Shailaja Bhattad

Abstract

4.5  

Shailaja Bhattad

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इंसानियत

इंसानियत

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सहायक- "साहब लगता है, सबने अपने-अपने धर्म ग्रंथों को पढ़कर, अच्छे से समझा है, तभी देखिए न, आपका एक भी हथकंडा काम नहीं कर रहा है, आपने अराजकता का खाद-पानी डालकर, नफरत का बीज बोया, लेकिन फिर भी जातिवाद का पौधा नहीं पनपा। मुझे लगता है साहब, अब आपकी दाल नहीं गलने की, क्योंकि आज के भारत और गुलाम भारत में जमीन आसमान का अंतर आ गया है। पहले भी सभी अपने धर्म को श्रेष्ठ बताना चाहते थे, और आज भी, लेकिन मार्ग बदल चुका है। सभी अच्छे से जान चुके हैं, कि उनका धर्म अहिंसावादी है। पारस्परिक प्रेम-सौहार्द्र को ही उच्चतम स्थान पर रखता है, अतः इन सब गुणों को अपनाकर ही वे अपने धर्म की श्रेष्ठता को साबित कर सकते हैं।

साहब: "कितना उपदेश दे रहा है"।

सहायक: "कह लेने दीजिये साहब", इनको देखकर लगता है, कि सबका धर्म एक ही है और वह है "इंसानियत"। 

आपके कहे अनुसार मैंने मंदिर और मस्जिद के सामने गंदगी तो फैला दी...."

साहब: "चुपकर , सबको बताएगा क्या"?

सहायक: "नहीं साहब, अब नहीं, अब आपको सच्चाई पता होनी चाहिए। अब तो मेरी अंतरात्मा भी मुझे धिक्कार रही है।

 हाँ तो साहब, आपके कहे अनुसार मैंने मंदिर और मस्जिद के सामने गंदगी तो फैला दी.

लेकिन फिर भी हिंदू, मुसलमान ने एक दूसरे पर शक करने में अपना वक्त जाया करने की बजाय, हिंदू ने मस्जिद और मुस्लिम ने मंदिर साफ कर दिया, फिर सब अपने-अपने काम में ऐसे लग गए जैसे कुछ हुआ ही न हो।

 जब आपने मुझे हिंदू, मुसलमान को एक दूसरे के खिलाफ भड़काने...."

साहब: "लगता है, तू मुझे जेल भिजवाकर ही मानेगा"।

सहायक: "नहीं साहब, अब आप भी इनके रंग में रंग जाईए, शान्ति का सुख भोगिए । तो साहब, जब आपने मुझे हिंदू, मुसलमान को एक दूसरे के खिलाफ भड़काने के लिए कहा, तो दोनों कौमों के लोग मेरी बातें सुनकर हंसते हुए ऐसे आगे बढ़ गए, मानो मैंने उन्हें कोई चुटकुला सुना दिया हो।

 साहब, मेरा कहना मान लीजिए, आप भी अब अपने काम पर लग जाइए, क्योंकि आपने जितने भी गड्ढे खोदे, उसमें दोनों कौमोँ ने कहीं तालाब तो, कहीं कुआं बना लिया, सभी बड़े सुख से रह रहे हैं। माफ करना साहब छोटा मुंह बड़ी बात, लेकिन अब आप भी दूसरों की खुशी में खुश रहना सीख लीजिए"।

साहब विभिन्न भावों का मिलजुला मिश्रण लेकर, निरूत्तर अपने सहायक को देखते रह गए, फिर चेहरे पर हल्की-सी मुस्कान बिखेरी और चले गये।

"साहब क्या सोचा है आपने" ?- पीछे से सवाल करते हुए सहायक।


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