manish shukla

Abstract Comedy Drama

4.5  

manish shukla

Abstract Comedy Drama

होली में खूब खेला होबे !

होली में खूब खेला होबे !

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होली में हर बार यूं तो होली के होरियारे आते हैं, फाग गाते हैं । गुजिया खाते खिलाते हैं। ठंडाई से प्यास बुझाते हैं पर इस बार की होली खास है। क्योंकि करोना की नई वाली बेव यानी लहर भी साथ है। पीएम से लेकर डीएम तक के निर्देश के बावजूद नाक की जगह मुंह पर मास्क है। सोशल डिस्टेन्सिंग का एक बार फिर उड़ा मज़ाक है। फिर भी रंगों की ऐसी बौछार है कि चुनर वाली के भीगने की आस है। 

चूंकि इस बार अखबार से लेकर तेज तर्रार चैनलों तक बंगाल चर्चा आम है तो हम भी यूपी में खेलेंगे बंगाली होली। इस होली में दीदी और दादा दोनों से राजनीति के सतरंगी रंगो रचेगा खेला।

इस खेला हम आपको मिलवाएँगे ऐसे मेहमान से, जो कहने को नेता हैं लेकिन दिखने में मिथुन दा की तरह 80 के अभिनेता है। वो हुड़दंग भी करते हैं तो उसमें भी खेला हो जाता है। वो “रबिश टॉक” करते हैं पर पूरी मर्यादा के साथ। राजनीति के रंगों के इतने बड़े खिलाड़ी हैं कि हर जगह अपनी टांग अड़ाते रहते हैं। फिर चाहे टांग टूट ही क्यों न जाए। आइये खत्म करते हैं इंतजार। बुलाते हैं खेला विशेषज्ञ का। जो रंग और भंग के साथ अपने आरोपों की पिचकारी भी चलाएंगे। और विरोधियों पर कीचड़ भी उछालेंगे। दादा की होली में कौन रंग लगवाता है और कौन- कौन बच पाता है... ये देखते हैं नाटक होली में हर्बल खेला होबे !!

एंकर: स्वागत करते हैं अभिनेता टर्न नेता का, दादा खूब स्वागत है आपका। 

 दादा : अमी तुमाके भालो वासी इसीलिए हम होली में तुम्हारे लिए बंगाल से सोनदेश लेकर आया है। 

एंकर : वाह क्या बात है दादा! किसका संदेश है...

दादा : तुमि कि बोलबे, संदेश नहीं॥ मिष्टि सोनदेश होबे। बोले तो मिठाई!

एंकर : होली में तो गुजिया खाने- खिलाने का चलन है।

दादा : की बोलची तुम! गुजिया तो बाहरी मिठाई है। सोनदेश बंगाल की मिष्टि होबे। बंगाल में सब बाहरी आ रहा है लेकिन अब हम बाहरी मिठाई को खाने नहीं देगा। बिलकुल नहीं !

एंकर : ओके दादा! कूल डाउन, गुजिया हो या संदेश मतलब तो मुंह मीठा करने से है। 

तभी एंकर दादा की ओर रंग लगाने के लिए उठता है और दादा उसे अपने करीब आता देख भड़क जाते हैं। 

दादा : ई क्या करता तुम! हम पर हमला करता है। ई नाई चोलबे।

एंकर : अरे रंग लगा रहा हूँ!

दादा : मतलब हमारे मुंह को काला करने की तुमने साजिश करता है। पहले लोगो ने मेरा पैर तोड़ा, अब मुंह पर हमला। हम सुप्रीम कोर्ट जाएगा, आयोग में घसीटेगा तुमको। तुम्हारा नाटक बंद करवा देगा। हम माँ, माटी और मानुष पर हमला नहीं होने देगा। ‘नेवर’! 

एंकर : दादा ये हमला नहीं हर्बल कलर है। थोड़ा- थोड़ा ही लगाऊंगा।

दादा : ठीक है। बट ओनली यू... लेकिन ये अड्डा, बड्डा, लड्डा, मड्डा... से हम रंग नहीं लगाएगा... वरना खेला होबे... 

एंकर दादा के गालों पर रंग लाकर होली की शुरुआत करता है

एंकर : दादा इस बार होली को लेकर आपने कोई खास तैयारी की है।

दादा : इस बार खेला होबे, खूब जम के खेला होबे। पिछले साल तो करोना ने रंग में भंग डाल दिया था। होली के जश्न के बीच ही लॉक डाउन लग गया। हम भीड़ में होली खेलने चला गया था तो पुलिस ने हम पर जुर्माना ठोंक दिया था। फिर जबर्दस्ती आइसोलेशन में डाल दिया था। पर इस बार करोना की वैक्सीन आ गया है। अब जमके खेला होबे। । 

