इंद्रधनुष
इंद्रधनुष


आज मेरी ख़ुशी का ठिकाना नहीं था। स्कूल द्वारा आयोजित विज्ञान प्रदर्शनी में मेरे द्वारा बनाये गये अंतरिक्ष यान के मॉडल को प्रथम पुरस्कार मिला था।
मैं अपनी ट्राफी लेकर, पसीने से तर भागता हुआ घर के अन्दर घुसा-
"मम्मी! देखो मेरे हाथ में क्या है? वो जो साइंस मॉडल मैं सुबह लेकर गया था ना, हाँ वही जिसे एक महीने से बना रहा था, उसे विज्ञान प्रदर्शनी में प्रथम पुरस्कार मिला है।"
मैं उछल-उछल कर सबको ये ट्राफी दिखा रहा था।
अचानक मुझे महसूस हुआ की घरवालों का ध्यान मुझसे ज्यादा टेलीविज़न पर था।
मैं भी ध्यान से टीवी में दिखाई जा रही न्यूज़ देखने लगा।
न्यूज़ एंकर के उन शब्दों को मेरा पूरा परिवार बड़े ध्यान से सुन रहा था-
"आज अंतरिक्ष मिशन पूरा कर के वापस लौट रहा नासा का कोलंबिया विमान पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करते समय किसी तकनीकी गड़बड़ी का शिकार हो गया।"
समाचार में दिखाई जा रही जीवंत तस्वीरें विचलित करने वाली थीं।विमान के परखच्चे उड़ चुके थे और उसके अवशेष अमेरिका के टेक्सास शहर के ऊपर बरस रहे थे।
थोड़ी देर बाद खबर चली की इस हादसे
में भारत की कल्पना चावला समेत ७ अंतरिक्ष यात्रियों की मृत्यु हो गयी।
अभी कुछ समय पहले मेरे द्वारा देखे जाने वाले सपने धूमिल होने लगे। अपने अंतरिक्षयान पर मैं भी वायुमंडल के उस पार की दुनिया देखने के सपने संजोने लगा था।
मैं कुछ सोच ही रहा था की इतने में नीले आसमान पर काले मेघों की परत छा गयी।जोर-जोर से बिजली कड़कने लगी और रिमझिम बारिश की फुहारें सूखी धरती की गोद में ओझल होने लगीं।
मैंने खिड़की से झाँककर खुले आसमान की ओर देखा !
एक बड़ा सा इन्द्रधनुष जैसे पूरे आसमान को अपने आगोश में समेट रहा था। अचानक से मुझे उन सात जुगनुओं की याद आ गयी जो कुछ क्षण पहले ही अपनी आखिरी उड़ान भरकर किसी दूसरे संसार को जगमगाने जा रहे थे और इस संसार को उस इन्द्रधनुष के रूप में अलविदा कह रहे थेl
समाचार की हेडलाइंस में कल्पना के आखिरी शब्द चल रहे थे, "मैं अंतरिक्ष के लिए ही बनी हूँ, हर पल अंतरिक्ष के लिए बिताया और इसी के लिए मरूँगी"
मैं डर गया था लेकिन कल्पना के ये शब्द मेरे डर पर भारी पड़े, मैंने उसी क्षण निश्चय किया कि अब मैं अंतरिक्ष यात्री ही बनूँगा...।