जादू
जादू
"हा हा हा... यहाँ और वहाँ, जहाँ-जहाँ जिसे दशकों वर्ष पू्र्व तुमने देखा था, वो मैं ही था! जिसे तुम आज देख रहे हो, वो मैं ही हूँ और आगे जो देखोगे वो भी... हा हा हा ! जो हो चुका, वो मैं ही था! जो आज हो रहा है, वो मैं ही हूँ.... और जो आगे होने वाला है.. वो भी.... हा हा हा!" अपनी पहिये वाली भव्य कुर्सी तीन सौ साठ डिग्रीय घुमाते हुए उसने अट्टहास करते हुऐ देश के पांचों स्तंभों से कहा, "मैं 'जादू' हूँ! ... जादू ही तो नाम है मेरा!"
देश के चारों स्तंभों सहित जनता के पाँचवें स्तंभ का एक अहम किंतु कमज़ोर हिस्सा भी भौचक्का सा अट्टहास करते उस 'जादू' को देख रहा था, सुन रहा था; मन ही मन घुट रहा था। लेकिन उसका एक बड़ा हिस्सा दूना अट्टहास करते हुए रटे हुए स्लोगन दोहरा रहा था।
"... हाँ, जादू ही तो हो तुम जिसने चमत्कार किये और दिखाये... किसी आपदा में भी न छोड़ा तुमने! बस, इतना बता दो
कि जादूगर कौन है? तुम्हारे आक़ा कौन हैं, जिनके इशारों पर तुम ये सब जादुई या सर्कस के करतब से कारनामों को बख़ूबी अंजाम दे पाते हो!" पाँचवें स्तंभ का वह कमज़ोर हिस्सा आँखें फाड़कर बोला।
" हे हे हे... क्यों मज़ाक करते हो! जानते तो हो... बाज़ीगर, सौदागर और तमाम अवसरवादी सितमगर... सभी तो हैं अपने देश में जादूगर!" जादू ने अबकी बार अधिक गंभीर स्वर में कहा।
"सितमगर! क्या तुम पर भी सितम?" पाँचों स्तंभ एक साथ बोल पड़े।
"सितम मुझ पर! हा हा हा... मेरे ज़रिए अपने देश के स्तंभों पर सितम, क्योंकि तुम सभी स्तंभों को जादू ही तो बना दिया गया है! मैं ही स्तंभ हूँ... मैं ही जादू हूँ !"
"तो क्या अब यह देश ऐसे ही चलेगा ?"
"नहीं, यह तुम्हें आकार-प्रकार देने वाली जनता ही तय करेगी ? लोकतांत्रिक जनता का समग्र जादू अभी बाक़ी है!" जादू ने पाँचवें स्तंभ को दूर से निहारते हुए कहा।