबी डंडी का फुल लेंथ छाता) कुर्ते के पीछे वाले हिस्से में लटकाए मंगल सिंह और छोटे दादा आगे आगे चल रहे हैं, बाकी सब एक लाइन में उनके पीछे पीछे। पहाड़ी पगडंडी पर अगल/बगल दो लोग नहीं चल सकते। बड़े लोग ही छतरी रखने का आनंद ले सकते हैं। हम किशोरों को इस तरह की कोई सुविधा उपलब्ध नहीं । ना ही हम लोग छाते को संभालने की ज़िम्मेदारी लेना चाहते। शादी के बाद , थके /हारे सभी जल्दी से अपने घर पंहुचना चाहते। "हम लोग तेज़ चल सकते हैं'' सुरेन्द्र बोला।

"बात तो सही है, पर इतने पतले से रास्ते में दो बूढ़ों को कैसे क्रॉस करोगे । जैसे ही आगे निकालोगे डांट पड़ेगी।" भगवंत बोला। "बात तो सही कह रहे हो!  चार किलोमीटर का पहाड़ी रास्ता , जंगली जानवर कम हो गए हैं, फिर भी पहाड़ी तेंदुए कभी कभार दिख जाते। चार किलोमीटर का पूरा रास्ता निर्जन है। बस कुछ ग्वालों को छोड़ कर , वो भी अपने अपने घरों की तरफ़ चल दिए होंगे। ऊबड़/खाबड़ , ऊंचे/नीचे , कंकड़ पत्थर से भरी पगडंडी पर चलना , आसान नहीं । दो फुट चौड़ा रास्ता , दोनों तरफ चीड़ के पेड़, खजूर , कांगु , कारोंदे उगे हुए। दोनों बुजुर्गों और दो मर्दों के साथ सात किशोर ।

शाम के पांच बजे हम लोग बर्मन छोड़ चुके हैं। पहले लगभग पौना किलोमीटर की चड़ाई, रास्ता भी ठीक है, । "सुनो लड़कों ! साथ साथ चलना , रास्ता भटक जाओगे" , मंगलू दादा अपनी गंभीर आवाज़ में बोले। "ठीक है" , कोई पीछे से बोला। "और भूत /चुड़ैल भी मिल सकते हैं, अपनी आवाज़ को और भारी कर बोले।"

" तुम हो ना साथ में भूतों के भूत" छोटे दादा बोले।

" हां वो तो ठीक है इसलिए बोल रहा हूं , साथ साथ ही चलना।" कोई कोई पत्थर पैर से टकरा कर लुढक जाता, थोड़ी देर पत्थर गिरने की आवाज़ फिर सब शांत। चिड़ियां अपने अपने घरों को लौट रही हैं। पौना किलोमीटर के सफ़र तक बर्मन गांव दिखाई देता रहा। उसके बाद हलकी सी उतराई । सामने सूखी पहाड़ी नदी , नाममात्र का पानी। संभल कर आना , मुर्दे जलाए जाते हैं नदी किनारे। सूरज डूबने को है, रोएं खड़े हो गए। नदी वाला हिस्सा चुपचाप पार किया गया। इसके बाद एक किलोमीटर का एकदम खड़ा रास्ता । कोई बस्ती नहीं, जल्दी जल्दी करते भी आधा घंटा लग गया । खड़ा रास्ता ख़तम होते ही , सब बैठ गए , बड़े पत्थरों पर , पेड़ के ठूंठ पर या घास पर।

दादा जादू /वादू कुछ नहीं होता जीत सिंह मंगलू दादा से बोला । देखोगे जादू , मंगलू मुस्कराकर बोले। हां , हां ! दिखाओ । आओ सब लोग पास में। मंगलू दादा ने जेब से सरसों के दाने (झाड़/भूंक करने के लिए अपनी जेब में अक्सर रखते थे) निकाल कर हथेली पर रखे, कुछ मंत्र , बुदबुदा कर फूंक मारी ।अरे ! यह क्या , सरसों के दानों से सरसों का पौधा निकल आया, पीले फूल , हरी पत्तियां । सब अवाक देख रहे , अलपक। मंगलू दादा ने एक फूंक मारी , पौधा गायब। "इसे कहते हैं हथेली पर सरसों उगाना", हंसते हुए बोले। डर के मारे बुरा हाल हो गया । अब कोई भी पीछे चलने को तैयार नहीं हुआ। उसके बाद का रास्ता चुपचाप पूरा किया।

मंगलू दादा जब भी दिख जाते, पूछते जादू देखोगे? हम लोग इधर उधर भाग जाते। पता नहीं तोता बना दिया जादू से तो उड़ते फिरेंगे जंगल/जंगल।


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