manish shukla

Inspirational

5.0  

manish shukla

Inspirational

उम्मीदों का चौका

उम्मीदों का चौका

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“कुछ ज्यादा ही छूट नहीं दे दी है बेटा तुमने... बिन माँ की बेटी है तो खुल्ले सांड की तरह घूमेगी, जो मन में आएगा और तुम उसको करने दोगे। अब तो बल्ला भी पकड़ लिया है। छोकरी होकर छोरों का खेल खेलने लगी है। न मेरी सुनती है, न ही तुम्हारी बातों पर ध्यान देती है। बस, दिन भर इधर से उधर घूमा करती है। कान खींच दो उसके, अभी भी वक्त है। फिर न कहना कि लड़की हाथ से निकल गई।“

सर्दी के मौसम में आँगन में पड़ी चारपाई पर बैठकर गुनगुनी धूप सेंक रही मिश्रा जी की माताजी उनको देखते ही भड़क उठी। वो जवान हो रही अदिति की बिंदास आदतों से काफी नाखुश थीं। अदिति की माँ का देहांत बचपन में ही हो गया था लेकिन मिश्रा जी ने उसको बड़े ही लाड़ से पाला। कभी भी ये अहसास नहीं होने दिया कि वो किसी भी मायने में लड़कों से कम है। हालांकि मिश्रा जी की माताजी को लोकलाज और समाज की चिंता हर समय सताती थी। वो जानती थी कि पुरातनपंथी मध्यम वर्गीय समाज अदिति के इस रूप को स्वीकार नहीं करेगा।

वो चाहती थीं अदिति लड़कियों की तरह व्यवहार करे और घर का कामकाज सीखकर अपनी ससुराल जाए। इसीलिए बार- बार मिश्रा जी को टोका करती थीं कि वो अपनी लड़की पर लगाम लगाएँ। मिश्रा जी भी अपनी माँ के रोज- रोज के तानों से तंग आ चुके थे। वो आँगन से ही खड़े होकर छत की ओर देखते हुए चिल्लाए, अदिति... अदिति।

“अरे! घर पर हो तो सुने, वो तो सुबह ही बल्ला लेकर निकल गई थी। ग्राउंड में हुड़दंग कर रही होगी। तुम्हारी सुनती कहाँ है...” माँ ने एकबार फिर मिश्रा जी को ताना मारा।

“ठीक है माँ आज मैं अदिति को ‘ठीक’ करके ही लौटूँगा। आज से उसकी मनमानी बिल्कुल बंद हो जाएगी।“

गुस्से से भरे मिश्रा जी बाइक निकालकर ग्राउंड की ओर निकल गए। माँ आँगन से ही चिल्लाई, “देखो बेटा जवान लड़की को सबके सामने मारना नहीं, चुपचाप घर ले आना, फिर उसको समझाना।“

मिश्रा जी माँ की बातों को अनसुना कर तमतमाते हुए ग्राउंड पहुँच गए। यहाँ पर ग्राउंड में स्टार इलेवन बनाम गोमती क्लब के बीच मैच चल रहा था। अदिति मैच खेल रही थी इसलिए मिश्रा जी चुपचाप पवेलियन में जाकर बैठ गए। इत्तेफाफ से इसी समय अदिति गोमती क्लब से बैटिंग कर रही थी और जीत के लिए आखिरी ओवर में 24 रनों की जरूरत थी। इधर अदिति के हाथ में बैट था तो सामने से स्टार एलेवन का सर्वश्रेष्ठ बालर गेंद फेंकने की तैयारी कर रहा था। लगभग नामुकिन सी लग रही जीत को हासिल करने के लिए अदिति ने अपना बैट घुमाया और देखते ही देखते लगातार पाँच चौके मारकर मैच का रुख अपनी टीम की ओर मोड़ दिया। मिश्रा जी, अदिति की बैटिंग देखकर अपनी यादों की दुनियाँ में खो गए। उनको भी अपनी जवानी के दिन याद आ गए, जब वो अपने शहर के सबसे धाकड़ बल्लेबाज माने जाते थे। लोग उनको लिटिल मास्टर कहकर बुलाते थे लेकिन मध्यम वर्गीय समाज में जन्म लेने के कारण उनको अपना सपना पूरा करने का अधिकार नहीं था। उनके घर वालों ने पहले ही मिश्रा जी का करियर चुन लिया था।

वो एक सरकारी नौकरी तक सीमित था। माँ, बाप के दबाव के आगे वो क्रिकेट को अपना करियर नहीं बना पाए। वो चाहकर भी सुनील गावस्कर नहीं बन सके। उनका सपना पुरातनपंथी सोच ने पूरा नहीं होने दिया। अब उनकी बेटी की बारी थी और अदिति के सपने के रास्ते में वो खुद रोड़ा बनकर खड़े थे। वो और उनकी माँ दोनों ही अच्छे खानदान में अदिति की शादी का सपना देख रहे थे। वो नहीं चाहते थे कि अदिति को जीवन में कोई संघर्ष करना पड़े और समाज उस पर उंगली उठाए। तभी अदिति ने आखिरी बाल पर ‘उम्मीदों का चौका’ जड़कर अपनी टीम को जीत दिला दी। अदिति की पूरी टीम मैदान में आ गई थी जश्न मनाने के लिए। सबने उसको कंधों पर उठाकर ग्राउंड का चक्कर लगाया। मिश्रा जी को बेटी की जीत में अपना बिता हुआ कल नज़र आने लगा। मानों उन्होने ही जीत दिलाई हो। मिश्रा जी ही लोगों के कंधों पर सवारी कर रहे हों।

अपनी बेटी का ये सम्मान देखकर वो गदगद थे। तभी अदिति दौड़ती हुई आई और उनके सीने से चिपक गई। उसने बताया कि ये मैच देखने के लिए राज्य की टीम के चयनकर्ता भी आए हैं। उसको उम्मीद है कि अब वो भी राज्य स्तरीय टीम के लिए चुन ली जाएगी। अदिति की बात सुनते ही मिश्रा जी का गुस्सा उड़न- छू हो गया। अदिति के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा... “बेटा, मैं तो अपने सपने पूरे नहीं कर सका लेकिन अब तुम्हारे पंख नहीं बांधूगा... जाओ और जी भर सपनों की उड़ान भरो और अपनी उम्मीदों को पूरा कर लो।“

दोनों बाइक पर बैठकर घर पहुंचे, जहां पर चिंता और आशंका से भरी हुई मिश्रा जी की माँ दोनों का इंतजार कर रही थीं। दोनों को खुश देखकर उन्होने राहत की सांस ली। तभी अदिति ने अपनी दादी के गले से लिपट कर बताया कि अब वो राज्य की टीम के लिए खेलेगी और पापा ने इसकी इजाजत भी दे दी है। यह सुनते ही दादी के मुंह से निकला, ये गया था बेटी को ठीक करने और सब सत्यानाश करके लौट आया...।


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