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Devaram Bishnoi

Abstract

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Devaram Bishnoi

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"घर परिवार में ईज्ज़त हों"

"घर परिवार में ईज्ज़त हों"

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इंसान की ईज्ज़त वहां होनी चाहिए।

जहां पर वह सदैव रहता है।

जिस व्यवसाय नौकरी पैशा समाज का व्यक्ति है।

इंसान कि ईज्ज़त प्रतिष्ठा उसके व्यवसाय नौकरी 

पैशा समाज बंधुओं मेंअहम है।

इंसान के घर परिवार समाज बंधुओं के 

बीच समन्वय स्थापित हो।

जो इंसान घर परिवार समाज बंधुओं में 

प्रतिष्ठित नहीं होना चाहता।

जो भी इंसान अन्यत्र प्रतिष्ठा बढ़ायें।

वह इंसान सबसे घटिया निच सोच का होता है।

क्योंकि जो स्वयं के घर परिवार 

व्यवसाय नौकरी पैशा समाज बंधुओं 

का नहीं हो सकता है।

वह इंसान हमारा किसी का कभी नहीं हो सकता है।

जो सामाजिक भाईचारा कायम रखने में

 विश्वास नहीं रखता हैं।

ऐसा इंसान कभी विश्वास करने लायक नहीं होता हैं

ऐसा इंसान सदैव सिर्फ़ स्वार्थी होता है।



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