एंकर : लेकिन करोना तो अब भी मौजूद है। उसका नया वेरिएंट बहुत खतरनाक है। सरकार ने अब भी प्रोटोकाल का सख्ती से पालन करने को कहा है। आप भी अपना मास्क ठोड़ी से हटाकर नाक पर लगाइये। 

दादा : देखो अभी हम यूथ है। जब हमारा नंबर आएगा तो हम तो दवाई भी लेगा और सोशल डिस्टेन्सिंग के साथ होली भी खेलेगा।

एंकर : दादा आप पर आरोप है कि पिछले दस सालों में आपने होली का रंग फीका कर दिया है। जिसको चाहते हैं रंग लगा देते हैं और जिसको चाहा होली खेलने से रोक देते हैं। पिछले साल आपने होली पूजा और दहन पर रोक लगा दी थी। जिसके बाद लोगों कोर्ट जाकर पूजा की अनुमति लेनी पड़ी।

दादा : ये झूठा आरोप है। देखो हम होली खेल रहा है कि नहीं (दादा फिर गुलाल उड़ाते हैं) ये बाहरी लोग क्या जाने कि होली का खेला की होबे। ये विपक्षी लोग केवल डुम्बा- डुम्बा, बुम्बा- बुम्बा, थुंबा- थुंबा ... करता है। ये लोग हम लोगों को रंग लगाने के बाद भाग जाएगा लेकिन हम यहीं रहेगा। और अगली बार भी होली खेलगा तुम्हारे साथ। 

एंकर : दादा ओ दादा... दादा ओ दादा, विपक्ष बोलता है तुम भ्रष्टाचार करता है। आपका भांजा सबसे होली का चंदा मांगता है। फिर अपने रिश्तेदारों में चंदा बाँट देता है। वो लोगों को मिलावटी रंग लगाता है। सिंडीकेट बनाता है। कमीशनबाजी करता, कटमनी बनाता है। आप लोग टोलाबाजी करता है।

दादा : ये साजिश है विरोधियों की, हम लोगों को बदनाम करने की। हम लोग तो हर्बल कलर का इस्तेमाल करता है। भांजा केवल फूलों के रंग से होली खेलता है, जितना टोलाबाज़, भ्रष्टाचारी, कमीशनखोर था। सब कोई विपक्ष के साथ हो गया है। वो लोग मिलावटी रंग लगाता है। “ फूल वाला रंग डालने की बात करता है पर कीचड़ से होली खेलता है । ई नाई चोलबे। इस बार जमकर खेला होबे।

एंकर : दादा, लेकिन फूल तो आप भी दिखाता है। आप पर आरोप है कि आप केवल एक खास वर्ग के लोगों और बाहर के घुसपैठ कर होली खेलने वालों को फूलों वाला हर्बल रंग लगाते हैं लेकिन जय जय बोलने वालों पर ठंडा पानी डाल देते हैं।

दादा : देखो! हम होली में रंग भी लगाता है। चालीसा का पाठ भी करता है और जय जय भी बोलता है लेकिन जो लोग हमको चिढ़ाता है, हम केवल उन पर ठंडा पानी डालता है।

एंकर : जो लोग आपका रंग नहीं लगाते हैं। आप उनसे लड़ते हैं, होली के त्योहार में उनके घर के बाहर पटाखे फोड़ आते हैं। उनका मुंह भी काला कर देते हैं। इस बार भी आपने दूसरे लोगों के साथ यही किया।

दादा : हमको देख के लगता है, हम किसी से लड़ाई करेगा। हम तो प्यार से रंग लगाता है, लड़ाई झगड़ा विरोधी लोग करता है। हमको बदनाम करने के लिए वो लोग खुद ही पहले अपना मुंह काला करता है, फिर खुद ही पटाखा फोड़ लेता है। 

एंकर: लोग तो यहाँ तक बोल रहे हैं कि रंग खेलने के बाद आप लोग गायब हो जाओगे। फिर लोगों के घर अंदर और बाहर आप का फेंका रंग लगा रहेगा और वो रंग निकाल ही नहीं पाएंगे। 

राकेट शटर्जी : तुम एंकर होकर बाहर से ‘पान मसाला’ खाकर आने वालों की बातों के चक्कर में कहाँ पड़े हो। वही लोग गुटखा खाकर अपने मुंह कि पिचकारी से सबका घर गंदा करता है। देखना दो मई के बाद ये सब वापस भाग जाएगा। लेकिन हम यहीं रहेगा और उनके घरों की पहले की तरह “सफाई” करता रहेगा।

ये सुनकर एंकर हाथ जोड़कर खड़ा हो जाता है। हम उम्मीद करते हैं कि दादा का खेला जारी रहे, वो अपने विरोधियों पर भरी रहे, सबको रंग लगाए और बाद में सबके घर और चेहरों कि सफाई कर एक बार फिर नए लुक में आएँ। जय यूपी, जय बंगाल!!



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